हलषष्ठी पर्व मनाने वाली माताओं को शुक्रवार को शुभ मुहूर्त का पुण्य लाभ मिल सकेगा। वहीं जो माताएं शनिवार को व्रत रखने की पहल करेंगी, उन्हें पूजा के समय तिथि और मुहूर्त का लाभ नहीं मिलेगा। तिथि को लेकर काशी विश्वनाथ के पंचांग से मिलान कर शुक्रवार को ही कमरछठ मनाने की जानकारी दी गई है।
इस साल कमरछठ को लेकर तिथिगत भ्रम की स्थिति होने के कारण पंडितों का कहना है कि कमरछठ के लिए शुक्रवार को सुबह 9.42 मिनट से लेकर शनिवार दोपहर 12.10 मिनट तक मुहूर्त है।
पंडितों के मुताबिक शुक्रवार को व्रत और पूजा करना उत्तम फलकारी होगा, क्योंकि शनिवार को अपराह्न की जाने वाली पूजा के लिए मुहूर्त नहीं रहेगा।
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विद्वानों के अनुसार सबसे पहले द्वापर युग में माता देवकी द्वारा कमरछठ व्रत किया गया था, क्योंकि खुद को बचाने के लिए कंस उनके सभी संतानों का वध करता जा रहा था। उसे देखते हुए देवर्षि नारद ने हलषष्ठी माता का व्रत करने की सलाह माता देवकी को दी थी।
उनके द्वारा किए गए व्रत के प्रभाव से बलदाऊ और भगवान कृष्ण कंस पर विजय प्राप्त करने में सफल हुए। उसके बाद से यह व्रत हर माता अपनी संतान की खुशहाली और सुख-शांति की कामना के लिए करती है।
इस व्रत को करने से संतान को सुखी व सुदीर्घ जीवन प्राप्त होता है। कमरछठ पर रखे जाने वाले व्रत में माताएं खास तौर पर पसहर चावल का उपयोग करती है।