हमारी पौराणिक कथाओं में प्रत्येक उपवास का कोई न कोई वैज्ञानिक आधार भी बताया गया है। उन्हें कर्मकांडों से इसलिए जोड़ा गया, ताकि जनसाधारण उपवास का वैज्ञानिक आधार समझे बिना भी उनकी जरूरत समझ सकें।
उपवास और भूख हड़ताल को लेकर लोग अक्सर भ्रमित रहते हैं। भूख हड़ताल में कुछ भी खाया-पीया नहीं जाता है, जबकि उपवास का अर्थ पांच ज्ञानेंद्रियों और पांच कर्मेंद्रियों पर नियंत्रण से है। व्रत या उपवास में खाने-पीने पर रोक नहीं है, लेकिन वह अनुशासित होना चाहिए। वैदिक या आध्यात्मिक व्रत की चर्चा यजुर्वेद के कर्मकांड में भी की गई है।
भगवद्गीता के अनुसार हमारा व्यवहार, विचार, भोजन और जीवनशैली तीन चीजों पर आधारित होती है- सत्व, तमस और राजस। सात्विक विचारों वाला व्यक्ति निश्चिंत स्वभाव का होता है और सृजनशील भी। राजसी विचारों वाला व्यक्ति महत्वाकांक्षी होने के साथ-साथ लालची भी होता है। वहीं तामसी प्रवृत्ति का व्यक्ति न सिर्फ नकारात्मक सोच रखता है, बल्कि वह गलत कार्यों में भी संलग्न रहता है।
योगी या ऋषि बनने का मार्ग सात्विक विचारों से खुलता है। हम सभी सत्व, रजस और तमस के बीच झूलते रहते हैं। हमारा झुकाव राजसी और तामसी प्रवृत्तियों की ओर न होने पाए, इसके लिए जरूरी है कि हम खुद को संतुलित करना सीखें। इसका एक प्रभावी तरीका है वैदिक उपवास।
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वैदिक उपवास कुछ और नहीं, बल्कि 24 घंटे तक शरीर और मस्तिष्क को सत्व की स्थिति में रखने की एक कोशिश है। यह कार्य समर्पण और अनुशासन के बिना हो पाना असंभव है। यह भी जरूरी है कि उपवास जबर्दस्ती नहीं, बल्कि आंतरिक प्रेरणा के तहत रखा जाए। साथ ही, उपवास के दौरान राजसी-तामसी वस्तुओं के इस्तेमाल से पूरा परहेज बरता जाए।
अब सवाल है कि वह कौन सा सात्विक भोजन है, जो उपवास में ग्रहण किया जा सकता है। इसका जवाब है- दूध, घी, फल और मेवे। इनका भोजन उपवास में इसलिए मान्य है, क्योंकि ये भगवान को अर्पित की जाने वाली वस्तुएं हैं। वैसे भी प्रकृति प्रदत्त यह भोजन शरीर में सात्विकता बढ़ाता है। भगवद्गीता के अनुसार मांस, अंडे, खट्टे और तले हुए, नमकीन व ठंडे पदार्थ राजसी-तामसी प्रवृतियों को बढ़ावा देते हैं। इसलिए वैदिक उपवास के दौरान इनका सेवन नहीं किया जाना चाहिए।
उपवास के दौरान किए जाने वाले अनुष्ठानों का भी व्यापक अभिप्राय है। असल में इस तरह के अनुष्ठानों से शरीर में पैदा होने वाले विषैले पदार्थों के प्रभाव को समाप्त किया जा सकता है। शारीरिक शुद्धि के लिए तुलसी जल, अदरक का पानी या फिर अंगूर इस दौरान ग्रहण किया जा सकता है। जबकि मानसिक शुद्दिकरण के लिए जाप, ध्यान, सत्संग, दान और धार्मिक सभाओं में भाग लेना चाहिए। उपवास के दौरान हिंसा और सेक्स से भरपूर दृश्यों और बातों से भी बचना चाहिए। इस प्रकार कह सकते हैं कि वैदिक उपवास शारीरिक, मानसिक और अंतःकरण के संपूर्ण शुद्धिकरण की प्रक्रिया है। यह धारणा गलत है कि उपवास सिर्फ महिलाओं को ही करना चाहिए। उपवास का लाभ किसी भी उम्र के स्त्री-पुरुष उठा सकते हैं।
उपवास से धार्मिक अनुष्ठानों को इसलिए जोड़ा गया, ताकि स्वास्थ्य के पहलू पर ध्यान दिया जा सके। जैसे संतोषी मां का व्रत। शुक्रवार के दिन शादीशुदा महिलाएं यह व्रत रखती हैं और गुड़-चने का प्रसाद लेती हैं। गुड़ शरीर में आयरन (लोहा) की पूर्ति करता है, तो चने से प्रोटीन मिलता है।
उपवास की प्रक्रिया सिर्फ कम खाने या सात्विक भोजन से ही पूर्ण नहीं हो जाती। इस दौरान सुबह-शाम ध्यान करना भी जरूरी है। इससे दिमाग शांत होता है और मन में सद्विचारों का प्रवाह होता है। उपवास की अवधि में न तो किसी का अहित सोचना चाहिए और न ही किसी से गलत व्यवहार करना चाहिए। रमजान के दौरान उपवास रखने वाले मुसलमान लड़ाई-झगड़े या अपशब्द कहने आदि से भी परहेज करते हैं।