संजय पटेल
पं. भीमसेन जोशी अब भारतरत्न पं. भीमसेन जोशी कहलाएँगे। भारतीय शास्त्रीय के यश का कलश जगमगा उठा है। 'धन धन भाग सुहाग तेरो' में बंदिश भीमसेनजी की ही गाई हुई है और देश के सर्वोच्च अलंकरण से नवाजे जाने की घड़ी में लग रहा है जैसे इस महान स्वर-साधक ने अपने 'सुर-तप' से हमारी रागिनियों को अखंड सुहागन होने का उपहार दे डाला है।
किराना घराने के इस यशस्वी साधक का नाम भारतरत्न के रूप में मनोनीत होने से पं. भीमसेन जोशी ही नहीं, उस्ताद अब्दुल करीम खाँ और पं. सवाई गंधर्व का मान बढ़ गया है। इन्हीं गुणीजनों की विरासत को वैभव दिया है भीमसेनजी ने।
कर्नाटक के धारवाड़ जिले की मिट्टी में कोई ऐसा सुरीला जादू जरूर है कि इसी जगह से सुरेश बाबू माने, रोशनआरा बेगम, हीराबाई बड़ोदकर, गंगूबाई हंगल, कुमार गंधर्व, बसवराज राजगुरु और मल्लिकार्जुन मंसूर जैसे सुविख्यात कलाकारों ने भारतीय शास्त्रीय गायन परंपरा को आलोकित किया। महज दस वर्ष की आयु में भीमसेनजी को शास्त्रीय गायन के प्रति अनुराग जाग गया था और माता-पिता के संस्कार और गुरुजनों के प्रति अगाध आस्था ने बालक भीमसेन को शीर्ष पर पहुँचा दिया।
पं. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बंदिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते हैं, वह महसूस करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते आए हैं। सादे पहनावे, रहन-सहन और स्वभाव वाले भीमसेनजी को अपने बारे में कहने में हमेशा संकोच रहा है।
उनका मानना रहा है कि कलाकार को मीडिया और प्रचार से एक वाजिब दूरी रखनी चाहिए और हमेशा अपने फन से अपनी बात कहनी चाहिए। पं. भीमसेन जोशी ने शास्त्रीय संगीत के अलावा 'संतवाणी' शीर्षक से भक्ति संगीत के सैकड़ों कार्यक्रम दिए हैं। अभिनव कला समाज के मंच पर भी उनकी प्रस्तुति इंदौर के आयोजनों की सर्वाधिक सफल प्रस्तुति रही है।
तुकाराम, नामदेव, कबीर, ब्रह्मानंद आदि भक्तिकालीन कवियों के अभंग एव भजनों को जन-जन में पहुँचाकर भीमसेनजी ने अनूठा काम किया है। भारतरत्न पं. भीमसेन जोशी भारतीय संस्कृति के शिखर पुरुष के रूप में पूजनीय हैं। उनके दामन में अनंत श्रोताओं का प्रेम, सुयश, प्रतिष्ठा, शोहरत और अब शीर्ष सम्मान भी आ समाए हैं।
क्या यह कहना उचित नहीं होगा कि पं. भीमसेन जोशी के नाम के आगे भारतरत्न लगने से इस नागरिक अलंकरण की प्रतिष्ठा बढ़ी है। ये घड़ी सुर का मंगल-पर्व मनाने की है।