18 नवंबर को दूर्वा गणपति व्रत श्री सिद्धि विनायक चतुर्थी व्रत है। दूर्वा गणपति व्रत पर श्रीगणेश का पूजन कर उन्हें दूर्वा अर्पित करने का विशेष महत्व है। भगवान गणेश के कुछ खास दिनों में जैसे बुधवार, विनायकी चतुर्थी, संकष्टी चतुर्थी और श्रीगणेश चतुर्थी, गणेश जन्मोत्सव के दिन उन्हें विशेषतौर पर दूर्वा चढ़ाकर उनका पूजन-अर्चन करने का प्रचलन है। वैसे तो यह व्रत श्रावण मास की शुक्ल चतुर्थी तिथि को आता है परंतु कार्तिक मास की तिथि को भी किए जाने का प्रचलन है।
दूर्वा की उत्पत्ति : दूर्वा एक प्रकार की घास है जिसे प्रचलित भाषा में दूब भी कहा जाता है, संस्कृत में इसे दूर्वा, अमृता, अनंता, गौरी, महौषधि, शतपर्वा, भार्गवी आदि नामों से जाना जाता है। दूर्वा कई महत्वपूर्ण औषधीय गुणों से युक्त है। इसका वैज्ञानिक नाम साइनोडान डेक्टीलान है। मान्यता है कि समुद्र मंथन के समय जब समुद्र से अमृत-कलश निकला तो देवताओं से इसे पाने के लिए दैत्यों ने खूब छीना-झपटी की जिससे अमृत की कुछ बूंदे पृथ्वी पर भी गिर गईं थी जिससे ही इस विशेष घास दूर्वा की उत्पत्ति हुई।
गणेशजी को प्रिय दुर्वा : गणेश जी को भोग के साथ शभी के पत्ते और दुर्वा भी चढ़ाई जाती है। उन्हें 21 गुड़ की ढेली के साथ दूर्वा चढ़ाने से सभी तरह की मनोकामना पूर्ण होती है। गणेश पूजा में विनायक को 21 बार 21 दूर्वा की गाठें अर्पित करना चाहिए। शमी भी गणेशजी को अत्यंत प्रिय है। शमी के कुछ पत्ते नियमित गणेश जी को अर्पित करें तो घर में धन एवं सुख की वृद्धि होती है। अगर आपके जीवन में बहुत परेशानियां हैं, तो आप गणेश चतुर्थी के दिन हाथी को हरा चारा खिलाएं। इसके अलावा गणेशजी को मोदक और मोदीचूर के लड्डू भी पसंद है। सतोरी या पुरण पोली भी उन्हें अर्पित की जाती है। दक्षिण भारत में नारियल के दूध में चावल पकाकर अर्पित किए जाते हैं। श्रीखंड, केले का शीरा, रवा पोंगल और पयसम भी अर्पित किए जाते हैं।
श्रीगणेश को दूर्वा अर्पण करने का मंत्र
'श्री गणेशाय नमः दूर्वांकुरान् समर्पयामि।'
इस मंत्र के साथ श्रीगणेशजी को दूर्वा चढ़ाने से जीवन की सभी विघ्न समाप्त हो जाते हैं और श्रीगणेशजी प्रसन्न होकर सुख एवं समृद्धि प्रदान करते हैं।
क्यों प्रिय है दुर्वा : अन्य पौराणिक कथा के अनुसार अनलासुर नाम के राक्षस ने बहुत उत्पात मचा रखा था तो देवताओं के अनुरोध पर गणेशजी उससे युद्ध करते हुए उसे निगल गए थे और तब दैत्य के मुंह से तीव्र अग्नि निकली जिससे गणेश के पेट में बहुत जलन होने लगी। इस जल को शांत करने के लिए कश्यप ऋषि ने उन्हें दूर्वा की 21 गांठें बनाकर खाने के लिए दी। दूर्वा को खाते ही गणेश जी के पेट की जलन शांत हो गई और गणेशजी प्रसन्न हुए। कहा जाता है तभी से भगवान गणेश को दूर्वा चढ़ाने की परंपरा प्रारंभ हुई।