ज्येष्ठ मास की अमावस्या को वट सावित्री व्रत रखा जाता है। इस व्रत में महिला वट वृक्ष की पूजा करती हैं, जिससे महिलाओं की अखंड सौभाग्य की कामना पूरी होती है।
वट वृक्ष की जड़ों में ब्रह्मा, तने में भगवान विष्णु व डालियों व पत्तियों में भगवान शिव का निवास माना जाता है।
वट सावित्री व्रत कथा : संक्षिप्त में वट सावित्री व्रत कथा सार है कि सावित्री के पति अल्पायु थे, उसी समय देव ऋषि नारद आए और सावित्री से कहने लगे, तुम्हारा पति अल्पायु है। आप कोई दूसरा वर देख लो। पर सावित्री ने जवाब दिया मैं हिंदू नारी हूं, पति तो एक ही बार चुनती हूं। इसी समय सत्यवान के सिर में अत्यधिक पीड़ा होने लगी। सावित्री ने वट वृक्ष के नीचे अपने गोद में पति के सिर को रख उसे लेटा दिया। उसी समय सावित्री ने देखा अनेक यमदूतों के साथ यमराज आ पहुंचे हैं। सत्यवान के जीव को दक्षिण दिशा की ओर लेकर चल गए हैं। सावित्री भी यमराज के पीछे-पीछे चल देती हैं।
उन्हें आता देख यमराज ने कहा कि हे पतिव्रता नारी पृथ्वी तक ही पत्नी पति का साथ देती है। वापस लौट जाओ, इस पर सावित्री ने कहा कि जहां मेरे पति रहेंगे मुझे उनके साथ रहना है। यही मेरा पत्नी धर्म है। यमराज सावित्री के उत्तर सुन बड़े प्रसन्न हुए। उसने सावित्री को वर मांगने को कहा मैं तुम्हें तीन वर देता हू, बोलो तुम कौन-कौन से तीन वर लोगी। तब सावित्री ने सास-ससुर के लिए नेत्र ज्योति, ससुर का खोया हुआ राज्य एवं सत्यवान के 100 पुत्रों की मां बनना चाहती हूं। तीनों वरदान देते हुए यमराज ने कहा, ऐसा ही होगा। सावित्री उसी वट वृक्ष के पास लौट आई। जहां सत्यवान मृत पड़ा था। सत्यवान के मृत शरीर पर फिर से संचार हुआ। इस प्रकार सावित्री ने व्रत से न केवल अपने पति को फिर से जीवित करवाया बल्कि सास-ससुर को नेत्र ज्योति प्रदान करते हुए उनके ससुर का खोया हुआ राज्य फिर से दिलवाया। इस व्रत से सौभाग्यवती महिलाओं का सौभाग्य अखंड होता है और उनकी मनोकामना पूर्ण होती है।