आंवला नवमी पर करें वृक्ष पूजन
ऐसी मान्यता है कि आंवला पेड़ की पूजा कर 108 बार परिक्रमा करने से मनोकामनाएं पूरी होतीं हैं। पूजा-अर्चना के बाद खीर, पूड़ी, सब्जी और मिष्ठान आदि का भोग लगाया जाता है। कई धर्मप्रेमी तो आंवला पूजन के बाद पेड़ की छांव पर ब्राह्मण भोज भी कराते है। पौराणिक मान्यता के अनुसार कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी से लेकर पूर्णिमा तक भगवान विष्णु आवंले के पेड़ पर निवास करते हैं। इस दिन आंवला पेड़ की पूजा-अर्चना कर दान पुण्य करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। अन्य दिनों की तुलना में नवमी पर किया गया दान पुण्य कई गुना अधिक लाभ दिलाता है।आंवला नवमी के दिन परिवार के बड़े-बुजुर्ग सदस्य विधि-विधान से आंवला वृक्ष का पूजा-अर्चना करके भक्तिभाव से पर्व को मनाएंगे। नवमी के दिन महिलाएं भी अक्षत, पुष्प, चंदन आदि से पूजा-अर्चना कर पीला धागा लपेटकर वृक्ष की परिक्रमा करती हैं।
दान से होती है अक्षय फल की प्राप्ति : कार्तिक शुक्ल नवमी अक्षय नवमी कहलाती है। इस दिन स्नान, पूजन, तर्पण तथा अन्न आदि के दान से अक्षय फल की प्राप्ति होती है। इसमें पूर्वाह्न व्यापनि तिथि ली जाती है।पं. आनंदशंकर व्यास के अनुसार 4 नवंबर को आंवला नवमी पर प्रातःकाल स्नान आदि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प करें। पश्चात धात्री वृक्ष (आंवला) के नीचे पूर्वाभिमुख बैठकर 'ॐ धात्र्ये नमः' मंत्र से आंवले के वृक्ष की जड़ में दूध की धार गिराते हुए पितरों का तर्पण करें। कपूर व घी के दीपक से आरती कर प्रदक्षिणा करें। विद्वान ब्राह्मणों को दक्षिणा भेंट करें। आंवले के वृक्ष के नीचे ब्राह्मणों को भोजन कराएं तथा खुद भी उसी वृक्ष के निकट बैठकर भोजन करें। अक्षय नवमी धात्री तथा कुष्मांडा नवमी के नाम से भी जानी जाती है। इस दिन पितरों के शीत निवारण (ठंड) के लिए ऊनी वस्त्र व कंबल दान करना चाहिए।कर्क तीर्थ यात्रा का विधान : आंवला नवमी पर उज्जयिनी में कर्क तीर्थ यात्रा व नगर प्रदक्षिणा का विधान है। वर्षों पहले आंवला नवमी पर उज्जैनवासी भूखी माता मंदिर के सामने शिप्रा तट स्थित कर्कराज मंदिर से कर्क तीर्थ यात्रा का आरंभ कर नगर में स्थित प्रमुख मंदिरों पर दर्शन-पूजन कर नगर प्रदक्षिणा करते थे। कालांतर यह यात्रा कुछ लोगों द्वारा ही की जाती है। धर्मशास्त्र अनुसार इस दिन स्नान, दान, यात्रा करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।