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नाड़ी शोधन प्राणायाम

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अनिरुद्ध जोशी

नाड़ियों की शुद्धि और मजबूती से अन्य अंगों में शुद्धि और मजबूती का संचार होता है। नाड़ी शोधन और अनुलोम विलोम में कोई खास फर्क नहीं है। प्रदूषित वातावरण के चलते वर्तमान में प्राणायाम का अभ्यास हमारे प्राणों के लिए आवश्यक है।
 
प्राणायम की शुरुआत आप नाड़ी शोधन प्राणायाम से कर सकते हैं। यह बहुत सरल है। आप इसका अभ्यास प्रभातकाल में करें। संध्यावंदन के समय भी आप इसका अभ्यास कर सकते हैं। गॉर्डन या घर के शुद्ध वातावरण में ही इसका अभ्यास करें।
 
इसे करने की विधि : किसी भी सुखासन में बैठकर कमर को सीधा करें और आँखें बंद कर लें। दाएँ हाथ के अँगूठे से दायीं नासिका बंद कर पूरी श्वास बाहर निकालें। अब बायीं नासिका से श्वास को भरें, तीसरी अँगुली से बायीं नासिका को भी बंद कर आंतरिक कुंभक करें। जितनी देर स्वाभाविक स्थिति में रोक सकते हैं, रोकें। फिर दायाँ अँगूठा हटाकर श्वास को धीरे-धीरे बाहर छोड़ें (रेचक करें)। 1-2 क्षण बाह्य कुंभक करें। फिर दायीं नासिका से गर्दन उठाकर श्वास को रोकें, फिर बायीं से धीरे से निकाल दें।
 
यह एक आवृत्ति हुई। इसे 5 से 7 बार करें। शुरू में 1:1:1 और 1:2:2 का अनुपात रखें। धीरे-धीरे आंतरिक कुंभक के अभ्यास को बढ़ाएँ। फिर 1:4:2 के अनुपात में करें। अनुपात को आप सेंकड समझ सकते हैं अर्थात 1 सेकंड तक श्वास अंदर लेना और 4 सेकंड तक रोकना और फिर 2 सेकंड तक छोड़ना।
 
इसका लाभ : इससे सभी प्रकार की नाड़ियों को स्वस्थ लाभ मिलता है साथ ही नेत्र ज्योति बढ़ती है और रक्त संचालन सही रहता है। अनिद्रा रोग में लाभ मिलता है। यह तनाव घटाकर मस्तिष्क को शांत रखता है तथा व्यक्ति में सकारात्मक ऊर्जा का विकास करता है।

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