श्रावण शुक्ल तृतीया को हरियाली तीज मनाई जाती है। यह भगवान शिव तथा गौरी की आराधना का दिन है। शिव और गौरी सुखद व सफल दांपत्य जीवन को परिभाषित करते हैं, अतः इनकी पूजा इसी अभिलाषा से की जाती है कि वे पूजन तथा व्रत करने वालों को भी यही वरदान दें।
असल में हर त्योहार या उत्सव को मनाने के पीछे के पारंपरिक तथा सांस्कृतिक कारणों के अलावा एक और कारण होता है, मानवीय भावनाओं का। चूंकि प्रकृति मनुष्य को जीवन देती है, जल, नभ और थल मिलकर उसके जीवन को सुंदर बनाते हैं और जीवनयापन के अनगिनत स्रोत उसे उपलब्ध करवाते हैं। इसी विश्वास और श्रद्धा के साथ प्रकृति से जुड़े तमाम त्योहार तथा दिवस मनाए जाते हैं।
इसके साथ ही इस दिन वृक्षों, फसलों, नदियों तथा पशु-पक्षियों को पूजा जाता है, उनकी आराधना की जाती है। ताकि समृद्धि के ये सूचक हम पर अपनी कृपा सदैव बनाए रखें।
भारतभर में कई स्थानों पर कुंआरी युवतियां भी इरियाली तीज का व्रत अच्छे वर की कामना से रखती हैं। यह दिन महिलाओं के लिए श्रृंगार तथा उल्लास से भरा होता है। हरी-भरी वसुंधरा के ऊपर इठलाते इंद्रधनुषी चुनरियों के रंग एक अलग ही छटा बिखेर देते हैं। महिलाएं पारंपरिक तरीकों से श्रृंगार करती हैं तथा मां गौरी-पार्वती से यह कामना करती हैं कि उनकी जिंदगी में ये रंग हमेशा बिखरे रहें।
इस त्योहार में विवाहित महिलाएं इस दिन खासतौर पर मायके आती हैं और यहां से उन्हें ढेर सारे उपहार दिए जाते हैं, जिसे तीज का शगुन या सिंजारा कहा जाता है। इसी तरह जिस युवती का विवाह तय हो गया है, उसे उसके ससुराल से ये सिंजारा भेजा जाता है।
पूजन के बाद महिलाएं मिलकर शिव-गौरी के सुखद वैवाहिक जीवन से जुड़े लोकगीत गाती हैं। इन लोकगीतों की मिठास समूची प्रकृति में घुली हुई सी महसूस होती है। इसके साथ ही आनंद लिया जाता है सावन के झूलों का भी। झूलों पर ऊंची-ऊंची पेंग लेती महिलाओं का उत्साह देखते ही बनता है।
मेहंदी भरे हाथों की खनक तथा सुमधुर ध्वनि के साथ छनकती चूड़ियां, माहौल को संगीतमय बना देती हैं। सौभाग्य और सुखी दांपत्य जीवन की कामना से मनाई जाने वाली तीन तीजों में से एक हरियाली तीज प्रकृति के सुंदर वरदानों के लिए उसका शुक्रिया अदा करने का भी उत्सव बन जाती है। खास तौर पर इसीलिए हमारे धार्मिक व्रत-त्योहारों में हरियाली तीज का भी विशेष महत्व माना गया है