* पूर्व और पश्चिम निमाड़ में एकादशी से मनाते हैं गणगौर का 5 दिवसीय पर्व
गणगौर उत्सव का पर्व पूर्व निमाड़ (खंडवा) और पश्चिम निमाड़ (खरगोन) में चैत्र कृष्ण ग्यारस (एकादशी) से प्रारंभ होता है व चैत्र शुक्ल तीज गणगौर तीज तक चलता है। कहीं-कहीं यह त्योहार दशमी (दशामाता) के दिन से प्रारंभ किया जाता है।
प्रथम दिन गणगौर खड़े किए जाते हैं अर्थात ज्वारे बोए जाते हैं। प्रथम दिन से सुबह महिलाएं स्नान करके स्वच्छ व सुंदर वस्त्र धारण कर गौर (गौरी) का पूजन करती हैं व गौरी के मंगल गीत गाती हैं। यह उत्सव 5वें दिन तक चलता है। शाम को सुहागिन महिलाएं व कुंआरी कन्याएं पाती खेलने के लिए अमराई जाती हैं अर्थात जहां आम के वृक्ष रहते हैं, वहां पर महिलाएं आपसी हंसी-मजाक व मंगल गीत गाती हैं।
6ठे दिन माता घुंघड़ी है अर्थात माताजी की घुंघ पर लापसी (अर्थात मीठा गुड़, हलवा व गेहूं को पकाते हैं गुड़ में) का भोग लगता है एवं भक्तों को बांटा जाता है।
7वें दिन गणगौर माता का श्रृंगार होता है। कुछ लोग गणगौर अर्थात रणुबाई व धनीयर राजा दोनों को जोड़े से बैठाते हैं अर्थात रथ श्रृंगार किया जाता है जिसमें वस्त्र, साड़ी, ब्लाउज, चूड़ी, बिछुड़ी और अन्य श्रृंगार किया जाता है।
इस दिन नि:संतान दंपति मां की गोद भरते हैं तो संतान की प्राप्ति होती है, ऐसी मान्यता है। रणुबाई अर्थात गणगौर माता पार्वतीजी का रूप हैं व धनीयर राजा को शिवजी का रूप माना जाता है अर्थात गणगौर में शिव-शक्ति का पूजन व उत्सव मनाया जाता है।
8वें दिन माताजी को पानी पिलाने ले जाते हैं अर्थात नदी किनारे या तालाब किनारे ले जाते हैं। यदि ऐसा नहीं हो पाता है तो किसी मैदान में ही सुहागिन महिलाएं अपने पल्लू से मां का मुंह गीला करती हैं।
9वें दिन माता का बड़ा त्योहार होता है, जो 'गणगौर तीज' के नाम से जाना जाता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं सुहाग की रक्षा के लिए मां का पूजन करती हैं व कन्याएं इच्छित वर की कामना करती हुईं मां का पूजन करती हैं। निमाड़, पश्चिम निमाड़ व पूर्व निमाड़ में इस दिन जोड़ों (अर्थात पति-पत्नी) को भोजन कराया जाता है।