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निर्जला एकादशी का महात्म्य

- आचार्य गोविन्द बल्लभ जोशी

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भारतीय उपासना में व्रतों का बहुत महत्व है। प्रत्येक मास कोई न कोई महान व्रत आता ही रहता है। ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी को बिना पानी पिए व्रत रखा जाता है तथा द्वादशी को परायण करके व्रत खोला जाता है। भीषण गर्मी के बीच तप की पराकाष्टा को दर्शाता है यह व्रत। इसमें दान-पुण्य एवं सेवा भाव का भी बहुत बड़ा महत्व शास्त्रों में बताया गया है।

ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी निर्जला एकादशी कहलाती है। अन्य महीनों की एकादशी को फलाहार किया जाता है, परंतु इस एकादशी को फल तो क्या जल भी ग्रहण नहीं किया जाता। यह एकादशी ग्रीष्म ऋतु में बड़े कष्ट और तपस्या से की जाती है। अतः अन्य एकादशियों से इसका महत्व सर्वोपरि है।

इस एकादशी के करने से आयु और आरोग्य की वृद्धि तथा उत्तम लोकों की प्राप्ति होती है। महाभारत के अनुसार अधिक माससहित एक वर्ष की छब्बीसों एकादशियां न की जा सकें तो केवल निर्जला एकादशी का ही व्रत कर लेने से पूरा फल प्राप्त हो जाता है।

वृषस्थे मिथुनस्थेऽर्के शुक्ला ह्येकादशी भवेत्‌
ज्येष्ठे मासि प्रयत्रेन सोपाष्या जलवर्जिता।

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निर्जला व्रत करने वाले को अपवित्र अवस्था में आचमन के सिवा बिंदू मात्र भी जल ग्रहण नहीं करना चाहिए। यदि किसी प्रकार जल उपयोग में ले लिया जाए तो व्रत भंग हो जाता है। निर्जला एकादशी को संपूर्ण दिन-रात निर्जल व्रत रहकर द्वादशी को प्रातः स्नान करना चाहिए तथा सामर्थ्य के अनुसार वस्तुएं और जलयुक्त कलश का दान करना चाहिए। इसके अनन्तर व्रत का पारायण कर प्रसाद ग्रहण करना चाहिए।

कथा का महात्म्य :
इस बारे में एक कथा आती है कि पाण्डवों में भीमसेन शारीरिक शक्ति में सबसे बढ़-चढ़कर थे, उनके उदर में वृक नाम की अग्नि थी इसीलिए उन्हें वृकोदर भी कहा जाता है। वे जन्मजात शक्तिशाली तो थे ही, नागलोक में जाकर वहां के दस कुण्डों का रस पी लेने से उनमें दस हजार हाथियों के समान शक्ति हो गई थी। इस रसपान के प्रभाव से उनकी भोजन पचाने की क्षमता और भूख भी बढ़ गई थी।

सभी पाण्डव तथा द्रौपदी एकादशियों का व्रत करते थे, परंतु भीम के लिए एकादशी व्रत दुष्कर थे। अतः व्यासजी ने उनसे ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत निर्जल रहते हुए करने को कहा तथा बताया कि इसके प्रभाव से तुम्हें वर्ष भर की एकादशियों के बराबर फल प्राप्त होगा।

व्यास जी के आदेशानुसार भीमसेन ने इस एकादशी का व्रत किया। इसलिए यह एकादशी भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जानी जाती है।

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