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मणिकर्णिका घाट पर स्नान करने का महत्व क्या है?

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WD Feature Desk

, शुक्रवार, 15 नवंबर 2024 (12:43 IST)
Manikarnika Ghat Snan kartik purnima 2024: प्रतिवर्ष कार्तिक शुक्ल की चतुर्दशी अर्थात बैकुंठ चतुर्दशी और कार्तिक पूर्णिमा के दिन वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर स्नान किया जाता है। यहां स्नान करने का बहुत महत्व है। काशी को वाराणसी और बनारस भी कहते हैं। यहां के घाट बहुत ही प्राचीन और प्रसिद्ध हैं। अस्सी घाट की गंगा आरती को देखने दूर दूर से लोग आते हैं। कार्तिक पूर्णिमा यानी देव दिवाली के दिन गंगा नदी में स्नान करने का पुराणों में खास महत्व बताया गया है। 15 नवंबर 2024 शुक्रवार के दिन है कार्तिक पूर्णिमा। आओ जानते हैं कि मणिकर्णिका घाट पर स्नान करने का महत्व क्या है?ALSO READ: कार्तिक पूर्णिमा के दिन क्या करना चाहिए और क्या नहीं?
 
1. देवता भी करते हैं स्नान: इस दिन सभी देवी और देवता त्रिपुरासुर के वध की खुशी में स्नान करने आते हैं और देव दिवाली मनाते हैं।
 
2. पापों से मिलती है मुक्ति: इस दिन घाट पर स्नान करने से हर तरह के पापों से मुक्ति मिल जाती। यह घाट काशी में स्थित हैं इसमें स्नान से मनुष्य के पापों का नाश होता हैं कार्तिक में इसके स्नान का सर्वाधिक महत्व हैं।
 
3. शक्तिपीठ है यहां पर: कहते हैं कि यहां पर माता सती के कान का कुंडल गिरे थे इसीलिए इसका नाम मणिकर्णिका है। यहां पर माता का शक्तिपीठ भी स्थापित है।ALSO READ: देव दिवाली कार्तिक पूर्णिमा की पौराणिक कथा
 
4. प्राचीन कुंड: यह भी कहा जाता है कि एक समय भगवान शिव हजारों वर्षों से योग निंद्रा में थे, तब विष्णु जी ने अपने चक्र से एक कुंड को बनाया था जहां भगवान शिव ने तपस्या से उठने के बाद स्नान किया था और उस स्थान पर उनके कान का कुंडल खो गया था जो आज तक नहीं मिला। तब ही से उस कुंड का नाम मणिकर्णिका घाट पड़ गया। काशी खंड के अनुसार गंगा अवतरण से पहले इसका अस्तित्व है।
 
5. श्री हरि विष्णु ने किया था पहला स्नान: कहते हैं कि मणिकर्णिका घाट पर भगवान विष्णु ने सबसे पहले स्नान किया। इसीलिए वैकुंठ चौदस की रात के तीसरे प्रहर यहां पर स्नान करने से मुक्ति प्राप्त होती है। यहां पर विष्णु जी ने शिवजी की तपस्या करने के बाद एक कुंड बनाया था।ALSO READ: कार्तिक पूर्णिमा के दिन करें पुष्कर स्नान, जानिए महत्व
 
6. कुंड से निकली प्रतिमा: प्राचीन काल में मां मणिकर्णिका की अष्टधातु की प्रतिमा इसी कुंड से निकली थी। कहते हैं कि यह प्रतिमा वर्षभर ब्रह्मनाल स्थित मंदिर में विराजमान रहती है परंतु अक्षय तृतीया को सवारी निकालकर पूजन-दर्शन के लिए प्रतिमा कुंड में स्थित 10 फीट ऊंचें पीतल के आसन पर विराजमान कराई जाती है। इस दौरान कुंड का जल सिद्ध हो जाता है जहां स्नान करने से मुक्ति मिलती है।ALSO READ: कार्तिक पूर्णिमा देव दिवाली की पूजा और स्नान के शुभ मुहूर्त, पूजन विधि और आरती सहित मंत्र

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