Today Vaikunth Chaturdashi आज, 17 नवंबर, बुधवार के दिन वैकुंठ चतुर्दशी मनाई जा रही है। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को वैकुंठ चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की विधिवत पूजा-अर्चना की जाती है। श्रीहरि के साथ ही शिव जी के बड़े पुत्र कार्तिकेय भगवान, राधा-दामोदर और तुलसी-शालिग्राम का पूजन भी किया जाता है।
यह दिवस धार्मिक दृष्टिकोण से बहुत महत्व रखता है, क्योंकि इस दिन पूर्वजों के आत्मा की शांति और घर-परिवार की सुख-समृद्धि के लिए तर्पण, पिंडदान और दान-पुण्य के कार्य किए जाते हैं। कैलेंडर के मतभेद के चलते यह पर्व गुरुवार को भी मनाया जाएगा। मान्यतानुसार जब 4 माह के लिए भगवान विष्णु शयन निद्रा में चले जाते हैं, तब सृष्टि की संचालन भगवान शिव करते हैं और देवप्रबोधिनी एकादशी के बाद जब विष्णु जागते है, तब शिव जी उन्हें यह सृष्टि वापस दे देते हैं।
इस दिन विष्णु जी की कमल के फूलों पूजन करने का महत्व है। साथ ही शिव जी का पूजन भी अवश्य ही करना चाहिए। इस दिन जो मनुष्य भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना पूरे मनोभाव से करते हैं उन्हें वैकुंठ धाम मिलता है। यह दिन शिव जी और विष्णु जी के मिलन को दर्शाता है, इसीलिए वैकुंठ चतुर्दशी को दूसरे नाम यानी हरिहर मिलन भी कहा जाता है।
वैकुंठ चतुर्दशी मुहूर्त- Vaikunth Chaturdashi muhurat
Vaikunth Chaturdashi चतुर्दशी तिथि का प्रारंभ इस बार 17 नवंबर, दिन बुधवार को प्रातः 09.50 मिनट से शुरू हो गया है तथा गुरुवार, 18 नवंबर 2021 को दोपहर 12.00 बजे चतुर्दशी तिथि का समापन होगा।
पूजा विधि- Vaikunth Chaturdashi puja vidhi
- चतुर्दशी यानी वैकुंठ चतुर्दशी के दिन प्रातःकाल स्नानदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- इस दिन वैकुंठ के अधिपति भगवान विष्णु की पूजा-आराधना करने का विधान है।
- भगवान के समक्ष व्रत का संकल्प करें और पूरे दिन व्रत करें।
- रात्रि के समय कमल के पुष्पों से भगवान विष्णु की पूजन करें।
- तत्पश्चात भगवान शिव का विधि-विधान के साथ पूजन करें।
- अगले दिन प्रातः उठकर शिव जी का पूजन करके जरूरतमंद को भोजन करवाने के पश्चात व्रत का पारण करें।
आज के विशेष मंत्र- 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः' तथा 'ॐ विष्णवे नमः' मंत्र का अधिक से अधिक जाप करें।
वैकुंठ चतुर्दशी की कथा- Vaikunth Chaturdashi story
एक बार भगवान विष्णु शिव जी का दर्शन करने महादेव की नगरी काशी में आए। उसके बाद उन्होंने मणिकर्णिका घाट पर स्नान करने के पश्चात एक हजार स्वर्ण कमलों से शिव जी का पूजन करने का संकल्प लिया। विष्णु जी की परीक्षा लेने के उद्देश्य से शिव जी ने उन स्वर्ण कमलों में से एक कमल कम कर दिया। तब उस कमल की पूर्ति करने के लिए विष्णु जी ने अपने नयन कमल शिव जी को अर्पित करने का विचार किया।
जैसे ही विष्णु जी अपने नयन अर्पित करने को तत्पर हुए, शिव जी प्रकट हो गए और विष्णु जी से कहा कि आपके समान मेरा कोई भक्त नहीं है। आज से कार्तिक मास की चतुर्दशी 'वैकुंठ चतुर्दशी' के नाम से जानी जाएगी। जो भक्त वैकुंठ चतुर्दशी के दिन व्रत-उपवास रखकर सबसे पहले आपका (विष्णु जी) पूजन करेगा, उसे वैकुंठ की प्राप्ति होगी। विष्णु जी की भक्ति से प्रसन्न होकर शिव जी ने उन्हें सुदर्शन चक्र प्रदान किया।
आरती
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।
भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे॥
जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का।
सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटे तन का॥ ॐ जय...॥
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।
तुम बिनु और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ ॐ जय...॥
तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी॥
पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ॐ जय...॥
तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ॐ जय...॥
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय...॥
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ॐ जय...॥
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ॐ जय...॥
तन-मन-धन और संपत्ति, सब कुछ है तेरा।
तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा॥ ॐ जय...॥
जगदीश्वरजी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे॥ ॐ जय...॥