1853 : विवाद की शुरुआत 1853 में हुई जब इस स्थान के आसपास पहली बार सांप्रदायिक दंगे हुए। 1859 में अंग्रेजी प्रशासन ने विवादित जगह के आसपास बाड़ लगा दी। मुसलमानों को ढांचे के अंदर और हिंदुओं को बाहर चबूतरे पर पूजा करने की अनुमति दी गई।
1885 : फरवरी 1885 में महंत रघुबर दास ने फैजाबाद के उप-जज के सामने याचिका दायर कर मंदिर बनाने की इजाजत मांगी, लेकिन उन्हें अनुमति नहीं मिली।
1949 : असली विवाद तब शुरू हुआ जब 23 दिसंबर 1949 को भगवान राम और लक्ष्मण की मूर्तियां विवादित स्थल पर पाई गईं। उस समय हिंदुओं का कहना था कि भगवान राम प्रकट हुए हैं, जबकि मुसलमानों का आरोप था कि रात में चुपचाप किसी ने मूर्तियां रख दीं।
1950 : 16 जनवरी 1950 को गोपालसिंह विशारद नामक व्यक्ति ने फैजाबाद के सिविल जज के सामने याचिका दाखिल कर पूजा की इजाजत मांगी, जो कि उन्हें मिल गई, जबकि मुस्लिम पक्ष ने इस फैसले के खिलाफ अर्जी दाखिल की।
1986 : मंदिर बनाने के लिए विश्व हिंदू परिषद ने एक कमेटी का गठन किया। फैजाबाद के जज ने 1 फरवरी 1986 को जन्मस्थान का ताला खुलवाने और हिन्दुओं को पूजा करने का अधिकार देने का आदेश दिया। इसके विरोध में बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति का गठन किया गया।
1990 : भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या के लिए एक रथयात्रा शुरू की, लेकिन उन्हें बिहार में ही गिरफ्तार कर लिया गया।
1992 : यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने विवादित स्थान की सुरक्षा का हलफनामा दिया, लेकिन 6 दिसंबर 1992 को कथित रूप से भाजपा, विश्व हिन्दू परिषद और शिवसेना समेत दूसरे हिंदू संगठनों के लाखों कार्यकर्ताओं ने ढांचे को गिरा दिया।
2003 : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2003 में झगड़े वाली जगह पर खुदाई करवाने के निर्देश दिए ताकि पता चल सके कि क्या वहां पर कोई राम मंदिर था।
2010 : 30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आदेश पारित कर अयोध्या की 2.77 एकड़ विवादित भूमि को 3 हिस्सों में बांट दिया। एक हिस्सा रामलला के पक्षकारों को मिला। दूसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़े को, जबकि तीसरा हिस्सा सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को मिला।
2019 : इस बहुचर्चित मामले की 16 अक्टूबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई समाप्त। शीर्ष अदालत में 6 अगस्त से 16 अक्टूबर 2019 तक लगातार सुनवाई चली।