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आज के शुभ मुहूर्त

(द्वितीया तिथि)
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  • व्रत/मुहूर्त-सौर मार्गशीर्ष प्रा., रोहिणी व्रत
  • राहुकाल- सायं 4:30 से 6:00 बजे तक
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पारसी नववर्ष- नवरोज

हमें फॉलो करें पारसी नववर्ष- नवरोज
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आज से लगभग 3000 वर्ष पूर्व शाह जमशेदजी ने पारसी धर्म में नवरोज मनाने की शुरुआत की। नव अर्थात् नया और रोज यानि दिन। पारसी धर्मावलंबियों के लिए इस दिन का विशेष महत्‍व है।

नवरोज के दिन पारसी परिवारों में बच्‍चे, बड़े सभी सुबह जल्‍दी तैयार होकर, नए साल के स्‍वागत की तैयारियों में लग जाते हैं। इस दिन पारसी लोग अपने घर की सीढियों पर रंगोली सजाते हैं। चंदन की लकडियों से घर को महकाया जाता है। यह सबकुछ सिर्फ नए साल के स्‍वागत में ही नहीं, बल्कि हवा को शुद्ध करने के उद्देश्‍य से भी किया जाता है।

इस दिन पारसी मंदिर अगियारी में विशेष प्रार्थनाएँ संपन्‍न होती हैं। इन प्रार्थनाओं में बीते वर्ष की सभी उपलब्धियों के लिए ईश्‍वर के प्रति आभार व्‍यक्‍त किया जाता है। मंदिर में प्रार्थना का सत्र समाप्‍त होने के बाद समुदाय के सभी लोग एक-दूसरे को नववर्ष की बधाई देते हैं।

नवरोज के दिन भर घर में मेहमानों के आने-जाने और बधाइयों का सिलसिला चलता रहता है। इस दिन पारसी घरों में सुबह के नाश्‍ते में ‘रावो’ नामक व्‍यंजन बनाया जाता है। इसे सूजी, दूध और शक्‍कर मिलाकर तैयार किया जाता है।

नवरोज के दिन पारसी परिवारों में विभिन्‍न शाकहारी और माँसाहारी व्‍यंजनों के साथ मूँग की दाल और चावल अनिवार्य रूप से बनते हैं। विभिन्‍न स्‍वादिष्‍ट पकवानों के बीच मूँग की दाल और चावल उस सादगी का प्रतीक है, जिसे पारसी समुदाय के लोग जीवनपर्यंत अपनाते हैं।

नवरोज के दिन घर आने वाले मेहमानों पर गुलाब जल छिड़ककर उनका स्‍वागत किया जाता है। बाद में उन्‍हें नए वर्ष की लजीज शुरुआत के लिए ‘फालूदा’ खिलाया जाता है। ‘फालूदा’ सेंवइयों से तैयार किया गया एक मीठा व्‍यंजन होता है।


हालाँकि पारसी समुदाय के लोगों की जीवन-शैली में आधुनिकता और पाश्‍चात्‍य संस्‍कृति का प्रभाव स्‍पष्‍टतया देखा जा सकता है। लेकिन पारसी समाज में आज भी त्‍योहार उतने ही पारंपरिक तरीके से मनाए जाते हैं, जैसे कि वर्षों पहले मनाए जाते थे।

यूँ तो भारत के हर त्‍योहार में घर सजाने से लेकर, मंदिरों में पूजा-पाठ करना और लोगों का एक-दूसरे को बधाई देना शामिल है। जो बात इस पारसी नववर्ष को खास बनाती है, वह यह कि ‘नवरोज’ समानता की पैरवी करता है। इंसानियत के धरातल पर देखा जाए तो नवरोज की सारी परंपराएँ महिलाएँ और पुरुष मिलकर निभाते हैं। त्‍योहार की तैयारियाँ करने से लेकर त्‍योहार की खुशियाँ मनाने में दोनों एक-दूसरे के पूरक बने रहते हैं।

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