दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी भाजपा के 11वें अध्यक्ष जगतप्रकाश नड्डा को 18 महीने का एक्सटेंशन मिल गया है। इसके साथ यह भी तय हो गया है कि 2024 का लोकसभा चुनाव पार्टी उनके ही नेतृत्व में लड़ने जा रही है। 2023 में भी भाजपा को 9 राज्यों में विधानसभा चुनाव का सामना करना पड़ेगा। जम्मू-कश्मीर में भी इसी साल चुनाव हो सकते हैं। ऐसे में अध्यक्ष के रूप में नड्डा के समक्ष चुनौतियों का अंबार होगा।
दरअसल, अमित शाह के गृहमंत्री बनने के बाद नड्डा ने पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में जिम्मेदारी संभाली थी। नड्डा भाजपा के अध्यक्ष पद के लिए लंबे समय से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री शाह की पसंद के तौर पर देखे जाते हैं।
जन्म और शिक्षा : ब्राह्मण परिवार से संबंध रखने वाले जगत प्रकाश नड्डा का जन्म 2 दिसंबर 1960 में बिहार की राजधानी पटना में हुआ था। जगत प्रकाश नड्डा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा और बीए की डिग्री पटना के कॉलेज से हासिल की है। एलएलबी की डिग्री इन्होंने हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी से प्राप्त की है।
राजनीतिक करियर : जेपी नड्डा ने राजनीति में शुरुआत छात्र राजनीति से की थी। संगठन में उनका दशकों पुराना अनुभव, आरएसएस से उनकी नजदीकी और स्वच्छ छवि उनकी ताकत है।
नड्डा 1998 से लेकर 2003 तक हिमाचल प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री थे। 2008 से लेकर 2010 तक उन्होंने धूमल सरकार में मंत्री, कई अहम मंत्रालयों की जिम्मेदारी संभाली।
जेपी नड्डा अप्रैल 2012 में राज्यसभा सांसद चुने गए। वे संसदीय बोर्ड के एक सदस्य भी रहे हैं, जो कि पार्टी का निर्णय लेने वाला शीर्ष निकाय है। नड्डा मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में मंत्री भी रहे हैं। अमित शाह के गृहमंत्री बनने के बाद नड्डा को पहली बार भाजपा का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया। वहीं, 20 जनवरी 2022 को उन्हें पूर्णकालिक अध्यक्ष बनाया गया।
उप्र में बनाई जीत की रणनीति : जेपी नड्डा 2019 के लोकसभा चुनाव में उत्तरप्रदेश में भाजपा के चुनाव अभियान के प्रभारी थे, जहां पार्टी को सपा और बसपा के महागठबंधन से कड़ी चुनौती थी। भाजपा ने यूपी में 80 लोकसभा सीटों में से 62 पर जीत दर्ज की।
हिमाचल की हार बड़ा झटका : हालांकि जेपी नड्डा के लिए 2022 में हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में मिली हार बड़ा झटका थी। यहां भाजपा में सत्ता में थी, लेकिन वह अपनी सत्ता को कायम नहीं रख पाई। चूंकि नड्डा हिमाचल प्रदेश से ही आते हैं, इसलिए इस पहाड़ी राज्य की हार को उनके लिए तगड़ा झटका माना गया।