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पोला पर्व क्या और क्यों मनाया जाता है, जानें रोचक जानकारी और खास बातें

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WD Feature Desk

, बुधवार, 20 अगस्त 2025 (17:10 IST)
2025 Pola festival : पोला पर्व, जिसे पोला-पिठोरा के नाम से भी जाना जाता है, किसानों और खेती-बाड़ी से जुड़ा एक महत्वपूर्ण लोक पर्व है। यह मुख्य रूप से महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और कर्नाटक के ग्रामीण इलाकों में बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह पर्व भाद्रपद माह की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है। 2025 में, पोला पर्व 23 अगस्त 2025, शनिवार को मनाया जाएगा।ALSO READ: भाद्रपद मास कब से कब तक रहेगा, जानिए इस माह के व्रत त्योहारों की लिस्ट
 
पोला पर्व क्या है और क्यों मनाते हैं?
पोला पर्व का सीधा संबंध कृषि और पशुधन से है। यह किसानों द्वारा अपने बैलों और बैलों की जोड़ी को धन्यवाद देने का त्योहार है, जो साल भर खेतों में कड़ी मेहनत करते हैं। किसान बैलों को परिवार का हिस्सा मानते हैं, और यह पर्व उनके प्रति कृतज्ञता और सम्मान व्यक्त करने का एक तरीका है। इस दिन, बैलों को खेतों के काम से पूरी तरह छुट्टी दी जाती है और उन्हें आराम करने दिया जाता है। यह एक तरह से बैलों को उनके अथक परिश्रम के लिए दिया जाने वाला सम्मान है।
 
रोचक जानकारी और खास बातें
• सजावट और सम्मान: पोला के दिन बैलों को नहलाकर अच्छी तरह से सजाया जाता है। उनके सींगों पर रंग लगाए जाते हैं, गले में फूलों की माला और घंटियां डाली जाती हैं। उन्हें रंगीन कपड़ों से सजाया जाता है और उनकी भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है।
 
• बच्चों के लिए मिट्टी के बैल: जिन घरों में बैल नहीं होते, या शहर में रहने वाले लोग, इस दिन मिट्टी से बने छोटे-छोटे बैलों की पूजा करते हैं। बच्चे भी इन मिट्टी के खिलौनों से खेलते हैं।
 
• व्यंजन और पकवान: इस दिन घरों में तरह-तरह के पारंपरिक पकवान बनाए जाते हैं, जैसे ठेठरी, खुरमी, पूरण पोली और खीर। ये व्यंजन पहले भगवान को अर्पित किए जाते हैं, और फिर बैलों को भी खिलाए जाते हैं।
 
• अन्न माता का गर्भधारण: कुछ क्षेत्रों में यह माना जाता है कि इसी दिन 'अन्न माता' गर्भ धारण करती है, यानी धान के पौधों में दूध भर जाता है। इसलिए इस दिन खेतों में जाने की भी मनाही होती है।ALSO READ: कुशोत्पटिनी अमावस्या का महत्व और 5 अचूक उपाय जो करेंगे पितृदोष दूर
 
• लोक-संस्कृति का प्रतीक: पोला पर्व सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक उत्सव भी है। इस दिन गांवों में बैल दौड़ और बैल सजाने की प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती हैं, जिससे यह पर्व और भी खास हो जाता है।
 
यह त्योहार हमें सिखाता है कि हमें सिर्फ मनुष्यों का ही नहीं, बल्कि हर उस जीव का सम्मान करना चाहिए जो हमारे जीवन को बेहतर बनाने में मदद करता है।
 
अस्वीकरण (Disclaimer) : चिकित्सा, स्वास्थ्य संबंधी नुस्खे, योग, धर्म, ज्योतिष, इतिहास, पुराण आदि विषयों पर वेबदुनिया में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं, जो विभिन्न सोर्स से लिए जाते हैं। इनसे संबंधित सत्यता की पुष्टि वेबदुनिया नहीं करता है। सेहत या ज्योतिष संबंधी किसी भी प्रयोग से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें। इस कंटेंट को जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है जिसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।ALSO READ: पर्युषण महापर्व 2025: जानें धार्मिक महत्व और जैन धर्म के 5 मूल सिद्धांत
 

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