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पंचक्रोशी यात्रा का महत्व

माधव मास में करें जलदान

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ॐ माधवाय नम

स्कंदपुराण का कथन है-
'न माधवसमोमासोन कृतेनयुगंसम्‌।
न चवेद समंशास्त्रन तीर्थम्गंगयासमम्‌।'
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अर्थात् वैशाख के समान कोई मास नहीं, सतयुग के समान कोई युग नहीं, वेद के समान कोई शास्त्र नहीं, गंगा के समान कोई तीर्थ नहीं। भगवान विष्णु को अत्याधिक प्रिय होने के कारण ही वैशाख उनके नाम माधव से जाना जाता है। जिस प्रकार सूर्य के उदित होने पर अंधकार नष्ट हो जाता है, उसी प्रकार वैशाख में श्रीहरि की उपासना से ज्ञानोदय होने पर पर अज्ञान का नाश होता है।

पूर्णिमा से वैशाख मास प्रारंभ हो गया है। वैशाख मास का महत्व कार्तिक और माघ माह के समान है। इस मास में जल दान, कुंभ दान का विशेष महत्व है।

वैशाख मास स्नान का महत्व अवंति खंड में है। जो लोग पूरे वैशाख स्नान का लाभ नहीं ले पाते हैं, वे अंतिम पाँच दिनों में पूरे मास का पुण्य अर्जित कर सकते हैं। वैशाख मास एक पर्व के समान है, इसके महत्व के चलते कुंभ भी इसी मास में आयोजित होता है। पंचकोशी यात्रा में सभी ज्ञात-अज्ञात देवताओं की प्रदक्षिणा का पुण्य इस पवित्र मास में मिलता है। वैशाख स्नान का समापन 17 मई को होगा।

इन दिनों लोग जगह-जगह प्याऊ लगाकर पुण्य अर्जित करते हैं। वैशाख मास तथा ग्रीष्म ऋतु के आरंभ होते ही शिवालयों में गलंतिका बंधन होता है। 28 अप्रैल एकादशी (खरबूजा एकादशी) को वल्लभाचार्य जयंती है। इस दिन से पंचेशानी यात्रा (पंचक्रोशी यात्रा) शुरू होगी। समय पर यात्रा का पुण्य लाभ लेना ही चाहिए।


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पंचक्रोशी यात्री हमेशा ही निर्धारित तिथि और दिनांक से पहले यात्रा पर निकल पड़ते हैं। ज्योतिषाचार्यों का मत है कि तय तिथि और दिनांक से यात्रा प्रारंभ करने पर ही पंचक्रोशी यात्रा का पुण्य लाभ मिलता है। उनके अनुसार पंचक्रोशी यात्रा के लिए इस वर्ष का मुहूर्त 28 अप्रैल वैशाख कृष्ण दशमी है। यात्रा का पुण्य मुहूर्त के अनुसार तीर्थ स्थलों पर की गई पूजा-अर्चना से मिलता है। इसे ध्यान में रखते हुए सभी यात्रियों को पुण्य मुहूर्त के अनुसार यात्रा प्रारंभ करनी चाहिए। इससे पुण्य फल की प्राप्ति होगी।

उज्जैन की नागनाथ की गली पटनी बाजार स्थित भगवान नागचंद्रेश्वर से बल लेकर यात्री 118 किलोमीटर की पंचक्रोशी यात्रा करते हैं। मंदिर पुजारी पं. राजेश शर्मा गुरु ने बताया कि मंदिर पहुँचे कई यात्रियों ने दर्शन किए और दर्शन के साथ नारियल चढ़ाकर बल प्राप्त करना चाहा तो उनसे यह अनुरोध किया गया कि वे ऐसा न करें, क्योंकि यात्रा की शास्त्रोक्त रूप से शुरुआत 28 अप्रैल से होगी।

यदि वे उससे पहले ही यात्रा प्रारंभ करेंगे तो न तो यह ठीक रहेगा और न ही पड़ाव स्थलों पर सुविधा मिलेगी। जितनी देर भगवान की शरण में रहेंगे, उतनी ही भगवान की उन पर विशेष कृपा होगी।

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पंचक्रोशी यात्रा 28 अप्रैल से प्रारंभ होगी। यात्रियों को चाहिए कि वे मुहूर्त में ही यात्रा पर जाएँ और समाप्त करें।

पं. मुकेश रावल के अनुसार यात्रा का मुहूर्त 28 अप्रैल को प्रातः शिप्रा स्नान, श्री नागचंद्रेश्वर दर्शन पश्चात यात्रा प्रस्थान। पिंगलेश्वर तीर्थवास प्रथम प्रहर में प्रस्थान, त्रिवेणी तीर्थ एवं कायावरूणेश्वर परिसर वास (ग्राम करोहन)।

29 अप्रैल- कायावरुणेश्वर तीर्थ स्थान सूर्योदय से डेढ़ घंटे तक पूजा मुहूर्त व अपराह्न तक तीर्थवास पश्चात यात्रा प्रस्थान नलवा ग्राम बिल्वकेश्वर परिसर वास।

30 अप्रैल- प्रातः गंभीर तीर्थ स्थल व बिल्केश्वर दर्शन तीर्थ परिसर वास। रात्रि द्वितीय प्रहर में यात्रा प्रस्थान कालियादेह महल।

1 मई- ब्रह्म मुहूर्त में स्नान, प्रातः दुर्दुरेश्वर दर्शन तथा तीर्थ वास। पश्चात यात्रा प्रस्थान रत्नागर सागर (उंडासा तालाब) तट वास।

2 मई- ब्रह्म मुहूर्त में पिंग्लेश्वर तीर्थ दर्शन, तीर्थ वास अपराह्न में नगर प्रवेश व नागचंद्रेश्वर के दर्शन व कर्कराज तीर्थ वास (रेती घाट)।

3 मई- अष्ट तीर्थ यात्रा, तीर्थ मंगलनाथ यात्रा संपूर्ण

उल्लेखनीय है कि अक्षय तृतीया पर पाणिग्रहण संस्कार होंगे, वहीं इसी दिन परशुराम जयंती भी है। 8 मई को शंकराचार्य जयंती, 16 मई को नृसिंह जयंती पड़ेगी। 17 मई पूर्णिमा पर वैशाख स्नान की समाप्ति, अन्न दान और जल कुंभ दान कर होगी। इसी दिन बुद्घ पूर्णिमा भी मनाई जाएगी

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