संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा घोषित विभिन्न धर्मों का सद्भावना सप्ताह हमें याद दिलाता है कि हमारे इतिहास में जो सबसे प्रेरणादायक व्यक्ति हुए हैं उन्होंने बार-बार सभी धर्मों के मेलजोल और भाईचारे का संदेश दिया है।
सम्राट अशोक ने कहा, 'दूसरों के सब धर्म सम्मान के योग्य हैं। उनका आदर करने वाला अपने ही धर्म का सम्मान करता है और साथ ही वह दूसरों के धर्म की सेवा भी करता है। इसके विपरीत आचरण से वह अपने धर्म को आघात पहुँचाता है और दूसरों के धर्म की भी कुसेवा करता है, क्योंकि यदि अपने धर्म के प्रति निष्ठा के कारण या उसकी यशस्विता के लिए कोई अपने धर्म की बड़ाई और दूसरे धर्म की निंदा करता है, तो वह अपने धर्म को हानि पहुँचाता है।
इसलिए केवल तालमेल ही श्लाघ्य है - 'समवाय एव साधु,' क्योंकि तालमेल से ही दूसरों के द्वारा स्वीकृति, धर्म की धारणा का ज्ञान और उसके प्रति सम्मान होता है। सम्राट प्रियदर्शी इच्छा करते हैं कि सभी धर्मों के अनुयायी एक-दूसरे के सिद्धांतों को जानें और उचित सिद्धांतों की उपलब्धि करें। जो इन विशिष्ट मतों से संबद्ध हैं, उनसे कह देना चाहिए कि सम्राट प्रियदर्शी उपहारों एवं उपाधियों को उतना महत्त्व नहीं देते, जितना उन गुणों की वृद्धि को देते हैं जो सभी धर्मों के आदमियों के लिए आवश्यक हैं।'
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महात्मा गाँधी ने कहा, 'धर्म मनुष्य को दूसरे से अलग नहीं करता है। वह उन्हें एक साथ मिला कर रखता है। मैं अपने सपनों के ऐसे भारत की कल्पना नहीं करता हूँ जो केवल एक ही धर्म को विकसित करे, यनि वह केवल हिन्दू या केवल मुसलमान को ही विकसित करे, बल्कि मैं चाहता हूँ कि वह पूरी तरह सहिष्णु बने जिसमें सभी धर्म एक-दूसरे के साथ मिलकर कार्य करें।'
यह प्रवृत्ति कि सत्य पर हमारा ही एकाधिकार है, धर्मों में निहित उदारता से मेल नहीं खाती। फिर प्रत्येक महान धर्म ने दूसरों से भी सीखा है। जरूरी है कि मेलजोल की प्रक्रिया चलती रहे।
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स्वामी विवेकानंद ने कहा, 'मैं एक ऐसे धर्म का अनुयायी होने में गर्व का अनुभव करता हूँ जिसने विश्व को सहिष्णुता और सार्वभौम स्वीकृति दोनों की शिक्षा दी है। हम न केवल सार्वभौम सहिष्णुता में विश्वास करते हैं, बल्कि हम सभी धर्मों को सच्चा मानते हैं। मैं एक ऐसे राष्ट्र का वासी होने में गर्व का अनुभव करता हूँ जिसने धरती के सभी देशों एवं धर्मों के शरणार्थियों तथा उत्पीड़ितों को शरण दी है।'
'संकीर्णतावाद, कट्टरतावाद और उनके वीभत्स उत्तराधिकारी धर्मोन्माद ने इस सुंदर धरती पर बहुत दिनों तक राज किया है। उसने इस धरती को हिंसा से भर दिया है, उसे बार-बार मानव रक्त से नहलाता रहा है, सभ्यता को नष्ट कर दिया है तथा पूरे देश को निराशा के गर्त में धकेल दिया है। यदि ये भयावह दानव नहीं होते तो मानव समाज ने जितनी प्रगति की है, उससे और अधिक प्रगति की होती।'