जब भी दास्यभक्ति का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण देना हो, तो आज भी हनुमानजी की रामभक्ति का स्मरण होता है। वे अपने प्रभु पर प्राण अर्पण करने के लिए सदैव तैयार रहते। प्रभु राम की सेवा की तुलना में शिवत्व व ब्रह्मत्व की इच्छा भी उन्हें कौड़ी के मोल की लगती। हनुमान सेवक व सैनिक का एक सुंदर सम्मिश्रण है।
हनुमान अर्थात् शक्ति व भक्ति का संगम। अंजनी को भी दशरथ की रानियों के समान तपश्चर्या द्वारा पायस (चावल की खीर, जो यज्ञ-प्रसाद के तौर पर बाँटी जाती है) प्राप्त हुई थी व उसे खाने के उपरांत ही हनुमान का जन्म हुआ था। उस दिन चैत्र पूर्णिमा थी, जो 'हनुमान जयंती' के तौर पर मनाई जाती है।
हनुमान को मन्नत पूर्ण करने वाले देवता मानते हैं, इसलिए व्रत या मन्नत मानने वाले अनेक स्त्री-पुरुष हनुमान की मूर्ति की श्रद्धापूर्वक निर्धारित प्रदक्षिणा करते हैं। कई लोगों को आश्चर्य होता है कि जब किसी कन्या का विवाह न तय हो रहा हो, तो उसे ब्रह्मचारी हनुमान की उपासना करने को कहा जाता है। मानसशास्त्र के आधार पर कुछ लोगों की यह गलत धारणा होती है कि सुंदर, बलवान पुरुष के साथ विवाह हो, इस कामना से कन्याएँ उपासना करती हैं। वास्तविक कारण आगे दिए अनुसार है।
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राजनीति में कुशल हनुमान : अनेक प्रसंगों में सुग्रीव इत्यादि वानर ही नहीं, बल्कि राम भी हनुमान की सलाह लेते थे। जब विभीषण रावण को छोड़कर राम की शरण आया, तो अन्य सेनानियों का मत था कि उसे अपने पक्ष में नहीं लिया जाए, परंतु हनुमान की बात मानकर राम ने उसे अपने पक्ष में ले लिया।
लंका में प्रथम ही भेंट में सीता के मन में अपने प्रति विश्वास निर्माण करना, शत्रुपक्ष के पराभव के लिए लंकादहन करना, राम के आगमन संबंधी भरत की भावनाएँ जानने हेतु राम द्वारा उन्हीं को भेजा जाना, इन सभी प्रसंगों से हनुमान की बुद्धिमत्ता व निपुणता स्पष्ट होती है। लंकादहन कर उन्होंने रावण की प्रजा का, रावण के सामर्थ्य पर से विश्वास उठा दिया।
सीता को ढूँढने जब हनुमान रावण के अंतःपुर में गए, तो उस समय उनकी जो मनःस्थिति थी, वह उनके उच्च चरित्र का सूचक है। इस संदर्भ में वे स्वयं कहते हैं- 'सर्व रावण पत्नियों को निःशंक लेटे हुए मैंने देखा तो सही, परंतु देखने से मेरे मन में विकार उत्पन्न नहीं हुआ।' अनेक संतों ने ऐसे जितेंद्रिय हनुमान की पूजा निश्चित कर, उनका आदर्श समाज के सामने रखा।