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बैकुंठ चतुर्दशी पर 14 दीपक जलाकर करें श्रीहरि विष्णु को प्रसन्न...

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* बैकुंठ चतुर्दशी पर है 14 दीपक जलाने की परंपरा


 
 
बैकुंठ चतुर्दशी को व्रत-उपवास करके नदी, सरोवरों आदि के तट पर 14 दीपक जलाने की परंपरा है। 
 
एक बार श्रीहरि विष्णु देवाधिदेव महादेव का पूजन करने काशी पधारे और वहां मणिकर्णिका घाट पर स्नान कर उन्होंने 1,000 स्वर्ण कमल पुष्पों से भगवान विश्वनाथ के पूजन का संकल्प किया। लेकिन जब वे पूजन करने लगे तो महादेव ने उनकी भक्ति की परीक्षा लेने के लिए एक कमल पुष्प कम कर दिया। 
 
यह देख श्रीहरि ने सोचा कि मेरी आंखें भी तो कमल जैसी ही हैं और उन्हें चढ़ाने को प्रस्तुत हुए। तब महादेव प्रकट हुए और बोले, हे हरि! तुम्हारे समान संसार में दूसरा कोई मेरा भक्त नहीं है। आज से कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की यह चतुर्दशी अब 'बैकुंठ चतुर्दशी' कहलाएगी। इस दिन जो मनुष्य भक्तिपूर्वक पहले आपका पूजन करेगा, वह बैकुंठ को प्राप्त होगा।

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कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी का दिन भगवान विष्‍णु और भगवान भोलेनाथ के पूजन का दिन है। निर्णय सिन्धु के अनुसार जो मनुष्य इस दिन 1,000 कमल पुष्पों से भगवान विष्णु के बाद भोलेनाथ की पूजा-अर्चना करते हैं, वे समस्त भव-बंधनों से मुक्त होकर बैकुंठ धाम को पाते हैं। पुरुषार्थ चिंतामणि में वर्णित जानकारी के अनुसार इसी दिन शिवजी ने सुदर्शन चक्र श्रीहरि विष्णु को प्रदान किया था।
 
इस दिन व्रत कर तारों की छांव में सरोवर, नदी इत्यादि के तट पर 14 दीपक जलाने की परंपरा है। कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी को जो मनुष्य व्रत-उपवास करके श्रीहरि विष्‍णु का पूजन करते हैं उनके लिए स्वर्ग के द्वार खुल जाते हैं। 
 

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