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वैशाख माह में पर्वों की धूम

वैशाख शुक्ल पक्ष का अध्यात्मिक महत्व

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- आचार्य गोविन्द बल्लभ जोशी
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यद्यपि वैशाख का हर दिन किसी न किसी व्रत-पर्व के कारण अपना खास महत्व रखता है लेकिन वैशाख शुक्ल पंचमी से एकादशी तक मनोकामना सिद्ध करने वाले व्रत-पर्वों की धूम रहती है। व्रत और पर्व का जहां अध्यात्मिक महत्व है वहीं लौकिक महत्व भी कम नहीं है क्योंकि लोक-धर्म की धारा संतान से ही आगे चलती है। अतः पुत्रदा पंचमी, निम्ब सप्तमी, शर्करा सप्तमी, अपराजिता देवी की उपासना की तिथि वैशाखी अष्टमी, श्री जानकी नवमी तथा मोहिनी एकादशी वैशाख शुक्ल के पर्वों में विशेष महत्व रखते हैं।

पुत्र प्राप्ति व्रतः यह व्रत वैशाख शुक्ल पंचमी से प्रारंभ होकर वर्ष भर में पूर्ण होता है। आरंभ में पंचमी को उपवास करके षष्ठी को स्कन्द कुमार विशाख और गुहका पूजन करें। इस प्रकार प्रत्येक शुक्ल पंचमी और षष्ठी को वर्षपर्यन्त करते रहें तो पुत्रार्थी को पुत्र, धनार्थी को धन और स्वर्गार्थी को स्वर्ग प्राप्त होता है। यह शिवजी का बताया हुआ व्रत है।

निम्ब सप्तमीः वैशाख शुक्ल सप्तमी को स्नान आदि नित्यकर्म करके अक्रोध और जितेन्द्रिय रहकर नीम के पत्ते ग्रहण करें और 'निम्बपल्लव भद्रं ते शुभद्रं तेऽस्तु वै सदा। ममापि कुरु भद्रं वै प्राशनाद् रोगहा भव।' इस मंत्र से एक-एक पत्ता खाकर पृथ्वी पर शयन करें तथा अष्टमी को सूर्यनारायण का पूजन करके ब्राह्मणों को भोजन कराए। उसके बाद स्वयं भोजन करें।

कमल सप्तमीः इस व्रत के लिए सुवर्ण का कमल और सूर्य की मूर्ति बनवाकर वैशाख शुक्ल सप्तमी को वेदी पर कमल और कमल पर सूर्य की मूर्ति स्थापित कर एवं उनका यथाविधि पूजन करके नमस्ते पद्यहस्ताय नमस्ते विश्वधारिणे। दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तु ते। इस श्लोक से प्रार्थना करके सूर्यास्त से समय एक जल का घड़ा, एक गौ और उक्त कमलादि विद्वानों को दान करें तथा दूसरे दिन उनको भोजन कराकर स्वयं भोजन करें। इस प्रकार प्रत्येक शुक्ल सप्तमी को एक वर्ष करें तो सब प्रकार का सुख प्राप्त होता है।

शर्करा सप्तमीयह भी वैशाख शुक्ल सप्तमी को ही होता है। इसके लिए उक्त सप्तमी को सफेद तिलों के जल से स्नान करके सफेद वस्त्र धारण करें। एक वेदी पर कुंकुम से अष्टदल लिखकर 'ॐ नमः सवित्रे' इस मंत्र से उसका पूजन करें।

फिर उस पर खांड से भरा हुआ और सफेद वस्त्र से ढंका हुआ सुवर्णयुक्त कोरा कलश स्थापित करके ऐविश्वदेवमयो यस्माद्वेदवादीति पठयसे। त्वमेवामृतसर्वस्वमतः पाहि सनातन।' इस मंत्र से यथाविधि पूजन करें और दूसरे दिन ब्राह्मणों को घृत और शर्करामिति खीर का भोजन कराकर वह घड़ा दान करें। इससे आयु, आरोग्य और ऐश्वर्य की वृद्धि होती है।

वैशाखी अष्टमीः इसके निमित्त वैशाख शुक्ल अष्टमी को आम के रस से स्नान करके अपराजिता देवी को उशीर और जटामासी के जल से स्नान कराएं फिर पंचगंध (जायफल, पूगफल, कपूर, कंकोल और लौंग) का लेप करें और गंध पुष्पादि से पूजन करके घी, शक्कर तथा खीर का भोग लगाएं। स्वयं उपवास करें तथा दूसरे दिन नवमी को ब्राह्मण भोजन कराके भोजन करें समस्त तीर्थों में स्नान का फल मिलता है।

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जानकी नवमीः वैष्णों के मतानुसार वैशाख शुक्ल नवमी को भगवती जानकी का प्रादुर्भाव हुआ था। अतएवं इस दिन व्रत रखकर उनका जन्मोत्सव तथा पूजन करना चाहिए। 'पुन्वितायां तु कुजे नवम्यां श्रीमाधवे मासि सिते हलाग्रतः भुवोऽर्चयित्वा जनकेन कर्षणो सीताविरासीद् व्रतमत्र कुर्यात्‌।'

वैशाख शुक्ल एकादशीः कूर्मपुराण में इस व्रत के नियम-विधान और निर्णय कृष्ण एकादशी की भांति है। इसका नाम मोहिनी है। इससे मोहजाल और पाप समूह दूर होते हैं। भगवान श्रीरामचन्द्र जी ने इस व्रत को सीता की खोज करते समय किया था। उनके पीछे कोण्डिन्य के कहने से धृष्टबुद्धि ने और श्रीकृष्ण के कहने पर युधिष्ठिर ने किया। इस समय भी सनातन धर्मावलम्बी इस व्रत को बड़ी श्रद्धा से करते हैं।

इसकी एक कथा है, उससे ज्ञात होता है कि मनुष्य का किस प्रकार कुसंग से पतन और सुसंग से सुधार हो जाता है। प्राचीन काल में सरस्वती के तटवर्ती भद्रावती नगरी में श्रुतिमान राजा के सुमन, मेधावी और धृष्टबुद्धि ये पांच पुत्र हुए थे। इनमें धृष्टबुद्धि का कुसंग से पतन हो गया और वह धन, धान्य, सम्मान तथा गृह आदि से हीन होकर हिंसावृत्ति में लग गया। इस दुर्गति से उसने अनेक अनर्थ किए।

अंत में कोण्डिन्य ने बतलाया कि तुम मोहिनी एकादशी व्रत करो, उससे तुम्हारा उद्धार होगा। यह सुनकर उसने वैसा ही किया व्रत के प्रभाव से पूर्ववत्‌ जीवन व्यतीत कर अंत में स्वर्ग में गया।

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