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कार्तिक पूर्णिमा पर होगा भगवान कार्तिकेय का पूजन

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पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कार्तिक मास बारह मासों में सबसे श्रेष्ठ मास माना गया है। यह भगवान कार्तिकेय द्वारा की गई साधना का माह माना जाता है। इस कारण ही इसका नाम कार्तिक महीना पड़ा। 

 
इस दिन कार्तिकेय के पूजन का विशिष्ठ महत्व है। कहा जाता है कि कार्तिकेय को भगवान विष्णु द्वारा धर्म मार्ग को प्रबल करने की प्रेरणा दी गई है। कार्तिकेय ने इसी आधार पर धर्मशास्त्र में भगवान विष्णु के दामोदर अवतार तथा अर्द्घांगिनी राधा का विशेष उल्लेख किया है।
 
इस दिन वर्षभर में एक बार खुलने वाले भगवान कार्तिकेय मंदिर के पट खुलते हैं। मान्यता है कि कार्तिकेय भगवान के दर्शन करने से घरों में खुशहाली व सुख-शांति एक वर्ष तक बनी रहती है। 
 
मध्यप्रदेश के संभवतः इकलौते प्राचीन मंदिरों में से एक ग्वालियर के गंगा मंदिर, जीवाजीगंज में स्थित है। मंदिर के पुजारी पं. जमनाप्रसाद शर्मा की पांच पीढ़‍ियां इस मंदिर में वर्षों से सेवा करती आ रही हैं। 
 
पुजारी का कहना है कि शास्त्रों में यह वर्णन है कि शंकरजी की आज्ञा के बाद जब भगवान गणेश और कार्तिकेय पृथ्वी परिक्रमा के लिए गए थे। गणेश जी भारी-भरकम शरीर वाले होने के कारण एक जगह बैठ गए और कार्तिकेय मोर पर सवार होकर पृथ्वी परिक्रमा पर चले गए। कार्तिकेय काफी वर्षों तक भ्रमण करते रहे और परिक्रमा पूरी नहीं कर सके। 
 
गणेशजी ने धीरे-धीरे अपने माता-पिता की परिक्रमा पूरी कर ली और गणेश जी को बुद्धिमान मान लिया गया। बड़ा मानकर गणेशजी की शादी करा दी। जब कार्तिकेय वापस आए तो वे इस बात से क्रोधित होकर तपस्या पर चले गए। 
 
जब शंकर-पार्वती कार्तिकेय को मनाने के लिए गए तो उन्होंने शंकर-पावती को शाप दे दिया कि जो स्त्री दर्शन करेंगी तो सात जन्म वह विधवा रहेंगी और पुरुष दर्शन करेंगे तो वे सात जन्म तक नरक को भोगेंगे। 
 
फिर शंकर-पार्वती ने आग्रह किया कि कोई ऐसा दिन हो, जब आपके दर्शन हो सकें। तब भगवान कार्तिकेय ने कहा कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन जो दर्शन करेगा, उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी। जब से यह एक वर्ष में एक बार कार्तिकेय पूर्णिमा को खुलता है। 
 
इस मंदिर में गंगा, जमुना, सरस्वती, हनुमान, लक्ष्मी नारायण व भगवान कार्तिकेय आदि के मंदिर हैं। जिसमें भगवान कार्तिकेय का मंदिर वर्ष में एक बार कार्तिकेय पूर्णिमा को ही खुलता है। वहीं अन्य मंदिर प्रतिदिन खुलते हैं। कार्तिकेय पूर्णिमा पर सुबह अभिषेक के साथ दिन भर भजन-कीर्तन होंगे। वहीं दूसरे दिन सुबह 4 बजे भोग लगाकर मंदिर के पट बंद होंगे। इसी मद्देनजर मंदिर प्रशासन ने व्यापक इंतजाम कर रखे हैं।
 
इस दिन क्या करें - 
 
* कार्तिक पूर्णिमा के दिन भी किसी भी तीर्थ के समीप घी का दीपक लगाकर ब्राह्मण को सीदा दान करना चाहिए। 
 
* तपश्चात तिल्ली के तेल के दीपों को नदी में छोड़ने का विधान धर्मशास्त्र में बताया गया है। ऐसा करने से पितरों को आदित्य विष्णुलोक की प्राप्ति होती है।

 

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