हिंदी पंचांग के अनुसार हर माह की त्रयोदशी को दक्षिण भारत में कार्तिगाई दीपम का पर्व मनाया जाता है। मार्गशीर्ष माह में इसका खासा महत्व रहता है। इस दिन सूर्यास्त के पश्चात दीपवाली की तरह दीप जलाकर भगवान शिव और उनके पुत्र कार्तिकेय की पूजा की जाती है। इस दिन का नाम कर्तिका नक्षत्र से लिया गया है, क्योंकि इस दिन कृतिका नक्षत्र प्रबल रहता है।
महत्व : इस दिन भगवान शिव और कार्तिकेय की पूजा करने से जीवन में नकारात्मकता शक्ति का नाश होकर सकारात्मक ऊर्जा और प्रकाश का संचार होने लगता है। भगवान कार्तिकेय की कृपा से परिवार में सबकुछ कुशल मंगल रहता है।
कहते हैं कि यह पर्व ब्रह्मा और विष्णु की उस प्रतियोगिता से जुड़ा है जिसमें वे दोनों शिवजी को अपनी श्रेष्ठता का परिचय देने के लिए एक ज्योति स्तंभ के अंतिम छोर को देखने के लिए जाते हैं। कार्तिगाई दीपम पर भगवान शिव के इसी ज्योति स्वरूप का पूजन किया जाता है।
पूजा विधि:
1. इस दिन भगवान शिव के दिव्य ज्योति स्वरूप की पूजा होती है। इस दिन पंक्तिबद्धि तरह से दीपक जलाते हैं।
2. प्रातः काल उठने के बाद स्नानादि से निवृत होकर व्रत संकल्प लें। इसके बाद भगवान शिवजी की पूजा-उपासना और आरती करें।
3.यदि आप दिनभर निराहार उपवास करने में सक्षम नहीं हैं तो फलाहार कर सकते हैं।
4. संध्याकाल में शुभ मुहूर्त में दीप प्रज्वलित करके भगवान शिव का आह्वान करें और पुन: उनकी पूजा और अरती करें।
5. अगले दिन प्रातः भगवान की पूजा-अरती करने के बाद स्वयं भोजन ग्रहण करके व्रत का पारणा करें।