Amla Navami 2025: कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाने वाला पर्व 'आंवला नवमी' भारतीय संस्कृति और आध्यात्म में एक विशेष स्थान रखता है। इसे 'अक्षय नवमी' के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व प्रकृति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने, स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना करने तथा धार्मिक अनुष्ठान करने का एक सुनहरा अवसर प्रदान करता है।
अक्षय नवमी का महत्व:
'अक्षय' शब्द का अर्थ होता है- 'जिसका कभी क्षय न हो' या 'जो कभी नष्ट न हो'। यह नाम इस तिथि के महत्व को दर्शाता है कि इस दिन किए गए सभी शुभ कार्यों, जैसे- दान-पुण्य, पूजा-पाठ, जप-तप और व्रत का फल अक्षय होता है, यानी उसका पुण्य कभी समाप्त नहीं होता और वह कई जन्मों तक व्यक्ति के साथ रहता है। इसी कारण यह तिथि धर्म-कर्म के लिए अत्यंत शुभ मानी जाती है।
आंवला नवमी के संबंध में 11 रोचक तथ्य:
आंवला नवमी के पर्व को और भी विशेष बनाने वाले 11 रोचक तथ्य निम्नलिखित हैं:-
1. पर्व का नाम और तिथि: इसे कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है, इसलिए इसे 'आंवला नवमी' या 'अक्षय नवमी' कहा जाता है।
2. अक्षय पुण्य की प्राप्ति: यह माना जाता है कि इस दिन किया गया कोई भी धार्मिक या परोपकारी कार्य (जैसे दान, तपस्या, पूजा) व्यक्ति को अक्षय पुण्य प्रदान करता है, जो उसके भविष्य और अगले जन्मों तक सुख-समृद्धि लाता है।
3. भगवान विष्णु का वास: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कार्तिक मास की इस नवमी से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक भगवान विष्णु स्वयं आंवले के वृक्ष में वास करते हैं। इसीलिए आंवले के वृक्ष की पूजा इस दिन सर्वोपरि होती है।
4. देवी लक्ष्मी की पाक परंपरा: एक प्रसिद्ध पौराणिक कथा के अनुसार, इसी तिथि पर देवी लक्ष्मी ने आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर अपने हाथों से भोजन तैयार किया था और उसे एक साथ भगवान विष्णु तथा भगवान शिव को खिलाया था। तभी से आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर सहभोज करने की परंपरा आरंभ हुई।
5. पारिवारिक समृद्धि की कामना: यह पर्व विशेष रूप से परिवार की समृद्धि, वंश वृद्धि और उत्तम स्वास्थ्य की कामना के लिए मनाया जाता है। महिलाएं विशेष रूप से व्रत रखती हैं और आंवले के वृक्ष की पूजा करती हैं।
6. भोजन की महत्ता (उत्तम स्वास्थ्य): इस दिन आंवले के पेड़ के नीचे भोजन पकाना, भगवान को उसका भोग लगाना और फिर प्रसाद के रूप में परिवार के साथ उसे ग्रहण करना उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति कराता है। यह प्रथा वर्ष भर रोगों से मुक्ति दिलाती है। इस दिन आंवले का सेवन करना बहुत लाभकारी माना जाता है। मान्यता है कि इससे शरीर को आरोग्यता प्राप्त होती है।
7, परिक्रमा का विशेष महत्व: आंवला नवमी के शुभ अवसर पर मथुरा-वृन्दावन की परिक्रमा का भी विशेष महत्व बताया गया है। इस परिक्रमा को 'अक्षय पुण्य' अर्जित करने का एक सरल और शक्तिशाली मार्ग माना जाता है। श्रद्धालु दूर-दूर से आकर इस परिक्रमा में हिस्सा लेते हैं।
8. पौराणिक मंत्र जाप: इस दिन धार्मिक लाभ प्राप्त करने के लिए आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर पूर्व दिशा की ओर मुख करके विशिष्ट मंत्रों का जाप करना चाहिए। इसके लिए 'ॐ धात्र्यै नमः' (आंवले के वृक्ष को समर्पित) या 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' (भगवान विष्णु का मंत्र) का कम से कम 108 बार जाप करने का विधान है।
9. परिक्रमा और कलावा बांधना: पेड़ के चारों ओर लाल धागा (कलावा) 7, 9 या 11 बार बांधें और अपनी सामर्थ्य के अनुसार 7, 9 या 108 बार परिक्रमा करें।
10. आंवले के वृक्ष की पूजा विधि: पूजा में आंवले के पेड़ को जल, दूध, हल्दी, चंदन, अक्षत (चावल) और पुष्प अर्पित किए जाते हैं। वृक्ष के तने पर सूत्र (कलावा या मोली) लपेटा जाता है और अंत में कपूर या घी के दीपक से आरती की जाती है।
11. दान-पुण्य: इस दिन दान का अक्षय फल मिलता है। आंवला, पीले वस्त्र, हल्दी, गाय का घी या अनाज का दान करना शुभ माना जाता है।
आंवला नवमी या अक्षय नवमी एक ऐसा पर्व है जो मनुष्य को धर्म, प्रकृति और स्वास्थ्य के त्रिवेणी संगम का महत्व समझाता है। आंवले के वृक्ष को पूजनीय मानकर, हम न केवल प्रकृति का आभार व्यक्त करते हैं, बल्कि अपनी परंपराओं के माध्यम से उत्तम स्वास्थ्य और चिरस्थायी पुण्य की कामना भी करते हैं। यह दिन हमें सिखाता है कि दान, भक्ति और शुद्ध कर्म का फल कभी नष्ट नहीं होता।