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हरितालिका तीज पर करें पार्वती पूजन

तीज की पौराणिक कथा

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भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन अखंड सौभाग्य की कामना के लिए स्त्रियां हरतालिका तीज का विशिष्ट व्रत रखती हैं। यह व्रत महिलाएं तथा युवतियां भी पूरी शिद्दत से रखती हैं। पुरानी परंपरानुसार दो दिन पहले से ही कुम्हारिनें सिर पर गौरा पार्वती की मूर्तियां लेकर गौरा पार्वती ले लो... पुकारते हुए घर-घर जाती रहती हैं और जहां कुम्हारिनें नहीं आतीं उनके लिए गांव-शहर के प्रमुख बाजारों में गौरा पार्वती मिल रहे हैं।

तीजा पर फुलहरा बांधकर पार्वती जी के इसी स्वरूप की पूजा की जाती है। तीजा के व्रत में बहुत नियम-कायदे होते हैं। छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखना पड़ता है। सुबह चार बजे उठकर बिना बोले नहाना और फिर दिन भर निर्जल व्रत रखना कठिन होता है। हरतालिका तीज पर रात भर भजन होते हैं जागरण होता है।

भारतीय महिलाओं ने इस पुरानी परंपराओं को कायम रखा है। यह शिव-पार्वती की आराधना का सौभाग्य व्रत है, जो केवल महिलाओं के लिए है। निर्जला एकादशी की तरह हरितालिका तीज का व्रत भी निराहार और निर्जल रहकर किया जाता है। महिलाएं व कन्याएं भगवान शिव को गंगाजल, दही, दूध, शहद आदि से स्नान कराकर उन्हें फल समर्पित करती है। रात्रि के समय अपने घरों में सुंदर वस्त्रों, फूल पत्रों से सजाकर फुलहरा बनाकर भगवान शिव और पार्वती का विधि-विधान से पूजन अर्चन किया जाता है।

तीज में महिलाएं जब अपने पीहर आती हैं, तब घर में भी रौनक होती है। सहेलियां पीहर में मिलती हैं और तीज की पूजा एक साथ मिलकर करती हैं। तीज पर्व में पीहर आने वाली महिलाओं को भाई की तरफ से तोहफा दिया जाता है साथ ही साथ उनके बच्चों को भी तोहफा दिया जाता है। इस दौरान वर्षों का सुख दुख मायके में महिलाएं बांटती है। मान्यता के अनुसार विवाहित पुत्री को सौंदर्य सामग्री देने की परंपरा है।

पौराणिक कथा :
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हरितालिका तीज की पौराणिक कथा के अनुसार एक बार शंकर-पार्वती कैलाश पर्वत पर बैठे थे। तब पार्वती ने शंकर जी से पूछा कि सभी व्रतों में श्रेष्ठ व्रत कौन-सा है और मैं आपको पत्नी के रूप में कैसे मिली। तब शंकर जी ने कहा कि जिस प्रकार नक्षत्रों में चंद्रमा, ग्रहों में सूर्य, चार वर्णों में ब्राह्मण, देवताओं में विष्णु, नदियों में गंगा श्रेष्ठ है। उसी प्रकार व्रतों में हरितालिका व्रत श्रेष्ठ है। पार्वती ने पूर्व जन्म में हिमालय पर्वत पर हरितालिका व्रत किया था।

यह व्रत भाद्रपद महीने की तीज को किया जाता है। पार्वतीजी ने एक बार सखियों द्वारा हरित यानी अपर्हत होकर एक कन्दरा में इस व्रत का पालन किया था, इसलिए कालांतर में इसका नाम हरितालिका प्रसिद्ध हुआ। पार्वतीजी ने 64 वर्षों तक बेलपत्री खाकर तपस्या की थी। देवी पार्वती ने यह व्रत घोर जंगल में बेलपत्री और फूलों का मंडप बनाकर किया था, इसलिए तीज की रात्रि में बेलपत्री और फूलों का फुलेहरा बांधा जाता है।

हिमालय पर्वत पर सखियां पार्वती को लेकर गईं और वहां पर पार्वती ने सखियों के साथ हरितालिका का व्रत किया। इस व्रत से भगवान शंकर प्रसन्न हुए और पति के रूप में प्राप्त हुए, तभी से सखियां श्रेष्ठ पति प्राप्त होने के लिए निर्जल रहकर हरितालिका व्रत करती हैं।

सुहागिन महिलाओं के साथ कुंवारी कन्याओं के लिए भी यह दिन बेहद शुभ होता है। इस दिन सुहागिनों द्वारा पति की दीर्घायु, सुखद वैवाहिक जीवन, संपन्नता और पुत्र प्राप्ति की कामना की जाती है, वहीं कन्याएं सुयोग्य वर प्राप्ति के लिए यह व्रत रखती हैं। यह व्रत संसार के सभी क्लेश, कलह और पापों से मुक्ति दिलाता है।

यह व्रत पति के लिए किया जाता है इसलिए आज भी महिलाएं इस दिन पूरे सोलह श्रृंगार के साथ तैयार होकर पूजा में हिस्सा लेती हैं। साल भर होने वाले अन्य व्रतों की तुलना में तीजा का व्रत सबसे कठिन माना जाता है। दरअसल पूरे दिन बिना खाना-पानी के व्रत रखने के पीछे कुछ मान्यताएं चली आ रही हैं, जिन्हें आज भी उपवास रखने वाली वयोवृद्ध महिलाएं पूरी शिद्दत से मानती हैं।

ऐसा कहा जाता है कि उपवास रखने वाली जो स्त्री इस दिन मीठा खाती हैं वह अगले जन्म में चींटी बनती है। फल खाने वाली वानरी, सोने वाली अजगर की योनी प्राप्त करती है। जो दूध का सेवन करती है तो अगले जन्म में वह सांपनी बनती है। बदलते समय के साथ-साथ इसमें कई बहुत तेजी से परिवर्तन आया है। तीज के दिन कई घरों में गुजिया, खखरिया, पपड़ी और भी ढेर सारे पकवान बनते हैं।

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