प्रबोधिनी एकादशी को अत्यंत शुभ एवं फलदायी माना गया है। इस दिन गोधूली बेला में भगवान शालिग्राम, तुलसी व शंख का पूजन करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। लोग इस दिन तुलसी एवं भगवान शालिग्राम का विवाह कर पूजा अर्चना करते हैं। तुलसी विवाह से कन्यादान के बराबर पुण्य मिलता है साथ ही घर में श्री, संपदा, वैभव-मंगल विराजते हैं।
तुलसी की आराधना करते हुए ग्रंथ लिखते हैं-
महाप्रसाद जननी सर्व सौभाग्य वर्धिनी।
आधिव्याधि हरिर्नित्यं तुलेसित्व नमोस्तुते॥
हे तुलसी! आप सम्पूर्ण सौभाग्यों को बढ़ाने वाली हैं, सदा आधि-व्याधि को मिटाती हैं, आपको नमस्कार है।
अकाल मृत्यु हरण सर्व व्याधि विनाशनम्॥
तुलसी को अकाल मृत्यु हरण करने वाली और सम्पूर्ण रोगों को दूर करने वाली माना गया है।
रोपनात् पालनान् सेकान् दर्शनात्स्पर्शनान्नृणाम्।
तुलसी दह्यते पाप वाढुमतः काय सञ्चितम्॥
तुलसी को लगाने से, पालने से, सींचने से, दर्शन करने से, स्पर्श करने से, मनुष्यों के मन, वचन और काया से संचित पाप जल जाते हैं। वायु पुराण में तुलसी पत्र तोड़ने की कुछ नियम मर्यादाएं बताते हुए लिखा है - अस्नात्वा तुलसीं छित्वा यः पूजा कुरुते नरः । सोऽपराधी भवेत् सत्यं तत् सर्वनिष्फलं भवेत्॥
अर्थात् - बिना स्नान किए तुलसी को तोड़कर जो मनुष्य पूजा करता है, वह अपराधी है। उसकी की हुई पूजा निष्फल जाती है, इसमें कोई संशय नहीं।
तुलसी की पूजा से घर में सुख-समृद्धि और धन की कोई कमी नहीं होती। इसके पीछे धार्मिक कारण है। तुलसी में हमारे सभी पापों का नाश करने की शक्ति होती है।
तुलसी को लक्ष्मी का ही स्वरूप माना गया है। विधि-विधान से इसकी पूजा करने से महालक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और इनकी कृपा स्वरूप हमारे घर पर कभी धन की कमी नहीं होती।
कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की एकादशी को तुलसी विवाह का उत्सव मनाया जाता है। इस एकादशी पर तुलसी विवाह का विधिवत पूजन करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।