ब्रह्मवैवर्त पुराण के प्रकृति खंड में बताया गया है कि सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी के एक प्रमुख अंश को ‘देवसेना’ कहा गया है। प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इस देवी का एक प्रचलित नाम षष्ठी है। पुराण के अनुसार, ये देवी सभी ‘बालकों की रक्षा’ करती हैं और उन्हें लंबी आयु प्रदान करती हैं। आज भी ग्रामीण समाज में बच्चों के जन्म के छठे दिन षष्ठी पूजा या छठी पूजा का प्रचलन है।
''षष्ठांशा प्रकृतेर्या च सा च षष्ठी प्रकीर्तिता।
बालकाधिष्ठातृदेवी विष्णुमाया च बालदा।।
आयु:प्रदा च बालानां धात्री रक्षणकारिणी।|
सततं शिशुपार्श्वस्था योगेन सिद्धियोगिनी।।"
-(ब्रह्मवैवर्तपुराण,प्रकृतिखंड 43/4/6)
षष्ठी देवी को ही स्थानीय भाषा में छठी मैया कहा गया है। षष्ठी देवी को ‘ब्रह्मा की मानसपुत्री’ भी कहा जाता है।
मां कात्यायनी ही हैं छठी मैया
पुराणों में छठी मैया का एक नाम कात्यायनी भी है। इनकी पूजा नवरात्रि में षष्ठी तिथि को होती है। शेर पर सवार मां कात्यायनी की चार भुजाएं हैं। वह बाएं हाथों में कमल का फूल और तलवार धारण करती हैं। वहीं, दाएं हाथ अभय और वरद मुद्रा में रहते हैं। मां कात्यायनी योद्धाओं की देवी हैं। राक्षसों के अंत के लिए माता पार्वती ने कात्यायन ऋषि के आश्रम में ज्वलंत स्वरूप में प्रकट हुई थीं, इसलिए इनका नाम कात्यायनी पड़ा।
छठी मैया भगवान सूर्य की बहन हैं। छठी मैया को प्रसन्न करने के लिए सूर्य देव की विधि विधान से पूजा अर्चना की जाती है।
छठी मैया से मिलते हैं ये 5 बड़े आशीर्वाद
1. छठी मैया का पूजा करने से नि:संतान दंपत्तियों को संतान सुख की प्राप्ति होती है।
2. छठी मैया संतान की रक्षा करती हैं और उनके जीवन को खुशहाल रखती हैं।
3. छठी मैया की पूजा से कई पवित्र यज्ञों के फल की प्राप्ति होती है।
4. परिवार में सुख, समृद्धि, धन संपदा और परस्पर प्रेम के लिए भी छठी मैया का व्रत किया जाता है।
5. छठी मैया की पूजा से विवाह और करियर संबंधी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
छठी मैया का नियम पूर्वक व्रत करने से व्रत सम्पूर्ण फल प्राप्त होता है। नियम को उल्लंघन करने से उसका कुफल भी मिलता है। पुराणों में बताया गया है कि राजा सगर ने सूर्य षष्ठी व्रत सही तरह से नहीं किया था इसलिए उनके 60 हजार पुत्र मारे गए थे।