चेटीचंड : मन्नते मांगने का दिन
सिंधी समाज द्वारा चेटीचंड धूमधाम के साथ मनाया जाता है। वर्ष भर में जिनकी मन्नत पूरी हुई हो, वे आज के दिन भगवान झूलेलालजी का शुक्राना जरूर अदा करते हैं। साथ ही नई मन्नतों का सिलसिला भी इसी दिन से शुरू हो जाता है। इस दिन केवल मन्नत मांगना ही काफी नहीं, बल्कि भगवान झूलेलाल द्वारा बताए मार्ग पर चलने का भी प्रण लेना चाहिए। भगवान झूलेलाल ने दमनकारी मिर्ख बादशाह का दमन नहीं किया था, केवल मान-मर्दन किया था। यानी कि सिर्फ बुराई से नफरत करो, बुरे से नहीं। भगवान झूलेलाल जल के देवता हैं। जल बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। इसीलिए जल को सहेजने का संकल्प भी इस दिन लेना चाहिए। चेटीचंड के दिन प्रातः उठकर अपने बुजुर्गों एवं संतों के आशीर्वाद से दिन की शुरुआत होती है। वरूण देव के शुक्राने में 'कणा-सेसा' यानी शीरा प्रसाद वितरित किया जाता है। इसी दिन नवजात शिशुओं की झंड (मुंडन) भी नदी किनारे उतरवाई जाती है। हालांकि नदियों के प्रदूषित होने से यह परंपरा अब टिकाणों (मंदिरों) में होने लगी है।भगवान झूलेलाल की शोभायात्रा में दूर-दराज के निवासी भी आते हैं। प्रत्येक सिंधी परिवार अपने घर पर पांच दीपक जलाकर और विद्युत सज्जा कर चेटीचंड को दीपावली की तरह मनाते हैं। प्रस्तुतिः कमल ईसरानी