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पार्वती की आराधना का पर्व संजा

गोबर से बनाएँगी संजा की आकृतियाँ

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अनंत चतुर्दशी के दूसरे दिन 23 सितंबर से निमाड़-अंचल में संजा फूली शुरू हुआ पर्व सर्वपितृ अमावस्या 7 अक्टूबर तक चलेगा। इस पर्व के दौरान बालिकाएँ और महिलाएँ माँ पार्वती की आराधना करेंगी और घर की दीवार पर गोबर से संजा की आकृतियाँ भी 16 दिन तक बनाएँगी।

पर्व को लेकर बालिकाओं-युवतियों में विशेष उत्साह है। इन दिनों शाम के समय संजा के गीत भी गाए जाएँगे। इस अवसर पर संजा को ससुराल जाने वाली कन्या का रूप मानकर उसकी जीवनी को रेखांकित करते हैं। कहा जाता है कि संजा माता के प्रसन्न होने पर बालिकाओं, युवतियों की जो मुराद रहती है वह पूरी होती है।

गीता बाई ने बताया कि जब घर-परिवार में श्राद्घ पक्ष मनाया जाता है, अपने पिछड़े प्रियजन की बातें ताजा की जाती हैं तो ऐसे में छोटी बालिकाएँ और युवतियाँ संजा बनाने की योजना में डूबी रहती हैं। 16 दिनों तक घर की दीवारों पर अलग-अलग संजा की आकृतियाँ बनाई जाती हैं।

शाम के समय कन्याएँ एकत्र होकर संजा माता की पूजा-अर्चना करती हैं और प्रसाद बाँटती हैं। कन्याएँ दीवार पर गोबर से बनी आकृतियों पर रंग-बिरंगे फूल-पत्तियाँ या रंगीन चमकदार पन्नियाँ लगाकर संजा को सजाती हैं। सजाने में फूलों का ज्यादा उपयोग करती हैं।

संजा पर्व के अंतिम दिन अमावस्या पर बालिकाएँ नए-नए परिधानों में सज-सँवर कर संजा को दीवारों से निकालकर बाँस की टोकरियों में रखती हैं और अपने सिर पर रखकर संजा गीत गाते हुए कुएँ-बावड़ी या नदी-तालाब में इसका विसर्जन करती हैं।

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आधुनिक परिवेश में संजा पर्व का शहर में माहौल कम हो गया है, पर गाँवों में आज भी बरकरार है।

बड़े शहरों में निर्मित होती बड़ी मल्टियाँ और पक्के मकान बनने और फिर नई बालिकाओं को इसकी जानकारी नहीं होने से यहाँ पर्व के प्रति ज्यादा रूझान नहीं रहता है, पर गाँवों में वृद्घ महिलाएँ घरों पर तीज-त्योहारों के बारे में आगे की पीढ़ी को बताती रहती है और हर आयोजन भी होते है। इसलिए गाँवों में संजा पर्व की धूम ज्यादा रहती है।

संजा पर्व में पहले दिन से दसवें दिन तक पाँच तारे, चाँद-सितारे, पट्टिका (पाट), पाँच कुँवारे, छः पंखुड़ियों वाला कमल या सूरजमुखी, स्वस्तिक, बिछोने, फूल, नगाड़े तथा पंखे आदि की आकृतियाँ बनाई जाती हैं। शेष दिनों में स्त्री के श्रृंगार स्वरूप कँघी, चूड़ियाँ, बालियाँ आदि की आकृतियाँ बनाई जाती हैं। किशोरियाँ संजा पर्व पर भोग भी चढ़ाती है। बाद में इसे प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है।

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