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शारदीय पूर्णिमा : आज भी होता है महारास

- आचार्य गोविन्द बल्लभ जोशी

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हमें फॉलो करें भगवान श्यामसुंदर श्रीकृष्ण
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यमुना के तट पर शारदीय पूर्णिमा की मध्यरात्रि में भगवान ने क्लीं बीजमंत्र की ध्वनि से पूर्ण बंशी बजाई। उस समय चंद्रमंडल अखंड था। चाँदनी के प्रभाव से संपूर्ण परिवेश अनुराग की लालिमा से रंगता सा जा रहा था। इस प्रकार भगवान के दिव्य समुज्ज्वल रस के परिवेषण की उद्दीपन सामग्री सर्वत्र व्याप्त हो रही थी। भगवान श्यामसुंदर श्रीकृष्ण ने अपनी प्राणशक्ति जीवनीशक्ति का बंशी में समावेश कर 'क्लीं' ध्वनि को प्रतिध्वनित किया।

जिन गोपियों को बंशी बजाकर भगवान को बुलाना पड़ा था, उन साधक सिद्धा गोपियों के अनेक वर्ग हैं। इनमें से कुछ गोपियाँ तो जनकपुर धाम से पधारी हैं जिन्हें भगवती सीता जी की कृपा प्राप्त है। इसी प्रकार श्रुतियों ने जब गोलोकधाम का दर्शन किया तो भगवान की छवि देखकर सम्मोहित हो गईं। उन श्रुतियों ने रस माधुर्य के आस्वादन की कामना से प्रियतम के रूप में भगवान को पाना चाहा।

दंडकारण्य के ऋषि भी ब्रजमंडल में गोपी बनने का सौभाग्य प्राप्त करते हैं। त्रेतायुग में ही इन ऋषियों के अन्तःकरण में भगवान के मुरली मनोहर गोपाल वेष में निष्ठा थी। पंरतु भगवान को धनुष धारण किए वनवासी रूप में जब इन ऋषियों ने देखा तो वे पुकार उठे- प्रभो! हम तो आपकी रासलीला में प्रवेश पाने की प्रतीक्षा में तप कर रहे हैं।

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श्रीराम ने कहा तुम सभी ब्रजमंडल में गोपी बनकर प्रकट हो जाना। यथा समय तुम्हें रासलीला में प्रवेश का अधिकार प्राप्त हो जाएगा। ये ऋषि वंग देश में मंगल गोप के यहाँ पुत्री के रूप में प्रकट होते हैं। श्री यमुना की कृपा से ही इन ऋषि रूपा गोपियों पर श्रीकृष्ण ने कृपा की और बंशी बजाकर रासलीला में पधारने का निमंत्रण दिया।

जिस समय भगवान राम ने भृगुकुल नंदन परशुराम को पराजित कर उनको शरणागति प्रदान की, कौशल जनपद की स्त्रियों ने श्रीराम के लोक सम्मोहक रूप का दर्शन किया और वे कामिनी भाव को प्राप्त हो गई। श्रीराम के मानस संकल्प के परिणाम स्वरूप वे स्त्रियाँ ही द्वापर में ब्रजमंडल में नौ उपनंदों की पुत्री बनकर प्रकट हुई। यथा समय ब्रज के गोपी के साथ उनका ब्याह भी हो गया। परंतु पूर्व जन्म की कामना के प्रभाव से श्यामसुंदर श्रीकृष्ण को ही प्रियतम के रूप में पाना चाहा। भगवान ने उन्हें भी बंशी बजाकर रासमंडल में प्रवेश की अनुमति प्रदान कर दी।

