युगों से हम सभी शक्ति की उपासना करते आए हैं। चाहे वह दैविक, दैहिक तथा भौतिक ही क्यों न हो, हम इसका सम्मान और पूजन करते हैं। ऐसे में कोई शक्ति अजर-अमर होकर लोकहित में अग्रसर रहे तो उनका जन्म कौन नहीं मनाएगा।
एक समय सभी देवताओं के साथ में ब्रह्मा-विष्णु मिलकर भगवान शिव के पास आए, जो कि (अमरकंटक) मेकल पर्वत पर समाधिस्थ थे। वे अंधकासुर राक्षस का वध कर शांत-सहज समाधि में बैठे थे।
अनेक प्रकार से स्तुति-प्रार्थना करने पर शिवजी ने आंखें खोलीं और उपस्थित देवताओं का सम्मान किया।
देवताओं ने निवेदन किया- हे भगवन्! हम देवता भोगों में रत रहने से, बहुत-से राक्षसों का वध करने के कारण हमने अनेक पाप किए हैं, उनका निवारण कैसे होगा आप ही कुछ उपाय बताइए।