Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

विनायक चतुर्थी व्रत रखने की विधि, पूजा, कथा और महत्व

Advertiesment
हमें फॉलो करें Vinayaka Chaturthi

WD Feature Desk

, शनिवार, 1 मार्च 2025 (15:45 IST)
3 मार्च 2025 सोमवार के दिन विनायक चतुर्थी का व्रत रखा जा रहा है। माह में 2 चतुर्थियां होती हैं। कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टि चतुर्थी और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायकी चतुर्थी कहते हैं। इस तरह 24 चतुर्थी और प्रत्येक तीन वर्ष बाद अधिमास की मिलाकर 26 चतुर्थी होती है। सभी चतुर्थी की महिमा और महत्व अलग-अलग है। यदि चतुर्थी गुरुवार को हो तो मृत्युदा होती है और शनिवार की चतुर्थी सिद्धिदा होती है और चतुर्थी के 'रिक्ता' होने का दोष उस विशेष स्थिति में लगभग समाप्त हो जाता है। मंगलवार की अंकारिका होती है।ALSO READ: ठाणे के टिटवाला सिद्धिविनायक महागणपति मंदिर जिसका देवी शकुंतला ने किया था निर्माण
 
महत्व: इस दिन व्रत रखकर भगवान गणेश की आराधना सुख-सौभाग्य की दृष्टि से श्रेष्ठ है। गणेश चतुर्थी का यह व्रत समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला व्रत माना जाता है। इस व्रत को करने से मनुष्‍य के सारे कष्ट दूर होकर मनुष्य को समस्त सुख-सुविधाएं प्राप्त होती हैं। 
 
1. विनायक चतुर्थी: चतुर्थी (चौथ) के देवता हैं शिवपुत्र गणेश। इस तिथि में भगवान गणेश का पूजन से सभी विघ्नों का नाश हो जाता है। भाद्र माह की चतुर्थी को गणेशजी का जन्म हुआ था, जिसे विनायक चतुर्थी कहते हैं। कई स्थानों पर विनायक चतुर्थी को 'वरद विनायक चतुर्थी' और 'गणेश चतुर्थी' के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान गणेश की आराधना सुख-सौभाग्य की दृष्टि से श्रेष्ठ है।
 
2. संकष्टी चतुर्थी: माघ मास के कृष्ण पक्ष को आने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी, माघी चतुर्थी या तिल चौथ कहा जाता है। बारह माह के अनुक्रम में यह सबसे बड़ी चतुर्थी मानी गई है। चतुर्थी के व्रतों के पालन से संकट से मुक्ति मिलती है और आर्थिक लाभ प्राप्त होता है।
 
कैसे करें विनायकी चतुर्थी का व्रत?
  1. पूजा से पहले व्रत का संकल्प लें।
  2. दिनभर फलाहार करें और शाम को गणेश भगवान की फिर से पूजा करें। 
  3. इसके बाद ही भोजन ग्रहण करें। 
  4. सायंकाल में व्रतधारी संकष्टी गणेश चतुर्थी की कथा पढ़े अथवा सुनें और सुनाएं।
  5. इस दिन अपने सामर्थ्य के अनुसार गरीबों को दान करें। तिल-गुड़ के लड्डू, कंबल या कपडे़ आदि का दान करें।
विनायक चतुर्थी पूजा विधि:
  • विनायक चतुर्थी की पूजा दोपहर में की जाती है। यदि अभिजीत मुहूर्त और और भी अच्‍छा।
  • चतुर्थी के दिन सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • इस दिन व्रतधारी लाल रंग के वस्त्र धारण करें।
  • पूजा के समय भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित करें।
  • गणेशजी के समक्ष दीप दीप प्रज्वलित करें।
  • श्रीगणेश की पूजा करते समय अपना मुंह पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर रखें।
  • फल, फूल, रौली, मौली, अक्षत, पंचामृत आदि से श्रीगणेश को स्नान कराके विधिवत तरीके से पूजा करें।
  • इसके बाद भगवान गणेश को 21 दूर्वा और लड्डू का भोग लगाएं।
  • या तिल से बनी वस्तुओं, तिल-गुड़ के लड्‍डू तथा मोदक का भोग लगाएं।
  • गणेश जी को दूर्वा अर्पित करते समय ‘ॐ गं गणपतयै नम:’ मंत्र का उच्चारण करें।
  • अब गणेश जी की कपूर या घी के दीपक से आरती करें।
  • इसके पश्चात प्रसाद लोगों मे वितरित कर दें। तत्पश्चात गणेशजी की आरती करें।
  • विधिवत तरीके से गणेश पूजा करने के बाद गणेश मंत्र 'ॐ गणेशाय नम:' अथवा 'ॐ गं गणपतये नम: की एक माला (यानी 108 बार गणेश मंत्र का) जाप अवश्य करें।
webdunia
विनायक चतुर्थी व्रत कथा 
श्री गणेश चतुर्थी व्रत की पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव तथा माता पार्वती नर्मदा नदी के किनारे बैठे थे। वहां माता पार्वती ने भगवान शिव से समय व्यतीत करने के लिये चौपड़ खेलने को कहा। शिव चौपड़ खेलने के लिए तैयार हो गए, परंतु इस खेल में हार-जीत का फैसला कौन करेगा, यह प्रश्न उनके समक्ष उठा तो भगवान शिव ने कुछ तिनके एकत्रित कर उसका एक पुतला बनाकर उसकी प्राण-प्रतिष्ठा कर दी और पुतले से कहा- 'बेटा, हम चौपड़ खेलना चाहते हैं, परंतु हमारी हार-जीत का फैसला करने वाला कोई नहीं है इसीलिए तुम बताना कि हम दोनों में से कौन हारा और कौन जीता?' 
 
उसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती का चौपड़ खेल शुरू हो गया। यह खेल 3 बार खेला गया और संयोग से तीनों बार माता पार्वती ही जीत गईं। खेल समाप्त होने के बाद बालक से हार-जीत का फैसला करने के लिए कहा गया, तो उस बालक ने महादेव को विजयी बताया। यह सुनकर माता पार्वती क्रोधित हो गईं और क्रोध में उन्होंने बालक को लंगड़ा होने, कीचड़ में पड़े रहने का श्राप दे दिया। बालक ने माता पार्वती से माफी मांगी और कहा कि यह मुझसे अज्ञानतावश ऐसा हुआ है, मैंने किसी द्वेष भाव में ऐसा नहीं किया। 
 
बालक द्वारा क्षमा मांगने पर माता ने कहा- 'यहां गणेश पूजन के लिए नागकन्याएं आएंगी, उनके कहे अनुसार तुम गणेश व्रत करो, ऐसा करने से तुम मुझे प्राप्त करोगे।' यह कहकर माता पार्वती शिव के साथ कैलाश पर्वत पर चली गईं। एक वर्ष के बाद उस स्थान पर नागकन्याएं आईं, तब नागकन्याओं से श्री गणेश के व्रत की विधि मालूम करने पर उस बालक ने 21 दिन लगातार गणेशजी का व्रत किया। उसकी श्रद्धा से गणेशजी प्रसन्न हुए। उन्होंने बालक को मनोवांछित फल मांगने के लिए कहा। 
 
उस पर उस बालक ने कहा- 'हे विनायक! मुझमें इतनी शक्ति दीजिए कि मैं अपने पैरों से चलकर अपने माता-पिता के साथ कैलाश पर्वत पर पहुंच सकूं और वे यह देख प्रसन्न हों।'
 
तब बालक को वरदान देकर श्री गणेश अंतर्ध्यान हो गए। इसके बाद वह बालक कैलाश पर्वत पर पहुंच गया और कैलाश पर्वत पर पहुंचने की अपनी कथा उसने भगवान शिव को सुनाई। 
 
चौपड़ वाले दिन से माता पार्वती शिवजी से विमुख हो गई थीं अत: देवी के रुष्ट होने पर भगवान शिव ने भी बालक के बताए अनुसार 21 दिनों तक श्री गणेश का व्रत किया। इसव्रत के प्रभाव से माता पार्वती के मन से भगवान शिव के लिए जो नाराजगी थी, वह समाप्त हो गई। 
 
तब यह व्रत विधि भगवान शंकर ने माता पार्वती को बताई। यह सुनकर माता पार्वती के मन में भी अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा जागृत हुई। तब माता पार्वती ने भी 21 दिन तक श्री गणेश का व्रत किया तथा दूर्वा, फूल और लड्डूओं से गणेशजी का पूजन-अर्चन किया। व्रत के 21वें दिन कार्तिकेय स्वयं माता पार्वतीजी से आ मिले। उस दिन से श्री गणेश चतुर्थी का यह व्रत समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला व्रत माना जाता है। इस व्रत को करने से मनुष्‍य के सारे कष्ट दूर होकर मनुष्य को समस्त सुख-सुविधाएं प्राप्त होती हैं।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

बुध ग्रह का मीन राशि में गोचर, 4 राशियों को रहना होगा नुकसान