Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

पिठोरी अमावस्या पर रंग-बिरंगी वस्तुओं से सजेंगे पशुधन, उत्साह से मनेगा पोला पर्व

हमें फॉलो करें पिठोरी अमावस्या पर रंग-बिरंगी वस्तुओं से सजेंगे पशुधन, उत्साह से मनेगा पोला पर्व
webdunia

राजश्री कासलीवाल

अगस्त महीने में खेती-किसानी का काम समाप्त हो जाने के बाद भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को पोला त्योहार मनाया जाता है। प्रतिवर्ष पिठोरी अमावस्या पर मनाया जाने वाला पोला-पिठोरा पर्व मूलत: खेती-किसानी से जुड़ा त्योहार है। भाद्रपद कृष्ण अमावस्या को यह पर्व विशेषकर महाराष्ट्र, कर्नाटक एवं छत्तीसगढ़ में मनाया जाता है।
 
महाराष्ट्रीयन समाज में पिठोरी अमावस्या पर पोला (पोळा) पर्व धूमधाम से मनाया जाता है और यह छत्तीसगढ़ का लोक पर्व भी है। इस दिन अपने पुत्रों की दीर्घायु के लिए चौसष्ठ योगिनी और पशुधन का पूजन किया जाएगा। इस अवसर पर जहां घरों में बैलों की पूजा की जाएगी, वहीं लोग पकवानों का लुत्फ भी उठाएंगे। इसके साथ ही इस दिन 'बैल सजाओ प्रतियोगिता' का आयोजन किया जाता है।
 
पोला त्योहार मनाने के पीछे यह कहावत है कि अगस्त माह में खेती-किसानी का काम समाप्त होने के बाद इसी दिन अन्नमाता गर्भ धारण करती है यानी धान के पौधों में इस दिन दूध भरता है इसीलिए यह त्योहार मनाया जाता है। यह त्योहार पुरुषों-स्त्रियों एवं बच्चों के लिए अलग-अलग महत्व रखता है। इस दिन पुरुष पशुधन (बैलों) को सजाकर उनकी पूजा करते हैं।
 
स्त्रियां इस त्योहार के वक्त अपने मायके जाती हैं। छोटे बच्चे मिट्टी के बैलों की पूजा करते हैं। इस दिन पोला पर्व की शहर से लेकर गांव तक धूम रहती है। इस दौरान जगह-जगह बैलों की पूजा-अर्चना होती है। गांव के किसान भाई सुबह से ही बैलों को नहला-धुलाकर सजाएंगे और फिर घरों में लाकर विधि-विधान से उनकी पूजा-अर्चना करके घरों में बने पकवान उन्हें खिलाते हैं। 
 
पर्व के 2-3 दिन पहले से ही बाजारों में मिट्टी के बैलजोड़ी बिकते दिखाई देते हैं। बढ़ती महंगाई के कारण यह अब करीबन 20 रुपए से लेकर 100-200 रुपए तक की जोड़ी में बेचे जाते हैं। इसके अलावा मिट्टी के अन्य खिलौनों की भी भरमार बाजारों में दिखाई देती है। इस दिन मिट्टी और लकड़ी से बने बैल चलाने की भी परंपरा है। 
 
दरअसल, यह त्योहार कृषि आधारित पर्व है। वास्तव में इस पर्व का मतलब खेती-किसानी, जैसे निंदाई-रोपाई आदि का कार्य समाप्त हो जाना है, लेकिन कई बार अनियमित वर्षा के कारण ऐसा नहीं हो पाता है। बैल किसानों के जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। किसान बैलों को देवतुल्य मानकर उसकी पूजा-अर्चना करते हैं।
पहले कई गांवों में इस अवसर पर बैल दौड़ का भी आयोजन किया जाता था, लेकिन समय के साथ यह परपंरा अब समाप्त होने लगी है। इस अवसर पर बैल दौड़ और बैल सौंदर्य प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है। इसमें अधिक से अधिक किसान अपनी बैलों के साथ भाग लेते हैं। खास सजी-संवरी बैलों की जोड़ी को इस दौरान पुरस्कृत भी किया जाता है।
 
महाराष्‍ट्रीयन परिवारों में पोला पर्व के दिन घरों में खासतौर पर पूरणपोली (पूरणपोळी/ पोसाटोरी) और खीर बनाई जाती है। बैलों को सजाकर उनका पूजन किया जाता है, फिर उन्हें पूरणपोली और खीर भी खिलाई जाती है। शहर के प्रमुख स्थानों से उनकी रैली निकाली जाती है।
 
जिन-जिन घरों में बैल होते हैं, वे इस दिन अपने बैलों की जोड़ी को अच्छी तरह सजा-संवारकर इस दौड़ में लाते हैं। मोती मालाओं तथा रंग-बिरंगे फूलों और प्लास्टिक के डिजाइनर फूलों और अन्य आकृतियों से सजी खूबसूरत बैलों की जोड़ी हर इंसान का मन मोह लेती है।
 
कई समाजवासी पोला पर्व को बहुत ही उत्साहपूर्वक मनाते हैं। बैलों की जोड़ी का यह पोला उत्सव देखते ही बनता है। खासतौर पर छत्तीसगढ़ में इस लोकपर्व पर घरों में ठेठरी, खुरमी, चौसेला, खीर-पूरी जैसे कई लजीज व्यंजन बनाए जाते हैं।
 
इस पूजन के बाद माताएं अपने पुत्रों से पहले 'अतिथि कौन?' इस तरह पूछेंगी और इस दौरान पुत्र अपना नाम माता को बताएंगे, उसके बाद ही पूरणपोली और खीर का प्रसाद ग्रहण करेंगे। महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ में मनाया जाने वाला यह लोक पर्व यह नजारा देखने में बहुत ही खूबसूरत दिखाई देता है।


Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

पोला पर्व का पोला नाम क्यों पड़ा, पढ़ें दिलचस्प जानकारी