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गणगौर पूजा में युवतियाँ मशगूल

रोज घुमाते हैं गणगौर को

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इन दिनों होली के दिन से शुरू होकर अठारह दिनों तक चलने वाले गणगौर पूजा उत्सव में युवतियाँ मशगूल हैं। इसके साथ ही आखिरी दिन गणगौर प्रतियोगिता में भाग लेने की तैयारियाँ भी चल रही हैं। महिलाओं व युवतियों ने इस उत्सव परंपरा को बरकरार रखे हुए हैं। इसी के चलते राजस्थानी परिवारों की महिलाएँ व युवतियाँ इन दिनों गणगौर की उत्सव की तैयारियों में लगी हुई हैं। नई-नवेली दुल्हन व कुँवारी लड़कियाँ अच्छे पति की कामना से गणगौर पूजा कर रही हैं।

माहेश्वरी व मारवाड़ी समुदाय की कुँवारी लड़कियों व नई-नवेली दुल्हनों के लिए ये अठारह दिन किसी उत्सव से कम नहीं होते हैं। अच्छे पति की कामना से गणगौर तैयार कर रोज पूजा करने का सिलसिला होली के दिन से ही शुरू हो गया है। होली के दिन ही गणगौर की स्थापना की जाती है। इसके बाद अठारह दिनों तक रोज सुबह-शाम गणगौर पूजी जाती है। पहले महिलाएँ व युवतियाँ घर पर ही मिट्टी से गणगौर की मूर्ति गढ़ती थीं, लेकिन अब मार्केट में रेडीमेड गणगौर मिलने लगी हैं।

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इन दिनों रोजाना शाम की पूजा के बाद गणगौर स्थापित करने वाली लड़कियाँ व नई दुल्हनें मूर्ति को घुमाने लेकर जाती हैं। इससे घर में एक उत्सवी माहौल बन जाता है। पूजा के बाद रोज शाम को किसी न किसी सहेली के घर जाते हैं। इसे गणगौर घुमाना कहते हैं। ईशर व गणगौर को पानी पिलाया जाता है। इस दौरान उन्हें पड़ोसियों के घर भी लेकर जाते हैं।

अठारह दिनों तक गणगौर पूजने के बाद आखिरी दिन पक्की रसोई बनाकर प्रसाद चढ़ाया जाता है। आखिरी दिन सुबह से ही घर में पकवान बनाने को लेकर गहमा-गहमी होती है। घर में पक्की रसोई के तौर पर खीर, पूड़ी, शीरा बनाकर उसे प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है। इस दिन कई जगहों पर गणगौर प्रतियोगिता भी रखी जाती हैं।

कई युवतियाँ व महिलाएँ अपने गणगौर सजाने के कार्यक्रम में हिस्सा लेती हैं। फिर गणगौर माता को मंदिर या गार्डन में घुमाने ले जाते हैं और अंत में तालाब में विसर्जित कर दिया जाता है।

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