भारत की यह विशेषता रही है कि अनेक युगानुरूप अवतार पुरुषों ने इस भूमि पर प्रकट होकर दानवी और दुष्ट प्रवृत्तियों को नष्ट कर धर्म और नैतिक मूल्यों की स्थापना कर तथा सामान्य नागरिकों को अत्याचारों और अनाचारों से मुक्ति दिलाई। गीता में भी भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है-
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥ परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्। धर्म संस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे॥
अर्थात् जब भी धर्म की हानि होती है, मैं प्रत्येक युग में धर्म की स्थापना, साधु पुरुषों की रक्षा और दुष्टों के विनाश के लिए अवतार लेता हूं। हमारे इतिहास में वर्णित कथाओं से इस बात की पुष्टि होती है। हमारे धर्म ग्रंथों में भगवान विष्णु के चौबीस अवतारों का उल्लेख मिलता है। इनमें भगवान राम, कृष्ण, परशुराम, वामन, कूर्म, नृसिंह आदि सर्वज्ञात हैं।
भगवान नृसिंह विष्णु का अद्भुत अवतार है। सबसे भिन्न और अलौकिक स्वरूप वाले इस अवतार का वर्णन श्रीमद्भागवत, महाभारत स्कंद पुराण, हरिवंश पुराण आदि में वर्णित है।
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है-नृसिंह अर्थात् नर और सिंह का युगल स्वरूप। उनका समूचा शरीर मानवीय है और मुख सिंह का है। सभी प्राणियों में नर अर्थात् मनुष्य बुद्धि में श्रेष्ठ है और शेर बल और पराक्रम में श्रेष्ठ। अतएव भगवान ने यह श्रेष्ठतम रूप धारण किया।
इस स्वरूप को धारण करने का एक कारण हिरण्यकश्यप को ब्रम्हा जी से मिला वह वरदान था, जिसके अनुसार वह न दिन में मरे न रात में, न देवों से मरे न मनुष्यों से, न पशु से मरे न पक्षी से, न अस्त्र से मरे न शस्त्र से, न थल में मरे न आकाश में और न भीतर मरे न बाहर। इस वरदान की मर्यादा में हिरण्यकश्यप के वध के लिए नृसिंह रूप जरूरी था।
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हिरण्यकश्यप के अत्याचारों से त्रस्त देवताओं ने ब्रह्मा जी से प्रार्थना की कि उन्हें हिरण्यकश्यप से मुक्ति दिलाएं। ब्रह्मा जी ने उन्हें भगवान विष्णु के पास जाने को कहा। भगवान विष्णु ने उन्हें आश्वस्त किया कि वे अवश्य ही उसका वध करेंगे।
महाभारत के अनुसार हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रह्लाद को गर्म लोहे के खम्भे से बांधने का आदेश दिया, तो नृसिंह भगवान खम्भे को फाड़कर प्रकट हुए।
कुछ पुराणों में कहा गया है कि हिरण्यकश्यप ने क्रोध में प्रह्लाद को लात से मारना चाहा तो वह खम्भे से टकराया और खम्भा टूट गया और नृसिंह भगवान प्रकट हुए। एक स्थान पर उल्लेख है कि हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद से पूछा- जिस ईश्वर का तुम नाम लेते हो, वह कहां है। प्रह्लाद ने कहा- ईश्वर सर्वत्र व्याप्त हैं।
इस पर हिरण्यकश्यप ने पूछा- इस खम्भ में तेरा ईश्वर है?
प्रह्लाद ने कहा- हां।
हिरण्यकश्यप बोला- तो ठीक है वह आकर तुझे बचाएगा। यह कहते हुए उसने खम्भे पर प्रहार किया। खम्भा टूट गया जिससे नृसिंह भगवान प्रकट हुए और उन्होंने हिरण्यकश्यप का वध किया।