सिंधी समुदाय का चालीस दिवसीय अखंड ज्योति महोत्सव (चालिया पर्व) शुरू हो गया। अब सिंधी समाज चालीस दिनों तक व्रत-उपवास रखकर पूजा-अर्चना के साथ सुबह-शाम झूलेलाल कथा का श्रवण भी करेंगे। इस महोत्सव में झूलेलाल मंदिरों को विशेष रूप से सुसज्जित किया गया है, तथा मंदिरों में कथा, आरती, भजन-कीर्तनों के साथ धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन जारी रहेगा।
इन व्रतों के दिनों में महिलाएं प्रतिदिन चार या पांच मुखी आटे का दीपक अपने घरों से लेकर भगवान की पूजा करेंगी। साथ ही मनोकामनाएं मांगने वाली महिलाएं अपने घर से चावल, इलायची, मिस्त्री व लौंग लाकर झूलेलाल का पूजन करेंगी। जीवन को सुखी बनाने एवं लोक कल्याण के लिए यह व्रत महोत्सव मनाया जाएगा।
भगवान झूलेलाल के इस पर्व में जल की आराधना की जाती है। यह सिंधी समुदाय का सबसे बडा़ पर्व माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इन दिनों भगवान झूलेलाल वरूणदेव का अवतरण करके अपने भक्तों के सभी कष्टों को दूर करते हैं। जो भी लोग चालीस दिन तक विधि-विधान से पूजा-अर्चना करता है, उनके सभी दुख दूर हो जाते हैं। सिंधी समुदाय का सबसे बडा़ धार्मिक आयोजन झूलेलाल महोत्सव ही माना जाता है।
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सिंधी समाज के अनुसार भगवान झूलेलाल का अवतरण सिंधी धर्म के लिए हुआ है।
पौराणिक कथा के अनुसार सिंध का शासक मिरक अपनी प्रजा पर बहुत अत्याचार करता था। उस शासक के अत्याचार से मुक्ति पाने के लिए ही चालीस दिनों तक धार्मिक अनुष्ठान, जप और तप, व्रत-उपवास आदि किए गए। फिर उसके प्रभाव से एक विशालकाय मछली पर भगवान झूलेलाल प्रकट हुए और उन्होंने भक्तों से कहा कि मैं चालीस दिन बाद सिंध में जन्म लूंगा।
भगवान झूलेलाल द्वारा बताए गए स्थान पर चैत्र सुदी दूज के दिन एक बच्चे ने जन्म लिया, जिसका नाम उदय रखा गया था। उनके चमत्कारों के कारण ही बाद में उन्हें झूलेलाल के नाम से जाना गया।
चालिया पर्व के अंतर्गत इन दिनों में खास तौर पर मंदिर में जल रही अखंड ज्योति की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है तथा प्रति शुक्रवार को भगवान का अभिषेक और आरती की जाती है।
भगवान झूलेलाल को भगवान विष्णु तथा सूर्य के ज्योति स्वरूप अवतार माना जाता हैं। इसलिए चालीसा महोत्सव में झूलेलाल का अखंड ज्योति रूप में में पूजन किया जाएगा। यह उत्सव 16 जुलाई 2012 से शुरू होकर 24 अगस्त तक मनाया जाता है।