माता शाकंभरी का उत्सव 28 दिसंबर 2025 से प्रारंभ होकर 13 जनवरी 2026 को समाप्त होगा। 07 जनवरी से शाकम्भरी नवरात्रि प्रारंभ होगी जो 13 जनवरी को समाप्त होगी। 3 जनवरी 2026 शनिवार को शाकंभरी जयंती मनाई जाएगी। शाकम्भरी नवरात्रि, पौष शुक्ल अष्टमी से आरम्भ होकर पौष पूर्णिमा पर समाप्त होती है।
पर्व की खासियत: दुर्गा सप्तशती के मूर्ति रहस्य में मां शाकंभरी का वर्ण नीला बताया गया है, उनके नेत्र नील कमल के सदृश कहे गए हैं तथा इन्हें पद्मासना अर्थात् कमल पुष्प पर विराजित हैं, जहां उनकी एक मुट्ठी में कमल पुष्प और दूसरी मुट्ठी बाणों से भरी रहती है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार आदिशक्ति दुर्गा के अवतारों में से एक देवी शाकंभरी मानी गई हैं। दुर्गा के सभी अवतारों में से शाकंभरी, रक्तदंतिका, भीमा, भ्रामरी आदि प्रसिद्ध हैं। वैसे तो वर्ष भर में चार नवरात्रि मानी गई है, आश्विन माह के शुक्ल पक्ष में शारदीय नवरात्रि, चैत्र शुक्ल पक्ष में आने वाली चैत्र नवरात्रि, तृतीय और चतुर्थ नवरात्रि माघ और आषाढ़ माह में मनाई जाती है। परंतु तंत्र-मंत्र के साधकों को अपनी सिद्धि के लिए खास माने जाने वाली शाकंभरी नवरात्रि का आरंभ पौष मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से होता है, जो पौष पूर्णिमा पर समाप्त होता है।
पूजा की तैयारी:
शाकंभरी देवी, जिन्हें "वनस्पतियों की देवी" माना जाता है, की पूजा मुख्य रूप से शाकंभरी नवरात्रि (पौष शुक्ल अष्टमी से पूर्णिमा तक) या शाकंभरी जयंती के दिन की जाती है। इनकी पूजा में ताजी सब्जियों और फलों का विशेष महत्व होता है। यहाँ पूजा की तैयारी और विधि के मुख्य चरण दिए गए हैं-
1. आवश्यक सामग्री:
देवी शाकंभरी की पूजा अन्य देवियों से थोड़ी अलग होती है क्योंकि इसमें प्रकृति का अंश अधिक होता है:
सब्जियां और फल: कम से कम 5 या उससे अधिक प्रकार की ताजी हरी सब्जियां (जैसे पालक, लौकी, तोरई आदि) और मौसमी फल।
पूजा की चौकी: लकड़ी की चौकी और उस पर बिछाने के लिए लाल रंग का कपड़ा।
कलश: तांबे या मिट्टी का कलश, आम के पत्ते और नारियल।
अन्य सामग्री: मां शाकंभरी की तस्वीर या प्रतिमा, गंगाजल, अक्षत (चावल), कुमकुम, दीपक, घी, अगरबत्ती और ताजे फूल।
विशेष भोग: हलवा-पूरी, मिश्री और मेवे।
2. पूजा की तैयारी और विधि
सफाई और स्थापना: सुबह जल्दी स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें। पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें। चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर मां शाकंभरी की प्रतिमा स्थापित करें।
सब्जियों से सजावट: शाकंभरी देवी के चारों ओर ताजी सब्जियों और फलों का ढेर लगाएं या उन्हें कलात्मक रूप से सजाएं। यह माना जाता है कि मां ने अकाल के समय अपने शरीर से सब्जियां उत्पन्न की थीं, इसलिए उन्हें 'शाक' (सब्जी) अत्यंत प्रिय है।
कलश स्थापना: यदि आप विस्तृत पूजा कर रहे हैं, तो गणेश पूजन के बाद कलश स्थापित करें।
अभिषेक और तिलक: माता को जल और गंगाजल अर्पित करें। कुमकुम से तिलक लगाएं और अक्षत व पुष्प चढ़ाएं।
आरती और पाठ: 'शाकंभरी चालीसा' या 'दुर्गा सप्तशती' के पाठ के बाद माता की आरती करें।
3. विशेष भोग (प्रसाद): मां शाकंभरी को शाकाहारी और सात्विक भोजन का भोग लगाया जाता है। विशेष रूप से: विभिन्न प्रकार की सब्जियों से बनी 'सब्जी'। हलवा और पूरी। कच्ची सब्जियां और फल भी प्रसाद के रूप में वितरित किए जाते हैं।
4. ध्यान देने योग्य बातें: इस दिन जरूरतमंदों को अनाज और हरी सब्जियों का दान करना बहुत शुभ माना जाता है। वर्ष 2026 में शाकंभरी पूर्णिमा 3 जनवरी को मनाई जाएगी।