प्राणायाम जीवन का रहस्य है। श्वासों के आवागमन पर ही हमारा जीवन निर्भर है और ऑक्सीजन की अपर्याप्त मात्रा से रोग और शोक उत्पन्न होते हैं। प्रदूषण भरे महौल और चिंता से हमारी श्वासों की गति अपना स्वाभाविक रूप खो ही देती है जिसके कारण प्राणवायु संकट काल में हमारा साथ नहीं दे पाती। ऐस में प्राणायाम को सिखकर अपने जीवन का अंग बनाएं। सबसे पहले अनुलोम और विलोम का अभ्यास करने के बाद ही दूसरे प्राणायाम करना चाहिए। आओ जानेत हैं भस्त्रिका प्राणायाम कैसे करते हैं और क्या है इसका लाभ।
भस्त्रिका का शब्दिक अर्थ है धौंकनी अर्थात एक ऐसा प्राणायाम जिसमें लोहार की धौंकनी की तरह आवाज करते हुए वेगपूर्वक शुद्ध प्राणवायु को अन्दर ले जाते हैं और अशुद्ध वायु को बाहर फेंकते हैं।
विधि : सिद्धासन या सुखासन में बैठकर कमर, गर्दन और रीढ़ की हड्डी को सीधा रखते हुए शरीर और मन को स्थिर रखें। आंखें बंद कर दें। फिर तेज गति से श्वास लें और तेज गति से ही श्वास बाहर निकालें। श्वास लेते समय पेट फूलना चाहिए और श्वास छोड़ते समय पेट पिचकना चाहिए। इससे नाभि स्थल पर दबाव पड़ता है।
इस प्राणायाम को करते समय श्वास की गति पहले धीरे रखें, अर्थात दो सेकंड में एक श्वास भरना और श्वास छोड़ना। फिर मध्यम गति से श्वास भरें और छोड़ें, अर्थात एक सेकंड में एक श्वास भरना और श्वास छोड़ना। फिर श्वास की गति तेज कर दें अर्थात एक सेकंड में दो बार श्वास भरना और श्वास निकालना। श्वास लेते और छोड़ते समय एक जैसी गति बनाकर रखें।
वापस सामान्य अवस्था में आने के लिए श्वास की गति धीरे-धीरे कम करते जाएं और अंत में एक गहरी श्वास लेकर फिर श्वास निकालते हुए पूरे शरीर को ढीला छोड़ दें। इसके बाद योगाचार्य पांच बार कपालभाती प्राणायाम करने की सलाह देते हैं।
सावधानी : भस्त्रिका प्राणायाम करने से पहले नाक बिल्कुल साफ कर लें। भ्रस्त्रिका प्राणायाम प्रात: खुली और साफ हवा में करना चाहिए। क्षमता से ज्यादा इस प्राणायाम को नहीं करना चाहिए। दिन में सिर्फ एक बार ही यह प्राणायाम करें। प्राणायाम करते समय शरीर को न झटका दें और ना ही किसी तरह से शरीर हिलाएं। श्वास लेने और श्वास छोड़ने का समय बराबर रखें।
अवधि : नए अभ्यासी शुरू में कम से कम दस बार श्वास छोड़ तथा ले सकते हैं। जिनको तेज श्वास लेने में परेशानी या कुछ समस्या आती है तो प्रारंभ में श्वास मंद-मंद लें। ध्यान रहे कि यह प्राणायाम दोनों नासिका छिद्रों के साथ संपन्न होता है। श्वास लेने और छोड़ने को एक चक्र माना जाएगा तो एक बार में लगभग 25 चक्र कर सकते हैं।
उक्त प्राणायाम को करने के बाद श्वासों की गति को पुन: सामान्य करने के लिए अनुलोम-विलोम के साथ आंतरिक और बाहरी कुंभक करें या फिर कपालभाती पांच बार अवश्य कर लें।
चेतावनी : उच्च रक्तचाप, ह्रदय रोग, हार्निया, दमा, टीबी, अल्सर, पथरी, मिर्गी, स्ट्रोक से ग्रस्त व्यक्ति तथा गर्भवती महिलाएं इसका अभ्यास न करें। फेफड़ें, गला, हृदय या पेट में किसी भी प्रकार की समस्या हो, नाक बंद हो या साइनस की समस्या हो या फिर नाक की हड्डी बढ़ी हो तो चिकित्सक से सलाह लेकर ही यह प्रणायाम करना या नहीं करना चाहिए। अभ्यास करते समय अगर चक्कर आने लगें, घबराहट हो, ज्यादा पसीना आए या उल्टी जैसा मन करे तो प्राणायाम करना रोककर आराम पूर्ण स्थिति में लेट जाएं।
लाभ : इस प्राणायाम से शरीर को प्राणवायु अधिक मात्रा में मिलती है जिसके कारण यह शरीर के सभी अंगों से दूषित पदार्थों को दूर करता है। तेज गति से श्वास लेने और छोड़ने के क्रम में हम ज्यादा मात्रा में ऑक्सीजन लेते हैं और कॉर्बन डॉयऑक्साइड छोड़ते हैं जो फेफड़ों की कार्य क्षमता को बढ़ाता है और हृदय में रक्त नलिकाओं को भी शुद्ध व मजबूत बनाए रखता है। भस्त्रिका प्राणायाम करते समय हमारा डायाफ्राम तेजी से काम करता है, जिससे पेट के अंग मजबूत होकर सुचारु रूप से कार्य करते हैं और हमारी पाचन शक्ति भी बढ़ती है।
मस्तिष्क से संबंधित सभी विकारों को मिटाने के लिए भी यह लाभदायक है। आंख, कान और नाक के स्वास्थ्य को बनाए रखने में भी यह प्राणायाम लाभदाय है। वात, पित्त और कफ के दोष दूर होते हैं तथा पाचन संस्थान, लीवर और किडनी की अच्छे से एक्सरसाइज हो जाती है। मोटापा, दमा, टीबी और श्वासों के रोग दूर हो जाते हैं। स्नायुओं से संबंधित सभी रोगों में यह लाभदायक माना गया है।