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पैर धोकर पीने की राजनीति के बहाने, पड़ताल पुरानी परंपरा की...

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प्रीति सोनी

पैर धोकर पीना... कहने को तो ये कहावत है, जिसे आभारी रहने या फिर दूसरी तरह से देखें तो चापलूसी के लिए प्रयोग किया जाता है... लेकिन इन दिनों सियासी गलियारों में चरितार्थ होती नजर आ रही है। ताजा उदाहरण झारखंड का है जहां गोड्डा कलाली गांव में एक पुल के शिलान्यास के दौरान भाजपा कार्यकर्ता पंकज साह ने सांसद निशिकांत दुबे को खुश करने के मकसद से न केवल तारीफ के कसीदे कढ़े, बल्कि उनके पैर धोकर उस पानी को चरणामृत की तरह पी भी लिया।
 
अब तक के इतिहास में हमने सिर्फ इस कहावत को सुना ही है।भगवान राम और केवट के किस्से के अलावा पैर धोकर पीने वाला कोई वाकया देखने में आया नहीं, लेकिन फिर भी हमने सोचा चलो तलाशा जाए कि क्या वाकई ऐसी कोई परंपरा होती भी है या फिर या सिर्फ चांद तारे तोड़ कर लाने वाली कहावत की तरह ही कहने सुनने की बाते हैं? जब इस बारे में पड़ताल की, तो क्या पाया ये आपके साथ भी बांटते हैं - 
 
  •  हिन्दू धर्म में कन्या के विवाह में होने वाले पाणिग्रहण संस्कार में इसका जिक्र मिलता है। कई जगहों पर आज भी कन्या को हल्दी लगने के बाद लक्ष्मी का रूप माना जाता है और उसके पैर धोने के बाद उस पानी को ग्रहण किया जाता है। इससे पहले तक कन्या के माता-पिता पानी भी ग्रहण नहीं करते। वहीं कन्या के मामा द्वारा दामाद के पग पखारने को भी इस परंपरा से जोड़कर देखा जाता है, लेकिन इस पानी को सभी जगह पिया नहीं जाता।
  • गुजरात के कुछ इलाकों में बेटी की शादी में इस तरह की परंपरा का पालन किया जाता है। हालांकि वक्त के साथ-साथ अब इसमें भी बदलाव आ चुका है, लेकिन हां जो जानकारी मिली उसके अनुसार दुल्हन के पिता दुल्हे के पैर दूध, पानी या शहद से धोते हैं और फिर उसे पीते हैं। इस परंपरा को मधुपर्क कहा जाता है।                                                                                                               
  • कहा जाता है कि मिथिला में आज भी अतिथियों का सत्कार उनके पैर धुलाकर किया जाता है। यह परंपरा राम-सीता के विवाह के समय से चली आ रही है। कहते हैं कि जब त्रेता युग में भगवान श्रीराम और सीता की शादी हुई थी, तब आज के उत्तर प्रदेश में अवस्थित अयोध्या से काफी संख्या में बारात मिथिला पहुंची तो बारातियों का स्वागत पांव धोकर किया गया था। इसी तरह आज भी मिथिला में जब शादी होती है तो बरातियों के पांव धोने का विशेष इंतजाम किया जाता है। लेकिन पैर धोकर पीने का कोई उदाहरण यहां भी देखने को नहीं आता।                                                                                                     
  • गुड फ्राइडे से पहले यानी गुरुवार को ही इस तरह की एक परंपरा की शुरुआत होती है। मान्यता है कि इस दिन ईसा मसीह ने अपने 12 शिष्यों के साथ अंतिम भोज में भाग लिया था। इस दिन ईसा मसीह ने अपने शिष्यों के पैर धोए और उनके साथ अंतिम भोज में भाग लिया था, जिसे (last supper) के नाम से भी जाना जाता है। इसी की याद में चर्च के फादर यानी पुरोहित 12 लोगों के पैर धोते हैं। ईसाइयों के धर्म गुरु पोप भी वेटिकन सिटी में 12 लोगों के पैर धोते हैं।  
  • आदिवासी समुदाय में सेंदरा नाम की एक परंपरा है जिसमें सेंदरा यानि शिकार से जब शिकारी घर वापस लौटते हैं तो परिवार की महिलाएं वीरों की तरह उनका स्वागत पैर धोकर करती हैं। पैर धोने के बाद ही वे घर में प्रवेश करते हैं जिसके इसके बाद घर में तेल-हल्दी व खाने की रस्म होती है।
  • बनारस में रामलीला से जुड़ी इस प्रकार की परंपरा का कहीं-कहीं जिक्र जरूर मिलता है। बताया जाता है कि यहां रामलीला की प्राचीन रामलीला का अपना महत्व है। इसे मेघा भगत ने शुरू किया था। यदि राम की प्रतिमूर्ति के पैर धोकर पीते हुए आप यहां के लोगों को देखेंगे तो आश्चर्य चकित अवश्य होंगे।
पैर धोकर पीने वाली इस कहावत के बारे में ऊपर बताई गई जानकारियां तो जरूर पता चलीं, लेकिन पैर धोकर पीने का ये रिवाज क्या कभी शुरु हुआ था, कब शुरु हुआ और क्या यह वर्तमान में कहीं प्रचलित है, इस बारे में कोई पुख्ता जानकारी अब तक नहीं मिल पाई है। 

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