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आशा द्वितीया 2025: आसों दोज पर्व क्यों और कैसे मनाया जाता है?

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WD Feature Desk

, सोमवार, 14 अप्रैल 2025 (16:25 IST)
Ason Doj 2025 : आशा द्वितीया, जिसे आसों दोज भी कहा जाता है, मुख्य रूप से उत्तर भारत के बुंदेलखंड क्षेत्र में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण पर्व है। यह पर्व वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। यह पर्व महिलाएं अपनी संतानों की खुशहाली और परिवार की समृद्धि के लिए पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ इसे मनाती हैं। वर्ष 2025 में, आसों दोज दिन मंगलवार, 15 अप्रैल को मनाया जाएगा। आइए जानते हैं इस पर्व के बारे में...ALSO READ: मेष संक्रांति से तमिल नववर्ष पुथन्डु प्रारंभ, जानिए खास बातें
 
आसों दोज पर्व क्यों मनाया जाता है:

आसों दोज पर्व मनाने के कई कारण हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं- 
 
- संतान की सुरक्षा और समृद्धि: यह व्रत मुख्य रूप से उन महिलाओं द्वारा किया जाता है जिनकी संतान होती है, खासकर पुत्रों की माताएं इसे विशेष रूप से करती हैं। इसका उद्देश्य अपनी संतानों की सुरक्षा और समृद्धि की कामना करना है।
 
- आशा और विश्वास का प्रतीक: यह पर्व जीवन में आशा और विश्वास बनाए रखने का संदेश देता है। जब व्यक्ति निराश होता है, तो आसमाई की पूजा उसे नई उम्मीद और सकारात्मकता प्रदान करती है।
 
- कार्य सिद्धि के लिए: धार्मिक मान्यता है कि यह व्रत कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
 
- मनोकामना पूर्ति: ऐसा माना जाता है कि जिन लोगों की कोई इच्छा पूरी नहीं होती है, वे आसमाई या आशा माता को प्रसन्न करने और अपने जीवन को सुंदर बनाने हेतु यह व्रत कर सकते हैं।
 
- पारिवारिक सुख-शांति: इस व्रत को करने से परिवार में सुख-शांति और खुशहाली बनी रहती है।ALSO READ: जिन राशियों पर है शनि की साढ़ेसाती, पलटने वाले हैं उनके दिन
 
आसों दोज पर्व कैसे मनाया जाता है :
आसों दोज का पर्व विशेष विधि-विधान से मनाया जाता है- जैसे...
 
1. तैयारी: इस दिन महिलाएं सुबह जल्दी उठकर स्नान करती हैं और स्वच्छ वस्त्र धारण करती हैं।
2. पूजा सामग्री : पूजा के लिए पान का पत्ता, गोपी चंदन, लकड़ी का पाट या छोटी चौकी, देवी आसामाई की तस्वीर, मिट्टी का कलश, रोली, अक्षत, धूप, दीप, घी, नैवेद्य में हलवा-पूरी और सूखा आटा एकत्रित किया जाता है।
3. आसामाई की मूर्ति बनाना: एक अच्छे मीठे पान के पत्ते पर सफेद चंदन से आसामाई की मूर्ति बनाई जाती है।
4. कलश स्थापना: पूजा स्थल पर चौक पूरकर मिट्टी का कलश स्थापित किया जाता है।
5. कौड़ियों की पूजा: आसामाई की बनाई गई मूर्ति के सामने 4 कौड़ियां रखी जाती हैं और उनकी पूजा की जाती है।
6. गांठों वाला मांगलिक सूत्र: चौक के पास गांठों वाला एक मांगलिक सूत्र रखा जाता है।
7. षोडशोपचार पूजा: षोडशोपचार विधि से आसामाई की पूजा की जाती है।
8. भोग: भोग के लिए सात 'आसें' यानी एक विशेष प्रकार की मिठाई या पकवान बनाई जाती हैं, जिसे व्रत करने वाली महिला ही खाती है। इसके अलावा हलवा-पूरी का भोग लगाया जाता है।
9. मांगलिक धारण: भोग लगाते समय, महिला उस गांठों वाले मांगलिक सूत्र को धारण करती है।
10. कौड़ियों का खेल: घर का सबसे छोटा बच्चा उन 4 कौड़ियों को पटिये पर डालता है, जिन्हें महिला अपने पास रखती है और हर वर्ष उनकी पूजा करती है।
11. कथा श्रवण: अंत में, आसमाई की कथा सुनी या पढ़ी जाती है।
12. व्रत का पारण: पूजा संपन्न होने के बाद व्रत का पारण किया जाता है। इस दिन भोजन में नमक का प्रयोग वर्जित होता है। भोग लगाने के बाद सभी को प्रसाद वितरित किया जाता है।
 
संतान की खुशहाली और परिवार की समृद्धि के लिए पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाया जाने वाला आसों दोज पर्व आशा और पारिवारिक प्रेम का प्रतीक है।
 
अस्वीकरण (Disclaimer) : चिकित्सा, स्वास्थ्य संबंधी नुस्खे, योग, धर्म, ज्योतिष, इतिहास, पुराण आदि विषयों पर वेबदुनिया में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं, जो विभिन्न सोर्स से लिए जाते हैं। इनसे संबंधित सत्यता की पुष्टि वेबदुनिया नहीं करता है। सेहत या ज्योतिष संबंधी किसी भी प्रयोग से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें। इस कंटेंट को जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है जिसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।ALSO READ: मलमास खत्म, 13 अप्रैल से प्रारंभ हुए मांगलिक कार्य
 

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