गोवत्स द्वादशी 2023 के शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व
Bach Baras 2023: इस वर्ष गोवत्स द्वादशी व्रत 9 नवंबर 2023, दिन गुरुवार को पड़ रहा है। धार्मिक मान्यतानुसार प्रतिवर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी को गोवत्स द्वादशी के रूप में मनाया जाता है। इस पर्व को अन्य नाम बच्छ दुआ, वसु द्वादशी या बछ बारस के नाम से भी जाना जाता है। बछ बारस या गोवत्स द्वादशी व्रत पुत्र की लंबी उम्र के लिए रखा जाता है, जो कि भारत के अधिकांश हिस्सों में कार्तिक कृष्ण द्वादशी को मनाते हैं।
2023 में गोवत्स द्वादशी पूजा के शुभ मुहूर्त : Thursday Govatsa Dwadashi
गोवत्स द्वादशी . गुरुवार, 9 नवंबर, 2023 को
प्रदोष काल गोवत्स द्वादशी मुहूर्त- 05.28 पी एम से 07.46 पी एम
अवधि- 02 घंटे 18 मिनट्स
द्वादशी तिथि प्रारंभ- 9 नवंबर, 2023 को 02.11 ए एम से,
द्वादशी तिथि समाप्त- 10 नवंबर 2023 को 04.05 ए एम तक।
गुरुवार के दिन का चौघड़िया
शुभ- 04.58 ए एम से 06.32 ए एम
चर- 09.39 ए एम से 11.13 ए एम
लाभ- 11.13 ए एम से 12.47 पी एम
अमृत- 12.47 पी एम से 02.20 पी एम
शुभ- 03.54 पी एम से 05.28 पी एम
रात्रि का चौघड़िया
अमृत- 05.28 पी एम से 06.54 पी एम
चर- 06.54 पी एम से 08.20 पी एम
लाभ- 11.13 पी एम से 10 नवंबर 12.39 ए एम तक,
शुभ- 02.05 ए एम से 10 नवंबर 03.31 ए एम तक,
अमृत- 03.31 ए एम से 10 नवंबर 04.58 ए एम तक।
पूजन विधि-
- बछ बारस के दिन सुबह स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- फिर दूध देने वाली गाय को बछड़े सहित स्नान कराएं, फिर उनको नया वस्त्र चढ़ाते हुए पुष्प अर्पित करें और तिलक करें।
- कुछ स्थानों पर लोग गाय के सींगों को सजाते हैं और तांबे के पात्र में इत्र, अक्षत, तिल, जल तथा फूलों को मिलाकर गौ का प्रक्षालन करते हैं।
- गौ माता के पैरों में लगी मिट्टी से अपने माथे पर तिलक लगाएं।
- इस दिन पूजा के बाद गाय को उड़द से बना भोजन कराएं।
- मोठ, बाजरा पर रुपया रखकर अपनी सास को दें।
- गौ माता का पूजन करने के बाद बछ बारस की कथा सुनें।
- सारा दिन व्रत करके गोधूलि में गौ माता की आरती करें।
- उसके बाद भोजन ग्रहण करें।
महत्व: पुराणों में गौमाता के समस्त अंग-प्रत्यंग में देवी-देवताओं की स्थिति का विस्तृत वर्णन किया गया है, जिसमें पद्म पुराण के अनुसार गाय के मुख में चारों वेदों का निवास हैं। उसके सींगों में भगवान शंकर और विष्णु सदा विराजमान रहते हैं।
गौमाता/ गाय के उदर में कार्तिकेय, मस्तक में ब्रह्मा, ललाट में रुद्र, सीगों के अग्र भाग में इन्द्र, दोनों कानों में अश्विनीकुमार, नेत्रों में सूर्य और चंद्र, दांतों में गरुड़, जिह्वा में सरस्वती, अपान (गुदा) में सारे तीर्थ, मूत्र-स्थान में गंगा जी, रोमकूपों में ऋषि गण, पृष्ठभाग में यमराज, दक्षिण पार्श्व में वरुण एवं कुबेर, वाम पार्श्व में महाबली यक्ष, मुख के भीतर गंधर्व, नासिका के अग्रभाग में सर्प, खुरों के पिछले भाग में अप्सराएं स्थित हैं।
अन्य पुराणों में यह भी वर्णन मिलता है कि कार्तिक, माघ, वैशाख और श्रावण महीनों की कृष्ण द्वादशी को बछ बारस या गोवत्स द्वादशी व्रत होता है। इस दिन गौ माता और बछड़े की पूजा की जाती है। तथा व्रत में द्विदलीय अन्न का प्रयोग किया जाता है। इस दिन गाय का दूध, दही, गेहूं और चावल न खाने की मान्यता है। साथ ही चाकू द्वारा काटा गया कोई भी पदार्थ इस दिन खाना भी वर्जित कहा गया है।
यह त्योहार संतान की कामना व उसकी सुरक्षा के लिए किया जाता है। इसमें गाय-बछड़ा और बाघ-बाघिन की मूर्तियां बना कर उनकी पूजा की जाती है। व्रत के दिन शाम को बछड़े वाली गाय की पूजा कर कथा सुनी जाती है फिर प्रसाद ग्रहण किया जाता है।
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