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जानकी जयंती आज : कैसे प्रकट हुई थीं मां सीता, इस दिन करें 16 तरह के दान, पाएं पुण्य और वरदान

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, मंगलवार, 10 मई 2022 (11:47 IST)
Janaki Jayanti 2022 :10 मई 2022 मंगलवार को आज जानकी जयंती है, जिसे सीता नवमी भी कहते हैं। इस दिन माता सीता प्रकट हुई थी। आओ जानते हैं कि कैसे प्रकट हुई थी माता सीता और इस दिन करते हैं 16 तरह के दान, तो मिलता है पुण्य और वरदान।
 
 
कैसे प्रकट हुई थी माता सीता : 
1. देवी सीता मिथिला के राजा जनक की ज्येष्ठ पुत्री थीं इसलिए उन्हें 'जानकी' भी कहा जाता है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार एक बार मिथिला में पड़े भयंकर सूखे से राजा जनक बेहद परेशान हो गए थे, तब इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए उन्हें एक ऋषि ने यज्ञ करने और धरती पर हल चलाने का सुझाव दिया। उस ऋषि के सुझाव पर राजा जनक ने यज्ञ करवाया और उसके बाद राजा जनक धरती जोतने लगे। तभी उन्हें धरती में से सोने की डलिया में मिट्टी में लिपटी हुई एक सुंदर कन्या मिली। उस कन्या को हाथों में लेकर राजा जनक ने उसे 'सीता' नाम दिया और उसे अपनी पुत्री के रूप में अपना लिया।
 
2. माता सीता असल में धरती की पुत्री थी। माता सीता के भाई मंगलदेव थे। सीता विवाह के समय एक प्रसंग आता है कि विवाह का मंत्रोच्चार चल रहा था और उसी बीच कन्या के भाई द्वारा की जाने वाली रस्म की बारी आई। इस रस्म में कन्या का भाई कन्या के आगे-आगे चलते हुए लावे का छिड़काव करता है। विवाह करवाने वाले पुरोहितजी ने जब इस प्रथा के लिए कन्या के भाई को बुलाने के लिए कहा तो वहां समस्या खड़ी हो गई, क्योंकि जनक का कोई पुत्र नहीं था। ऐसे में सभी एक दूसरे से विचार करने लगे। इसके चलते विवाह में विलंब होने लगा।
 
अपनी पुत्री के विवाह में इस प्रकार विलम्ब होता देखकर पृथ्वी माता भी दुखी हो गयी। तभी अकस्मात एक श्यामवर्ण का युवक उठा और इस रस्म को पूरा करने के लिए आकर खड़ा हो गया और कहने लगा कि मैं हूं इनका भाई। दरअसल, वह और कोई नहीं बल्कि स्वयं मंगलदेव थे जो वेश बदलकर नवग्रहों सहित श्रीराम का विवाह देखने को वहां उपस्थित थे। चूंकि माता सीता का जन्म पृथ्वी से हुआ था और मंगल भी पृथ्वी के पुत्र थे। इस नाते वे सीता माता के भाई भी लगते थे। इसी कारण पृथ्वी माता के संकेत से वे इस विधि को पूर्ण करने के लिए आगे आए।
 
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Daan
16 महादान : 
1. तुलादान या तुलापुरुष दान, हिरण्यगर्भ दान, ब्रह्माण्ड दान, कल्पवृक्ष दान, गोसहस्त्र दान, हिरण्यकामधेनु दान, हिरण्याश्व दान, हिरण्याश्वरथ दान, हेमहस्तिरथ दान, पंचलांगलक दान, धरा दान, विश्वचक्र दान, कल्पलता दान, सप्तसागर दान, रत्नधेनु दान तथा महाभूतघट दान ये दान सामान्य दान नहीं है, अपितु सर्वश्रेष्ठ दान हैं। हालांकि इन सभी दानों की जगह प्रतिकात्मक दान किए जाते हैं। जैसे अन्नदान, गोदान, वस्त्रदान, छातादान, पलंगदान, कंबलदान, विद्यादान, आदि।
 
2. गाय, स्वर्ण, चांदी, रत्न, विद्या, तिल, कन्या, हाथी, घोड़ा, शय्या, वस्त्र, भूमि, अन्न, दूध, छत्र तथा आवश्यक सामग्री सहित घर इन 16 वस्तुओं के दान को महादान कहते हैं। मान्यता है कि जो व्यक्ति इस दिन व्रत रखता है एवं राम-सीता का विधि-विधान से पूजन करता है, उसे 16 महान दानों का फल, पृथ्वी दान का फल तथा समस्त तीर्थों के दर्शन का फल मिल जाता है। 
 
3. अग्रि पुराण में, घोड़े, हाथी, तिल, सेवक, सेविका, रथ, भूमि, भवन, वधू, कपिला गाय, स्वर्ण आदि को मिलाकर महादान कहा गया है। मत्स्यपुराण में कहा गया है कि भरत, महाराज पृथु, भक्त प्रह्लाद, अंबरीश, भार्गव, कतिनीर्य, वासुदेव, अर्जुन, राम आदि ने भी अपने युग में ये महादान किए थे।

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