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पारसी नववर्ष 'नवरोज' प्रारंभ

हर क्षेत्र में छा गए पारसी

हमें फॉलो करें पारसी नववर्ष 'नवरोज' प्रारंभ
- विके डांग
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धार्मिक व सांस्कृतिक दृष्टि से पारसी धर्म व समाज भारतीयों के निकट है। पारसी 9वीं-10वीं सदी में भारत आए, ऐसे ऐतिहासिक प्रमाण हैं। भारत में प्रथम पारसी बस्ती का प्रमाण संजाण (सूरत निकट) का अग्नि स्तंभ है-जो अग्निपूजक पारसीधर्मियों ने बनाया।

पहले पारसी लोग कृषि में व बाद में व्यापार व उद्योग में लगे। भारतीय जहाज निर्माण को इन्होंने पुनःजीवित कर योरपियों से भारत को सौंपा। पारसियों द्वारा निर्मित जहाज ब्रिटिश नौसेना खरीदती थी (तब तक भाप के इंजन न थे)। फ्रामजी माणेकजी, माणेकजी बम्मनजी आदि ये पारसी नाम इस संबंध में प्रसिद्ध हैं। अँगरेज शासन के साथ इन्होंने संबंध सामान्य रखे परंतु अपनी भारतीय मान्यताओं व स्वाभिमान को अक्षत रखकर। उन्होंने भारत को अपना देश मानकर भारतीय स्वतंत्रता का समर्थन किया।

पारसी समाज ने उच्चभ्रू वर्ग की राजनीति में विशेष स्थान बनाया। दिनशा एदलजी वाच्छा व मुंबई के सिंह, फिरोजशहा मेहता, जो तिलक के समकालीन थे-नरम दली नेता के रूप में प्रसिद्ध हुए। ठीक इसके विपरीत भारत, ब्रिटेन व फ्रांस में रहकर स्वातंत्र्यवीर सावरकर की साथी मादाम भिखाजी रुस्तमजी कामा अपने क्रांतिकारी विचारों के लिए प्रसिद्ध हैं। स्वतंत्रता संघर्ष में समाजवादी विचारों के लिए फाली नरीमन व नौशेर भरुचा जैसे पारसी व्यक्तित्व स्मरणीय हैं।

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व्यापार से बढ़कर उद्योग क्षेत्र में दूरदृष्टि के लिए जमशेदजी जिजीभाई टाटा प्रसिद्ध हुए। उन्होंने भारत में इस्पात उद्योग की नींव रखकर इस क्षेत्र में अँगरेजों को सफल चुनौती दी। उन्होंने लोनावला (महाराष्ट्र) में भारत के प्रथम जल विद्युत केंद्र की परिकल्पना की। भारत की पंचवर्षीय योजनाएँ उन्हीं की विभिन्न अभिकल्पनाओं के आधार पर बनीं। अब तो हर प्रगत क्षेत्र में टाटा उद्योगों की एक श्रृंखला ही बनी है। इसी प्रकार गोदरेज परिवार सुरक्षा यांत्रिकी (तिजोरी व ताले) व साबुन उद्योग में प्रसिद्ध है। प्रख्यात रसना पेय कंपनी का स्वामित्व भी पारसियों के पास है। बॉम्बे डाइंग के मालिक नुस्ली वाडिया प्रसिद्ध उद्योगपति हैं।

आधुनिक समय में भी शिक्षा, विज्ञान, चिकित्सा, क्रीड़ा आदि क्षेत्रों में पारसियों ने महती योगदान किया है। मुंबई का जेजे स्कूल ऑफ आर्ट्‌स, मौलिक शोध हेतु टाटा संस्थान, जहाँगीर ऑर्ट गैलरी, टाटा अस्पताल जाना-माना नाम हैं। एक समय क्रिकेट क्षेत्र में पॉली उम्रीगर व नरी कांट्रेक्टर काफी नामी थे।

विश्व में 100 विकेट लेने वाली प्रथम महिला क्रिकेटर डायना एदुलजी, फारुख इंजीनियर, मुंबई के पुलिस के जूडो कराते प्रशिक्षक (ब्लैक बेल्ट से वरिष्ठ योग्यता) विस्पी कापड़िया को कौन नहीं जानता! विज्ञान क्षेत्र में होमी जे. भाभा ने भारत में परमाणु ऊर्जा संबंधी शोध कार्य की नींव रखी। उनके नाम से ज्ञात भाभा परमाणु ऊर्जा शोध केंद्र है। साहित्य में बुकर पुरस्कार विजेता रोहितन मिस्त्री प्रसिद्ध हैं।

मप्र के उद्योग क्षेत्र में जाल परिवार प्रसिद्ध है, साम्यवादी आंदोलन में पूर्व सांसद होमी एफ. दाजी प्रसिद्ध हुए। वर्तमान में भी पारसी समाज में सोली सोराबजी जैसे संविधान विशेषज्ञ हैं, जिनकी विशेष प्रसंगों पर सलाह ली जाती रही है। पारसी समाज उद्योगी, शांतिप्रिय, बुद्धिजीवी व देश सेवारत रहा है। इसने मुख्यतः धर्म से ऊपर उठकर मानव सेवा की ओर ध्यान दिया है। अपने धर्मस्थल व आश्रय स्थल बनाने के स्थान पर इसने वृहत आकार की शिक्षा, चिकित्सा व शोध संस्थान बनाए।

इस समाज की गंभीर समस्या घटती जनसंख्या है। ये अब एक लाख से कम हैं। यह भारत हेतु चिंतनीय है, क्योंकि 1100 वर्षों से जो समाज भारत में दूध में शक्कर की तरह मिल गया व राष्ट्रीय जीवन का अभिन्न अंश है। जिसने अपनी संख्या की तुलना में राष्ट्र को कई महान व्यक्ति दिए, उसकी जनसंख्या घटना एक राष्ट्रीय संकट है।

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