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जानिए सनातन धर्म तथा वास्तु शास्त्र में गंगा पूजन का महत्व

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* पुराणों के अनुसार वास्तु पूजा में गंगा का महत्व 
 
ब्रह्मपुराण के अनुसार ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि एवं हस्त नक्षत्र में गंगा का स्वर्ग से पृथ्वी लोक में अवतरण बताया गया है। इसीलिए इस तिथि को गंगावतरण अथवा गंगा दशहरा के नाम से सनातन धर्म में बहुत ही श्रद्धा एवं भक्ति के रूप में धार्मिक पर्व से मनाया जाता है इसीलिए इस तिथि को गंगा स्नान, जप, तप और विशेष उपासना की जाती है।
 
श्रद्धालु गंगा क्षेत्रों में जाकर गंगा स्नान का पुण्य अर्जित करते है अथवा घर के निकट के पवित्र सरोवरों, या घर पर भी गंगा का ध्यान कर स्नान के जल में गंगा का आह्वान कर मंत्रोच्चार के साथ श्रद्धापूर्वक स्नान कर गंगा स्नान का पुण्यलाभ अर्जित करते हैं, वैसे भी शास्त्रों में कहा है - 
 
गंगागंगेति यो ब्रूयात्‌ योजनानाम्‌ शतैरपि
मुच्यते सर्व पापेम्भ्यो विष्णुलोकं सगच्छति
 
अर्थात्‌ गंगा की सन्निधि से कोसों दूर होते हुए भी जो गंगा-गंगा ऐसा बोलते हैं वह समस्त पापों से विमुक्त हो कर विष्णुधाम के अधिकारी हो जाते हैं। 
किसी कार्य में गंगा जल की एक बूंद अभिषेक के जल में मिलाकर त्रिविधिताप निवारणी बन जाती है। गंगाजल में ऐसे औषधीय तत्व विद्यमान हैं जिनसे अनेक असाध्य रोगों का इलाज संभव कहा गया है। इसीलिए भारतीय जनमानस में गंगा का बहुत महत्व है।

आदि शंकाराचार्य गंगा जल के एक अंश का स्पर्श भी कर मोक्ष का कारण बताते हैं। 'गंगा जल लव कणिका पीता' तथा आधि-व्याधियों के निवारण के लिए गंगा जल को परम औषधि एवं वैद्य भगवान विष्णु को बताते हैं। 
 
'औषधं भागीरथी तोयं वैद्योनारायणो हरिः'  
 
धर्मशास्त्र के अनुसार पाप दस प्रकार के कहे गए हैं - तीन प्रकार के शरीर के और चार प्रकार के वाणी द्वारा किए गए एवं तीन मानसिक रूप से होने वाले पाप। अतः गंगा स्नान, गंगा एवं गंगा स्मरण, इन दस प्रकार के पापों को समाप्त कर मानव को कायिक, वाचिक एवं मानसिक रूप से निर्मल कर देती है। 
 
शास्त्रों के अनुसार इस तिथि को बुधवार हस्त नक्षत्र, व्यतीयात योग, गर करण आनंद, वृषभ राशि का सूर्य और कन्या राशि का चंद्रमा हो तो पूर्णयोग युक्त गंगा दशहरा महाफलदायक मानी गई है। गंगा जी के स्मरण के साथ उनको धरती पर लाने वाले रघुवंशी तपस्वी राजा भगीरथ एवं देवात्मा हिमालय का भी स्मरण करना चाहिए।
 
गंगा दशहरा को लोग दशहरा पत्रक जिसमें मकरवाहिनी गंगा का चित्र बना होता है तथा अगस्त्य, पुलस्त्य, वैशंपायन आदि तपस्वी ऋषियों का श्लोक लिखा होता ऐसे पत्रक को अपने घर की देहली के ऊपर मुख्य द्वार पर चिपका कर वास्तु दोष निवारण के लिए पूजा करते हैं। 
 
हिमालयी प्रदेशों में इस वास्तु पूजा का खासा महत्व है क्योंकि आकाशीय बिजली, अग्निभय और अन्य प्राकृतिक आपदाओं से बचाने में इस दशहरा यंत्र पत्रक का प्रत्यक्ष प्रभाव दिखाई देता है। गोमुख से गंगा सागर तक समूचे गांगेय प्रदेशों में गंगा दशहरा बड़े उत्साह से मनाया जाता है। साथ ही उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश सहित अन्य प्रांतों के सनातन धर्मावलंबी गंगा दशहरा पर्व को पूरी श्रद्धा भक्ति से मनाते हैं। सनातन धर्म मंदिरों इस अवसर पर यज्ञ, हवन एवं गंगा माहात्म्य की कथा का दिन भर क्रम रहता है।

इस प्रकार गंगा दशहरा का पर्व, शास्त्रीय विधि-विधान, लोक रीति एवं भक्ति भावना तीनों प्रकार से मनाया जाता है। 
 
एक कथा के अनुसार संत रविदास जी ने जब मन चंगा तो कठौती में गंगा का उच्चारण किया तो गंगा माई ने उन्हें सोने का कंगन प्रस्तुत कर दिया। अतः गंगा का स्मरण भक्ति भाव एवं श्रद्धा से करने पर उनकी प्रत्यक्ष कृपा प्राप्त हो जाती है। 
 
दशहरायै गंगायै नमः
 

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