माघ माह की सप्तमी को मां नर्मदा की जयंती या जन्मोत्सव मनाया जाता है। कहते हैं कि मां नर्मदा की परिक्रमा या यात्रा दो तरह से होती है। पहला हर माह नर्मदा पंचक्रोशी यात्रा होती है और दूसरा हर वर्ष नर्मदा की परिक्रमा होती है। यह भी कहा जाता है कि नर्मदा नदी को पार नहीं किया जाता है।
नर्मदा परिक्रामा क्यों करते हैं : नर्मदा परिक्रमा या यात्रा दो तरह से होती है। पहला हर माह नर्मदा पंचक्रोशी यात्रा होती है और दूसरा हर वर्ष नर्मदा की परिक्रमा होती है। प्रत्येक माह होने वाली पंचक्रोशी यात्रा की तिथि कैलेंडर में दी हुई होती है। पंचकोसी यात्रा नर्मदा परिक्रमा के कई रूप है जैसे लघु पंचकोसी यात्रा, पंचकोसी, अर्ध परिक्रमा और पूर्ण परिक्रमा।
हिन्दू धर्म में परिक्रमा का बड़ा महत्त्व है। परिक्रमा से अभिप्राय है कि सामान्य स्थान या किसी व्यक्ति के चारों ओर उसकी बाहिनी तरफ से घूमना। इसको 'प्रदक्षिणा करना' भी कहते हैं, जो षोडशोपचार पूजा का एक अंग है। नर्मदा परिक्रमा या यात्रा एक धार्मिक यात्रा है। नर्मदा की परिक्रमा का ही ज्यादा महत्व रहा है। नर्मदाजी की प्रदक्षिणा यात्रा में एक ओर जहां रहस्य, रोमांच और खतरे हैं वहीं अनुभवों का भंडार भी है। इस यात्रा के बाद आपकी जिंदगी बदल जाएगी। परिक्रमा करने से पापों का नाश होकर व्यक्ति को मोक्ष मिलता है या वह मरने के बाद सद्गति को प्राप्त होता है। पुराणों के अनुसार नर्मदा परिक्रमा करने से उत्तम जीवन में कुछ नहीं।
क्यों नहीं करते हैं नर्मदा को पार : पौराणिक मान्यता के अनुसार नर्मदा कुंवारी नदी है इसकी परिक्रमा की जाती है इसे नाव से पार नहीं किया जाता है। कहीं भी नर्मदा जी को पार न करें। जहां नर्मदा जी में टापू हो गए वहां भी न जावें, किन्तु जो सहायक नदियां हैं, नर्मजा जी में आकर मिलती हैं, उन्हें भी पार करना आवश्यक हो तो केवल एक बार ही पार करें। प्रतिदिन नर्मदाजी में स्नान करने से मन और शरीर निर्मल और पवित्र हो जाता है। जलपान भी नर्मदा जल का ही करने से सभी पापों का नाश होकर आयु वृद्धि होती है।
नर्मदाजी वैराग्य की अधिष्ठात्री मूर्तिमान स्वरूप है। गंगाजी ज्ञान की, यमुनाजी भक्ति की, ब्रह्मपुत्रा तेज की, गोदावरी ऐश्वर्य की, कृष्णा कामना की और सरस्वतीजी विवेक के प्रतिष्ठान के लिए संसार में आई हैं। सारा संसार इनकी निर्मलता और ओजस्विता व मांगलिक भाव के कारण आदर करता है व श्रद्धा से पूजन करता है। मानव जीवन में जल का विशेष महत्व होता है। यही महत्व जीवन को स्वार्थ, परमार्थ से जोड़ता है। प्रकृति और मानव का गहरा संबंध है। यह नदी विश्व की पहली ऐसी नदी है जो अन्य नदियों की अपेक्षा विपरीत दिशा में बहती है।
मत्स्यपुराण में नर्मदा की महिमा इस तरह वर्णित है- कनखल क्षेत्र में गंगा पवित्र है और कुरुक्षेत्र में सरस्वती। परन्तु गांव हो चाहे वन, नर्मदा सर्वत्र पवित्र है। यमुना का जल एक सप्ताह में, सरस्वती का तीन दिन में, गंगाजल उसी दिन और नर्मदा का जल उसी क्षण पवित्र कर देता है।' एक अन्य प्राचीन ग्रन्थ में सप्त सरिताओं का गुणगान इस तरह है।