Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

21 सितंबर को वामन द्वादशी, पढ़ें श्रीहरि विष्णु के वामन अवतार की पौराणिक कथा

हमें फॉलो करें 21 सितंबर को वामन द्वादशी, पढ़ें श्रीहरि विष्णु के वामन अवतार की पौराणिक कथा
21 सितंबर 2018, शुक्रवार को वामन द्वादशी का पर्व मनाया जाएगा। भाद्रपद शुक्ल द्वादशी (12) तिथि को भगवान श्रीहरि विष्णु के वामन अवतार का पूजन किया जाता है। भगवान श्रीहरि विष्‍णु ने धर्म की रक्षा हेतु कई अवतार लिए।

यहां पाठकों के लिए प्रस्तुत हैं विष्णु के वामन अवतार की पौराणिक एवं प्रामाणिक कथा...
 
एक बार दैत्यराज बलि ने इंद्र को परास्त कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। पराजित इंद्र की दयनीय स्थिति को देखकर उनकी मां अदिति बहुत दुखी हुईं। उन्होंने अपने पुत्र के उद्धार के लिए विष्णु की आराधना की। 
 
इससे प्रसन्न होकर विष्णु प्रकट होकर बोले- देवी! चिंता मत करो। मैं तुम्हारे पुत्र के रूप में जन्म लेकर इंद्र को उसका खोया राज्य दिलाऊंगा। समय आने पर उन्होंने अदिति के गर्भ से वामन के रूप में अवतार लिया। उनके ब्रह्मचारी रूप को देखकर सभी देवता और ऋषि-मुनि आनंदित हो उठे।
 
एक दिन उन्हें पता चला कि राजा बलि स्वर्ग पर स्थायी अधिकार जमाने के लिए अश्वमेध यज्ञ करा रहा है। यह जानकर वामन वहां पहुंचे। उनके तेज से यज्ञशाला प्रकाशित हो उठी। बलि ने उन्हें एक उत्तम आसन पर बिठाकर उनका सत्कार किया और अंत में उनसे भेंट मांगने के लिए कहा।
 
इस पर वामन चुप रहे। लेकिन जब बलि उनके पीछे पड़ गया तो उन्होंने अपने कदमों के बराबर तीन पग भूमि भेंट में मांगी। बलि ने उनसे और अधिक मांगने का आग्रह किया, लेकिन वामन अपनी बात पर अड़े रहे। इस पर बलि ने हाथ में जल लेकर तीन पग भूमि देने का संकल्प ले लिया। संकल्प पूरा होते ही वामन का आकार बढ़ने लगा और वे वामन से विराट हो गए।
 
उन्होंने एक पग से पृथ्वी और दूसरे से स्वर्ग को नाप लिया। तीसरे पग के लिए बलि ने अपना मस्तक आगे कर दिया। 
 
वह बोला- प्रभु, सम्पत्ति का स्वामी सम्पत्ति से बड़ा होता है। तीसरा पग मेरे मस्तक पर रख दें। 
 
सब कुछ गंवा चुके बलि को अपने वचन से न फिरते देख वामन प्रसन्न हो गए। उन्होंने ऐसा ही किया और बाद में उसे पाताल का अधिपति बना दिया और देवताओं को उनके भय से मुक्ति दिलाई।


Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

शहादत की अनोखी मिसाल है मुहर्रम, जानिए क्या है इसका इतिहास