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रेशम तथा मेटल राखियों का जलवा बरकरार

चीनी ड्रैगन रा‍खी को चुनौती

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भाई बहन के प्रेम के प्रतीक रक्षाबंधन पर्व के लिए सजे राखियों के बाजार पर भी बारिश न होने का असर दिखाई दे रहा है। इस बार रक्षाबंधन जल्दी यानी दो अगस्त को है और बाजार तरह-तरह की रंगबिरंगी आकर्षक राखियों से सज चुके हैं, लेकिन गर्मी की वजह से राखियों का कारोबार अभी ठंडा पड़ा है।

प्रमुख थोक बाजार सदर बाजार के राखियों के कारोबारी अनिल भाई राखी वाले ने कहा, ‘पिछले साल से तुलना की जाए, तो अभी राखियों का कारोबार 50 फीसद कम है। गर्मी की वजह से आसपास के राज्यों से ग्राहक यहां नहीं आ रहे हैं। यहां तक कि दिल्ली का ग्राहक भी गर्मी की वजह से बाहर नहीं निकल रहा है।’

व्यापारियों का कहना है कि हर भारतीय त्योहार की तरह रक्षाबंधन पर भी चीनी ड्रैगन का कब्जा हो चुका है, लेकिन इसके बावजूद कोलकाता के रेशम के धागे, गुजरात की मेटल तथा राजस्थान की जरी वाली राखियों का जलवा बरकरार है।

चीन से बनी-बनाई राखियां नहीं आतीं, बल्कि वहां से कच्चा माल आता है। चीन से स्टोन, बीड्स या विभिन्न कार्टून कैरेक्टर तथा खिलौने आदि आयात कर यहां राखियां बनाई जाती हैं। कनफेडरेशन ऑफ सदर बाजार ट्रेड्स एसोसिएशन के महासचिव देवराज बवेजा ने कहा कि बाजार में बिक रही 50 फीसदी राखियों में चीन से आयातित सामान का इस्तेमाल किया गया है। इसकी वजह यह है कि चीन से राखियों का सामान मंगाना काफी सस्ता पड़ता है।

बवेजा ने कहा कि ज्यादातर गैर ब्रांडेड राखियों में चीन से आयातित सामान का इस्तेमाल किया गया है। यहीं नहीं भारतीय राखी विनिर्माता भी चीन से ही सामान मंगाते हैं।

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एक अन्य व्यापारी प्रवीण का भी कहना है कि बारिश न होने की वजह से राखियों का कारोबार मंदा है। रक्षाबंधन में अब करीब एक सप्ताह ही बचा है, पर ग्राहक नहीं हैं। उनका कहना है कि यदि यही स्थिति रही, तो ज्यादातर बड़े दुकानदारों का काफी माल बच जाएगा।

अनिल भाई कहते हैं कि चीन से आयातित स्टोन वाली राखियों की मांग सबसे ज्यादा है। स्टोन वाली राखियों का दाम 5 रुपए से शुरू होकर 250 रुपए तक है। इसी तरह विभिन्न तरह के कार्टून कैरेक्टरों मसलन डोरेमान, बेन 10, शिंचन तथा गणेश और हनुमान की राखियां भी बाजार में छाई हैं। थोक बाजार में इन राखियों की कीमत 5 रुपए से 300 रुपए तक हैं। प्रवीण ने कहा कि 11 स्टोन, 21 स्टोन तथा 31 स्टोन वाली राखियों की काफी मांग है। व्यापारियों ने बताया कि राखियों में चीनी स्टोन का इस्तेमाल इसलिए किया जाता है, क्योंकि यह भारतीय स्टोन से 50 फीसदी तक सस्ता पड़ता है।

व्यापारियों का कहना है कि कोलकाता की रेशम के धागे वाली राखियां भी खूब पसंद की जाती हैं। इनकी कीमत 5 रुपए से 150 रुपए तक हैं। इसी तरह यहां गुजरात से मेटल वाली राखियां भी खूब आ रही हैं। अनिल भाई कहते हैं कि मेटल वाली राखियां चांदी की तरह दिखती हैं, इसलिए लोग इन्हें खरीदते हैं। मेटल की राखियों की कीमत 10 रुपए से 400 रुपए तक है।

कोलकाता, गुजरात के अलावा राजस्थान की जरी वाली राखियां भी चीनी ड्रैगन को चुनौती पेश कर रही हैं। इन राखियों की कीमत भी 5 रुपए से शुरू हो जाती है। प्रवीण कहते हैं कि कुछ साल पहले चीनी राखियों का काफी दबदबा हो गया था। अभी घरेलू विनिर्माता भी आकर्षक राखियां पेश कर रहे हैं, जिससे ड्रैगन का दबदबा कम हुआ है।

प्रमुख कारोबारियों का कहना है कि गर्मी की वजह से तो राखियों का कारोबार ठंडा है ही, साथ ही ट्रेनों में रिजर्वेशन न मिलने की वजह से दूसरे राज्यों के व्यापारियों ने यहां आना कम कर दिया है। हालांकि उनका दावा है कि दिल्ली का राखियों के हब के रूप में दबदबा बरकार है, क्योंकि यहां सभी तरह की राखियां मिल जाती हैं। (भाषा)

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