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मालवा का बेमिसाल संजा पर्व

कन्याएं मांगेगी अच्छा वर

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भारत भर में तीज-त्योहार पर मेहंदी, महावर और मांडने मांडे जाते हैं तो दिन की शुरुआत रंगोली से होती है। भाद्रपद माह के शुक्ल पूर्णिमा से पितृमोक्ष अमावस्या तक श्राद्घ पक्ष में कुंआरी कन्याओं द्वारा मनाया जाने वाला संजा पर्व भी हमारी विरासत है, जो मालवा-निमाड़, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र आदि जगह प्रचलित है।

सोमवार से ताजा हरा गोबर ढूंढ़कर संजा की आकृतियां बनाने का कार्यक्रम शुरू हो गया। साथ ही शुरू हो गया गुलतेवड़ी, कनेर के गुलाबी, पीले और चांदनी के सफेद फूलों से सजाने का क्रम।

संजा पर्व के दिन पूनम का पाटला बनता है तो बीज अर्थात दूज का बिजौरा बनता है। तीसरे दिन घेवर, चौथे दिन चौपड़, पांचवें दिन पांचे या पांच कुंवारे बनाए जाते हैं। छठे दिन छबड़ी, सातवें दिन सातिया-स्वस्तिक, आठवें दिन आठ पंखूड़ी का फूल, नौवें दिन डोकरा-डोकरी उसके बाद वंदनवार, केल, जलेबी की जोड़ आदि बनने के बाद तेरहवें दिन शुरू होता है किलाकोट बनना, जिसमें 12 दिन बनाई गई आकृतियां भी होती हैं।

श्राद्घ पक्ष की समाप्ति पर ढोल-ताशे के साथ सारे समेटकर नई नवेली बन्नी की तरह बिदा होती है संजा। संजा तू थारा घर जा....।

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संजा पर्व शुरू हो गया है। पूर्णिमा के दिन कुछ बालिकाएं दीवार पर चोकोर लिपकर पांच पांचे बनाती हैं, कुछ बालिकाएं पाटला बनाती हैं। रात्रि में समूह में हर एक के यहां जाकर आरती करती हैं साथ में मालवी संजा के गीत भी गाती हैं और आरती करती हैं।

गीत
पेली आरती, रई रमझोल, रई रमझोल
भई रे भतीजा की अबछब जोड़
संजा! थने पुजूं चंपाकलियां
सिंगासन मेलू सांटो, तम लो संजा बई बांटो

आरती के बाद संजा को जिमाया जाता है कुछ इस तरह गाकर
संजा जीमले, चूठले, अकेली मती जाए
सांते सीमा के लइजा।

इस पर्व के संबंध में मालविका कृष्णा वर्मा कहती हैं कि मप्र लोकांचल मालवा में मनाया जाने वाला 'संजा पर्व' कन्याओं और किशोरियों का कलाकर्म है। देहाती क्षेत्रों से लेकर शहरी इलाकों तक यह पर्व एक लोककला उत्सव के रूप में मनाया जाता है। मालवी रूप 'संजा' इस लोककला उत्सव के लिए एक संज्ञा बन गया है।

कन्याओं की आस्था और आकांक्षाएं लोक चित्रकारी के माध्यम से पहचानी जाती हैं। अन्य लोकांचलों में भी यह स्थानीय रंग-रूप और परंपरानुसार मनाया जाता है।

मोटे तौर पर इस लोकोत्सव के तीन महत्वपूर्ण अंग है। 1. आनुष्ठानिक आयोजन, 2. भित्ती अलंकरण कला 3. लोकगीत पर्व। न केवल भित्ति-चित्रों वरन्‌ संजा के गीतों में भी आदिशक्ति के विभिन्न रूपों पार्वती, गौरा, दुर्गा आदि की आराधना के निमित्त लोक अंचलों में मालवा का संजा पर्व बेमिसाल है।

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