जल और वायु का परिवर्तन हमारे शरीर के प्राकृतिक ढांचे को बिगाड़ सकता है। फिर चाहे आप कितने ही पोषक तत्व खाएं या कितने ही योग आसन करें शरीर अस्वस्थ ही रहेगा। शरीर और मन के बीच की कड़ी है प्राणायाम। प्राणायाम है सृष्टि की वायु और आयु।
दूसरी ओर शरीर और प्राण के बीच की कड़ी है जल। अर्थात भोजन और वायु के बीच की कड़ी है जल, जो व्यक्ति अपना जल और वायु शुद्ध तथा पुष्ट रखता है वह निरोगी रहकर दीर्घायु जीवन व्यतीत करता है। तो भोजन कम खाएं, जल ज्यादा पीएं और वायु जल से दोगुनी ग्रहण करें।
सर्व प्रथम वायु की चर्चा :
प्राण, व्यान, अपान, समान आदि वायुओं से मन को रोकने और शरीर को साधने का अभ्यास करना अर्थात प्राणों को आयाम देना ही प्राणायाम है। वेद और योग में आठ प्रकार की वायु का वर्णन मिलता है, जिनमें जीव विचरण करता है। जड़ अर्थात पत्थर, पेड़, पहाड़ या हमारा शरीर इसे जड़ कहते हैं। यह जड़ संचालित होता है जल, वायु, और अन्न से। सभी में सबसे महत्वपूर्ण है वायु। भोजन कुछ दिन ना भी करें तो चलेगा और कुछ घंटे जल न भी ग्रहण करें तो चलेगा, लेकिन वायु की तो व्यक्ति को प्रतिपल और प्रतिक्षण जरूरत होती है।
इस वायु को ही प्राणशक्ति कहते हैं। सबमें निहित है प्राणशक्ति। शरीर और मन के बीच की कड़ी है प्राण। प्राणों से ही शरीर और मन को शक्ति मिलती है। प्राण को आयु भी कहते हैं अर्थात प्राणायाम से दीर्घायु हुआ जा सकता है।
श्वासों पर कंट्रोल करें : यदि आप शुद्ध वायु ग्रहण नहीं कर रहे हैं तो शरीर का तेजी से क्षरण कर रहे हैं। यदि आपकी श्वास में रुकावट है तो सभी अंगों पर इसका प्रभाव पड़ता है। श्वास-प्रश्वास से शरीर की मुख्य नाड़ियों का संचालन होता है। वे प्रमुख नाड़ियां तीन हैं। पहली इड़ा, दूसरी पिंगला और तीसरी सुसुम्ना। उक्त तीनों नाड़ियों से ही संपूर्ण नाड़ियां जुड़ी है जिनमें रक्त का संचरण होता है।
इन तीनों नाड़ियों में ठीक-ठीक संतुलन हो तो इनमें आरोग्य, बल, शांति तथा लम्बी आयु प्रदान करने की क्षमता है। यह तीनों नाड़ियां शरीर की समस्त रक्त नलियों, कोशिकाओं आदि का केंद्र हैं।
पतंजलि ने चार प्रकार के प्राणायाम बताए हैं- 1.प्रथम बाह्य वृत्तिक, 2.द्वितीय आभ्यांतर वृत्तिक, 3.तृतीय स्तम्भक वृत्तिक और 4.चतुर्थ वह प्राणायाम होता है, जिसमें बाह्य एवं आभ्यांतर दोनों प्रकार के विषय का अतिक्रमण होता है। प्राणायाम के नियमित अभ्यास से जहाँ मन की ग्रंथियों से मुक्ति मिलती है, वहीं जीवनशक्ति बढ़ती है।
उक्त रोक्त चार प्रकार के प्राणाया में ही सिमटे हैं अन्य प्राणायाम जो प्रमख हैं- नाड़ीशोधन, अनुलोम-विलोम, भ्रस्त्रिका, उज्जायी, भ्रामरी, कपालभाती, सीत्कारी, शीतली, अग्निसार, वायु भक्षण आदि। इसके अलावा कुछ बंध और मुद्रा भी प्राणायाम के अंतर्गत माने गए हैं जैसे मूर्च्छा, बद्ध योनि, चतुर्मख, प्लाविनी, उड्डीयान, वज्रजोली, नौली, शक्तिचालिनी आदि।
जल ही जीवन है : कुछ घंटे जल न पीएं और सर्वप्रथम शरीर का जल सूखा दें। फिर जल न कम पीएं और न ही अत्यधिक। जल से जहां हमारे शरीर के दूषित पदार्थ बाहर निकल जाते हैं वहीं यह हमारे चेहरे की कांति बनाए रखता है। अशुद्ध जल से लीवर और गुर्दों का रोग हो जाता है। यदि उक्त दोनों में जरा भी इंफेक्शन है तो इसका असर दिल पर भी पड़ता है। लगभग 70 प्रतिशत रोग जल की अशुद्धता से ही होते हैं। तो जल को जीवन में महत्व दें। कहीं का भी जल ना पीएं। जल पीते वक्त सावधानी रखेंगे तो भोजन और प्राण में इसका भरपूर लाभ मिलेगा। जल योग के संबंध में योग में बहुत कुछ लिखा है उसे जानें।
प्राणायाम का लाभ : खुली और शुद्ध ताजा हवाएं हमारे मन को प्रसन्न कर देती हैं। शुद्ध हवा फेफड़ों को मजबूत बनाती है तथा रक्त के सुचारु रूप से संचालन और शुद्धिकरण होते रहने से दिल भी स्वस्थ बना रहता है। इससे सभी प्रकार की नाड़ियों को स्वास्थ्य लाभ मिलता है साथ ही नेत्र ज्योति बढ़ती है। अनिद्रा रोग में लाभ मिलता है और शरीर तनाव मुक्त रहकर फूर्तिला बनता है।