यूं तो अमावस्या और पूर्णिमा का चक्र पूरे सालभर ही चलता रहता है। लेकिन उसमें भी आश्विन पूर्णिमा का खास महत्व है। जिसे कोजागिरी, आश्विन पूर्णिमा, कौमुदी पूर्णिमा या शरद पूर्णिमा (या जागने की रात) भी कहते हैं। आसमान में चमकने वाला चांद तो वही होता है लेकिन इस दिन चांद की खूबसूरती नजर लगने जितने निखार पर होती है।
शरद की उस चांदनी को केसरयुक्त दुग्धपान का आस्वाद लेते निहारना कइयों को पसंद है। जिसके लिए वे सालभर इस दिन का इतंजार करते हैं। दरअसल इस दिन का महत्व श्रीलक्ष्मी से जुड़ा है। यदि कार्तिक अमावस्या की रात दीपक जलाकर श्रीमहालक्ष्मी का पूजन किया जाता है, तो आश्विन पूर्णिमा की चांदनी में श्रीलक्ष्मी की मनोभाव से पूजा कर उनके आशीर्वाद ओर कृपा लाभ की आशा से रात में जागरण किया जाता है। इस रात्रि में तंत्र-मंत्र साधना करने वाले श्रीसिद्धिदात्री को प्रसन्न करने के लिए विशेष पूजा-पाठ करते हैं।
क्यों करते हैं रात्रि जागरण :- इस दिन मध्यरात्रि में श्रीमहालक्ष्मी चंद्रमंडल से उतरकर नीचे पृथ्वी पर आती हैं। ऐसा कहते हैं कि उस दिन चांदनी की रोशनी में वे हर एक से पूछती हैं- क्या वो जागृति (जाग्रत होने की अवस्था) है?
ND
इसका मतलब अपने कर्तव्यों को लेकर कोई जाग्रत है? श्रीलक्ष्मी की उस पुकार को आवाज देने के लिए कई लोग जागे रहते हैं। तब जागरण करने वालों को वे अमृत यानी लक्ष्मी का वरदान देती हैं।
ऐसा कहते हैं कि कोजागिरी की शीतल चांदनी तन पर लेने वालों को मनःशांति, मनःशक्ति और उत्तम स्वास्थ्य का लाभ मिलता है। शरद ऋतु की आबोहवा अपने साथ काफी तब्दीलियां लिए होती है।
एक तरफ जहां गर्मी खत्म होने लगती है, तो दूसरी तरफ जाड़े का मौसम दस्तक देने लगता है। ऐसे में दिन गर्म और रातें ठंडी हो जाती हैं और तब दूध पीने से पित्त प्रकोप कम हो जाता है। सो कोजागिरी सिर्फ दुग्धपान की रात्रि नहीं है।