जनकपुरधाम में सीता को ब्याह कर जब श्रीराम अवध वापस लौटे तो अवधवासिनी स्त्रियाँ श्रीराम को देखकर सम्मोहित हो गईं। श्रीराम से प्राप्त वर के प्रभाव से वे स्त्रियाँ ही चंपकपुरी के राजा विमल के यहाँ जन्मी। महाराज विमल ने अपनी पुत्रियाँ श्रीकृष्ण को समर्पित कर दीं और स्वयं श्रीकृष्ण में प्रवेश कर गए। इन विमल पुत्रियों को भी श्रीकृष्ण ने रासलीला में प्रवेश का अधिकार दिया।

सीताजी को वाल्मिकी आश्रम भेजने के बाद अयोध्या में उनकी अनेक प्रतिमा बनाकर यज्ञ हुआ। सरयू में विसर्जित होते समय उन्होंने श्रीराम से परित्याग न करने का निवेदन किया वही आज रास में गोपी बनकर पधारती हैं।

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वनवासी जीवन यापन करते हुए पंचवटी में श्रीराम की मधुर छवि का दर्शन कर भीलनी स्त्रियाँ मिलने को आतुर हो उठीं और श्रीराम विरह की ज्वाला में अपने प्राणों का त्याग करने को उद्यत हो गईं। तब ब्रह्मचारी वेष में प्रकट होकर श्रीराम ने उन्हें द्वापर में श्रीकृष्ण मिलन का आश्वासन दिया। यही भीलनी स्त्रियाँ कंस के पुलिंद सेवकों के यहाँ कन्या रूप में जन्म लेती हैं और आज महारास में कृष्ण मिलन का सुख प्राप्त करती हैं।

इसी प्रकार मालव देश के दिवस्पति नंद की पुत्रियाँ भी श्रीकृष्ण कृपा से गोपीभाव को प्राप्त कर रासलीला में प्रवेश करती हैं। भगवान सुयज्ञ की कृपा से देवांगनाएँ भी गोपी बनती हैं। भगवान धन्वन्तरि के विरह में संतप्त औषधि लताएँ भी श्रीहरि की कृपा से वृंदावन में गोपी बनने का सौभाग्य प्राप्त करती हैं। जालंधर नगर की स्त्रियाँ वृंदापति श्रीहरि भगवान का दर्शन कर कामिनी भाव को प्राप्त हो जाती हैं और श्रीहरि भगवान की कृपा से जालंधरी गोपी रूप में रासलीला में प्रवेश का सौभाग्य प्राप्त करती हैं।

मत्स्यावतार में श्रीहरि भगवान का दर्शन कर समुद्र कन्याएँ कामोन्मत्त हो जाती हैं और वे भी भगवान मत्स्य से प्राप्त वर के प्रभाव से समुद्री गोपी बनकर रासलीला में प्रवेश का अधिकार प्राप्त करती हैं। इसी प्रकार वर्हिष्मती की स्त्रियाँ भगवान पृथु का दर्शन कर भावोन्मत्त हो जाती हैं और पृथु कृपा से ही वार्हिष्मती गोपी बनने का सौभाग्य प्राप्त करती हैं। गन्धमादन पर्वत पर भगवान नारायण के कामनीय रूप का दर्शन कर स्वर्ग की अप्सराएँ सम्मोहित हो जाती हैं और नारायण कृपा से ही नारायणी गोपी बनकर प्रकट हो जाती हैं। इसी प्रकार सुतल देश की स्त्रियाँ भगवान वामन की कृपा से गोपी बनती हैं।

गोपियों के स्रोत और स्वरूप अनन्त हैं। परंतु ये सभी साधन सिद्धा हैं और इनकी सकाम उपासना है। काल और कर्म के प्रभाव से ये भगवान को विस्मृत कर लौकिक पति, पुत्र, सास-ससुर लोक-लाज को सर्वस्व मान बैठती हैं। तभी तो रासलीला के माध्यम से अप्राकृत रस वितरण के पर्व पर भगवान श्यामसुदर श्रीकृष्ण बंशी बजाकर साधन सिद्धा श्री गोपीजनों का आवाहन करते हैं। (नईदुनिया दिल्ली)

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